2016-04-06 11:51:00

ख्रीस्तीय समुदायों को सद्भाव में जीवन यापन करना चाहिये, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, बुधवार, 06 अप्रैल 2016 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि ख्रीस्तीय समुदायों को सद्भाव में जीवन यापन करना चाहिये तथा सद्भावना को मन की शांति के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा, "सर्वप्रथम, ख्रीस्तीय समुदायों में आन्तरिक कृपा प्रबल होनी चाहिये जो पवित्रआत्मा से आती है और द्वितीय, ख्रीस्तीयों को समझौते से उत्पन्न पाखंडी सद्भाव से बचना चाहिये जिसमें धन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।     

वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में मंगलवार को ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने प्रेरित चरित ग्रन्थ के उस पाठ पर चिन्तन किया जिसमें बरनाबस अपने खेतों को बेचकर उससे मिली राशि को प्रेरितों के सिपुर्द कर देता है।

सन्त पापा ने कहा कि प्रारम्भिक ख्रीस्तीयों के समुदाय में शांति व्याप्त थी। उसके सदस्यों के बीच सद्भावना और मैत्री बरकरार थी इसलिये कि वे पवित्रआत्मा से सतत् प्रार्थना करते थे तथा आन्तरिक कृपा से अनुगृहीत होते थे।

सन्त पापा ने कहा कि मैत्री और सद्भाव का अर्थ है सबकुछ में साझेदारी। उन्होंने कहा, "जो कुछ उनके पास था वब सबका था, समुदाय का कोई भी सदस्य ऐसा नहीं थी जो ज़रूरतमन्द था। वे एकहृदय एवं एक प्राण थे, कोई भी अपनी सम्पत्ति को केवल अपनी नहीं कहता था अपितु वह सबकी सम्पत्ति कहलाती थी।"

सन्त पापा ने सचेत किया कि पवित्रआत्मा से प्रवाहित "सद्भाव अथवा मैत्री का, धन के साथ, बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध होता है क्योंकि धन मैत्री और सद्भाव का शत्रु है, धन स्वार्थी है।"  इसीलिये, सन्त पापा ने कहा, "आरम्भिक ख्रीस्तीय समुदाय से मिले संकेत बताते हैं कि वहाँ कोई भी व्यक्ति  जरूरतमन्द नहीं था क्योंकि सभी ने कुछ न कुछ दिया ताकि कोई भी ज़रूरतमन्द न रहे।"  

सन्त पापा ने विश्वासियों का आह्वान किया कि वे प्रेरित चरित ग्रन्थ का पाठ करें तथा प्रारम्भिक ख्रीस्तीय समुदाय एवं उसके सदस्यों के बीच विद्यामन सद्भाव, मैत्री, भ्रातृत्व एवं उदारता से प्रेरणा पाकर अपने दैनिक जीवन एवं जीवन शैली में उसका साक्ष्य प्रस्तुत करें।








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