2016-04-09 14:57:00

भिक्षा दान में करुणा के सारे मूल्य सम्माहित


वाटिकन सिटी, शनिवार, 9 अप्रैल 2016 (वीआर सेदोक): ″मैंने आप लोगों को दिखाया कि किस प्रकार परिश्रम करते हुए हमें दुर्बलों की सहायता करनी और प्रभु ईसा का कथन स्मरण रखना चाहिए कि लेने की अपेक्षा देना अधिक सुखद है।″ (प्रेरित च. 20:35)

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में शनिवार 9 अप्रैल को आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने, करुणा तथा उदारता अथवा भिक्षा दान विषय पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी की।

उन्होंने कहा कि भिक्षा दान यद्यपि साधारण प्रतीत होता है किन्तु हम सावधान रहे कि इस छोटे चिन्ह के अंदर महान मूल्य को खोखला न कर दें। वास्तव में, ‘दान देना’ शब्द की उत्पति ग्रीक भाषा से हुई है जिसका अर्थ है करुणा, अतः भिक्षा दान में, करुणा के सारे मूल्य सम्माहित है। करुणा को प्रकट करने के हज़ारों रास्ते हैं, जरूरतमंद लोगों की मदद हेतु कई माध्यमों द्वारा दान दिया जा सकता है।

संत पापा ने दान देने की प्रथा पर विचार करते हुए कहा कि यह प्राचीन काल में भी प्रचलित थी जिसमें एक धर्मी व्यक्ति को बलिदान एवं दान देने की क्रिया का प्रमुखता से पालन करना पड़ता था। पुराने व्यवस्थान में यह इसलिए प्रचलित थी क्योंकि ईश्वर ने ग़रीबों, परदेशियों, अनाथ तथा विधवाओं पर विशेष ध्यान देने का आदेश दिया था। दान देने के संबंध में यह निर्देश दिया गया था कि यह उदारता से प्रेरित हो, न कि कष्ट की भावना से। अतः दान देने में आंतरिक आनन्द का एहसास होना चाहिए। यह भार के समान नहीं होना चाहिए। तोबीत अपने पुत्र को सलाह देते हैं ″ कंगालों की उपेक्षा नहीं करोगे जिसे ईश्वर भी तुम्हारी उपेक्षा न करे।″ (तोबीत 4:7-8)

संत पापा ने कहा कि ये शब्द कितने मनोहर हैं जो हमें दान देने के मूल्य को समझाते हैं।  

येसु हमें सच्चे दान की शिक्षा देते हैं कि दान दूसरों को दिखाने अथवा प्रशंसा प्राप्त करने के मकसद से नहीं होना चाहिए। यह उस व्यक्ति के सामने रूक पाना और उसकी मदद करना है जो सहायता की गुहार लगा रहा हो। अतः दान देने की तुलना, हम रूककर व्यक्ति की वास्तविक आवश्यकता को बिना पूछे, सिक्के को मांगने वाले के हाथ में शीघ्रता से डाल देने, से नहीं कर सकते। संत पापा ने सलाह दी कि भिक्षा देने के पूर्व हमें उनकी आवश्यकताओं को समझना चाहिए।

संक्षेप में, दान देना एक प्रेमपूर्ण कार्य है जो हमसे मुलाकात करने वाले सभी लोगों को आनन्द प्रदान करे। यह उन लोगों के प्रति ईमानदारी पूर्वक ध्यान देना है जो हमसे मदद की मांग करते हैं। इसका महत्व उसमें है कि यह चुपचाप दिया जाए जिसे मात्र ईश्वर जानें।








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