2016-03-24 12:16:00

येसु ईश्वर की परम दया निर्धनों के बीच उदघोषित करते हैं, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, गुरुवार, 24 मार्च 2016 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में गुरुवार को करिशमाई याग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि येसु ख्रीस्त पिता ईश्वर की असीम दया को निर्धनों, दमन के शिकार लोगों तथा समाज से बहिष्कृत लोगों के बीच उदघोषित करते हैं।

सन्त पापा ने कहा, "अपने शब्दों एवं वचनों द्वारा प्रभु येसु ख्रीस्त प्रत्येक स्त्री और प्रत्येक पुरुष के अन्तरमन में व्याप्त रहस्यों को प्रकट करते हैं।" उन्होंने कहा कि येसु का अनुसरण करते हुए हम सबको भी, "विश्वास के लिये संघर्ष करते रहना चाहिये" (1 तिमोथी 6: 12) क्योंकि इस संघर्ष में उन्हें "निरे मनुष्यों से नहीं बल्कि अन्धकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों एवं आकाश के दुष्टआत्माओं के साथ संघर्ष करना पड़ता है" (दे. एफे. 6:12)।

सन्त पापा ने कहा कि येसु का संघर्ष मनुष्यों के विरुद्ध नहीं अपितु शैतान के विरुद्ध है किन्तु इसके बावजूद वे रुकते नहीं अपितु आगे बढ़ते रहते हैं। उन्होंने कहा, "येसु सत्ता के निर्माण के लिये नहीं लड़ते किन्तु यदि वे दीवारों को ध्वस्त करते तथा हमारी सुरक्षा भावना को चुनौती देते हैं तो वे ऐसा सिर्फ दया के द्वार खोलने के लिये करते हैं। ऐसी दया जो सब तक विस्तृत रहती, नवीनता लाती, घावों को भरती और मनुष्यों को मुक्त करती तथा प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करती है।"    

सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि ईश्वर की दया असीम और अनिर्वचनीय है। उन्होंने कहा, "हम इस रहस्य की शक्ति को उस दया में अभिव्यक्त करते हैं जो प्रतिदिन विकसित होती रहती तथा उस छोर तक पहुँचती है जहाँ उदासीनता, उपेक्षाभाव और हिंसा रूपी मरूभूमि का वर्चस्व है।" 

पुरोहितों को ईश्वर एवं लोगों के सेवक निरूपित कर उन्होंने कहा, "पुरोहित होने के नाते हम पिता ईश्वर की दया के साक्षी होने के लिये बुलाये गये हैं। येसु के समान ही हम अपने अनगिनत कार्यों द्वारा भलाई करने तथा चंगाई प्रदान करने के लिये बुलाये गये हैं। हम दया के उत्संस्करण में मदद दे सकते हैं ताकि सभी स्त्री-पुरुष, व्यक्तिगत ढंग से, दया का आलिंगन कर सकें तथा इसका अनुभव कर सकें। हमारा यह कार्य लोगों को दया के सही मायने समझायेगा तथा रचनात्मक ढंग से दया के अभ्यास की उन्हें प्रेरणा प्रदान करेगा।"    

करुणा को समर्पित जयन्ती वर्ष के सन्दर्भ में सन्त पापा फ्राँसिस ने साक्षात्कार एवं ईश्वर की क्षमा के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि ईश्वर में क्षमा की क्षमता इतनी अपार है कि हम लज्जित हुए बिना नहीं रह सकते।

उन्होंने कहा, "दया सब कुछ को पुनर्स्थापित करती है; वह प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा पुनर्स्थापित करती है। यही कारण है कि असंयत आभार उचित प्रतिक्रिया है: सुन्दर वस्त्र धारण कर हम पार्टी में जाते हैं, सुसमाचार के बड़े भाई के रोष को एक तरफ रख मेलमिलाप के लिये, आनन्दित होने और धन्यवाद देने के लिए, यही उचित है... क्योंकि जब हम सीधे और सरल ढंग से क्षमा याचना कर अपने दुष्कर्म के सुधार हेतु तैयार होंगे तब ही हम आनन्द में भी सहभागी हो सकेंगे।" 

सन्त पापा ने कहा, "पुनर्मिलन संस्कार प्राप्त कर लेने के बाद हमारे लिये अपने आप से यह पूछना हितकर होगा कि क्या हम आनन्दित, क्या हम हर्षित हैं? या फिर हम इतनी जल्दी में होते हैं कि इसके लिये हमारे पास समय ही नहीं होता। किसी दरिद्र को दान देने के बाद क्या उससे बातचीत करने या उसका धन्यवाद सुनने के लिये हमारे पास समय है अथवा नहीं?"

सन्त पापा ने कहा कि ईश्वरीय दया और क्षमा मनुष्य को विनीत एवं विनम्र बना देती है और इसी विनम्रता को धारण करने के लिये हम सब आमंत्रित हैं।








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