2016-04-08 12:01:00

"आमोरिस लेतित्सिया" प्रेरितिक उदबोधन प्रकाशित


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016 (सेदोक): वाटिकन प्रेस में, शुक्रवार, 08 अप्रैल को "आमोरिस लेतित्सिया"  अर्थात् प्रेम का आनन्द शीर्षक से सन्त पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक उदबोधन की प्रकाशना कर दी गई।  

19 मार्च को सन्त पापा ने इस पर अपने हस्ताक्षर किये थे जिसकी प्रकाशना शुक्रवार वाटिकन द्वारा की गई। सन् 2014 एवं 2015 के दौरान परिवार पर सम्पन्न विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के परिणामों पर "आमोरिस लेतित्सिया" प्रेरितिक उदबोधन की रचना की गई है।

नौ अध्यायों वाला दस्तावेज़ "आमोरिस लेतित्सिया" प्रेरितिक उदबोधन परिवार में व्याप्त प्रेम पर आधारित है। इस उदबोधन में सन्त पापा फ्रांसिस ने, विशेष रूप से, एक पुरुष एवं एक स्त्री के बीच अविच्छेद्य विवाह सम्बन्ध पर आधारित परिवार के महत्व एवं उसके सौन्दर्य पर बल दिया है। साथ ही उन कठिन परिस्थितियों पर भी ध्यान आकर्षित कराया है जिनसे परिवारों को गुज़रना पड़ता है, उदाहरणार्थ बेरोजगारी से पीड़ित लोगों एवं तलाकशुदा और पुनर्विवाहित दम्पत्तियों की कठिनाइयाँ।   

नवीन प्रेरितिक उदबोधन के पहले अध्याय में सन्त पापा ईश वचन के महत्व को प्रकाशित करते तथा आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की व्यथा के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित कर उनके प्रति एकात्मता का आह्वान करते हैं। उदबोधन के दूसरे अध्याय में वे परिवार की वास्तविकता एवं वर्तमान विश्व में उसके समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों जैसे समलिंगकाम, विवाहेतर दम्पत्तियों के प्रश्न, किराये के गर्भाश्य जैसी विचारधाराओं पर चिन्ता व्यक्त कर कलीसिया के पुरोहितों से आग्रह करते हैं कि वे इन स्थितियों में लोगों की सहायता करें।

"आमोरिस लेतित्सिया" प्रेरितिक उदबोधन में सन्त पापा ने समर्पित जीवन की बुलाहट, जीवन का अधिकार, वैवाहिक प्रेम, प्रत्येक सन्तान को माता और पिता दोनों के प्रेम का अधिकार, वैवाहिक दम्पत्तियों के बीच स्वस्थ यौन की पवित्रता, विवाह के इच्छुक युवाओं की प्रेरिताई, विवाह विच्छेद के बाद भी बच्चों की उचित परवरिश तथा बच्चों का प्रशिक्षण माता-पिता की ज़िम्मेदारी जैसे गम्भीर विषयों पर मार्गदर्शन दिया है।

उदबोधन के छठवें अध्याय में उन्होंने समलिंगकामियों के सम्मान का आग्रह किया है तथापि, कहा है कि इस प्रकार के बन्धन को किसी भी स्थिति में "विवाह" का नाम नहीं दिया जा सकता।     

"आमोरिस लेतित्सिया" प्रेरितिक उदबोधन के अन्तिम अध्यायों में, दया और करुणा के सुसमाचारी मूल्यों को रेखांकित करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कलीसियाई धर्माधिकारियों का आह्वान किया है कि वे लोगों को दण्डित करने के बजाय उनके उद्धार की बात सोचें। उन्होंने लिखा, "सुसमाचारी तर्कणा के अनुसार किसी भी व्यक्ति को सदा के लिये खण्डित नहीं किया जा सकता।"

विवाह शून्यन के मामले में उन्होंने हर प्रकरण पर अलग-अलग ढंग से विचार का निवेदन किया। तलाकशुदा व्यक्तियों को यूखारिस्त ग्रहण करने की अनुमति के बारे में उन्होंने लिखा यूखारिस्त केवल पूर्ण कहलाये जानेवाले लोगों की विरासत नहीं है अपितु यह दुर्बल लोगों का पोषण है।

कलीसियाई नियमों के विषय में सन्त पापा फ्राँसिस प्रेरितिक उदबोदन में लिखते हैं कि नैतिक विधान वे पत्थर नहीं हैं जो विश्वासियों पर फेंके जा सकें। तथापि, उन्होंने कहा कलीसिया का दायित्व है कि वह नियमों की प्रस्तावना करे ताकि विश्वासियों को मार्गदर्शन मिल सके। यथार्थ उदारता के मर्म को समझाते हुए उन्होंने लिखा कि ईश करुणा के वरण का अर्थ है अन्यों को समझना, उन्हें क्षमा कर देना, उनके संग-संग चलना तथा उन्हें समुदाय में एकीकृत होने देना।

अन्त में सन्त पापा फ्राँसिस विश्व के परिवारों से अनुरोध करते हैं कि वे आशा का परित्याग कभी न करें।








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