2016-03-27 09:42:00

ख्रीस्तीय आशा ईश्वर का वरदान, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, रविवार, 27 मार्च 2016 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में, शनिवार को सन्त पापा फ्राँसिस ने प्रभु येसु के पुनरुत्थान महापर्व की पूर्व सन्ध्या पास्का जागरण की धर्मविधि का नेतृत्व कर पवित्र ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

इस अवसर पर किये अपने प्रवचन में उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि ख्रीस्तीय आशा ईश्वर का वरदान है। उन्होंने कहा, "हमारी आशा का आधार पुनर्जीवित ख्रीस्त हैं और यह आशा मात्र आशावाद नहीं है, न ही यह कोई मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अथवा साहसी होने की इच्छा मात्र है। ख्रीस्तीय आशा वह वरदान है जो हमें उस क्षण ईश्वर से मिलता है जब हम उनके प्रति अपने हृदय के द्वारों को खोल देते हैं। सन्त पौल स्मरण दिलाते हैं कि यह "आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योकिं ईश्वर ने हमें पवित्रआत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।"

सन्त लूकस रचित सुसमाचार के 24 अध्याय के 12 वें पद को उद्धृत कर सन्त पापा ने कहा, "पेत्रुस उठकर क्रब के पास पहुँचा"। सुसमाचार हमें बताते हैं कि पेत्रुस सहित 11 शिष्यों ने नारियों के साक्ष्य पर, उनकी पास्का उदघोषणा पर विश्वास नहीं किया था। इसके विपरीत, जैसा कि 11 वें पद में लिखा है, "उन्होंने इन सब बातों को प्रलाप ही समझा और स्त्रियों पर विश्वास नहीं किया।"

सन्त पापा ने कहा कि पेत्रुस के मन में सन्देह था, अपने गुरु की मृत्यु पर वह दुःखी था तथा उसका मन आत्मग्लानि से भरा था क्योंकि उसने येसु को पहचानने से तीन बार इनकार कर दिया था। तथापि, नारियों की बात सुनकर वह उठा और कब्र तक गया।

उन्होंने कहा कि पेत्रुस ने "स्वतः को उन दिनों के निराशाजनक माहौल में नहीं ढलने दिया, न ही वे अपने सन्देह से अभिभूत हुआ। वे भयभीत नहीं हुआ और न ही अनर्गल अथवा व्यर्थ की ही बातों में पड़ा। उसने साक्षात्कार एवं विश्वास को प्राथमिकता दी।     

सन्त पापा ने कहा हम भी पेत्रुस की तरह उठें। हम अपने आपमें बन्द न होवें अपितु अपनी कमज़ोरियों से बाहर निकल कर अपने बीच पुनर्जीवित ख्रीस्त का स्वागत करें।

उन्होंने मंगलयाचना की कि पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त हमें सभी फन्दों से स्वतंत्र करें तथा ईश्वर के प्रति अपने मन के द्वारों को खोलने में हमारी सहायता करें ताकि उदारता से परिपूर्ण होकर हम विश्व में ईश्वर के प्रेम, न्याय, शांति और दया के सन्देशवाहक बन सकें।  








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