2016-03-22 08:42:00

प्रेरक मोतीः धन्य इसनारदो दा चाम्पो (13 वीं शताब्दी) (22 मार्च)


वाटिकन सिटी, 22 मार्च सन् 2016:

इसनारदो दा चाम्पो का जन्म इटली के विचेन्सा शहर के निकटवर्ती चाम्पो में हुआ था। लगभग सन् 1218 ई. में इसनारदो ने बोलोन्या शहर के दोमिनिकन धर्मसमाज में प्रवेश किया तथा धन्य ग्वाला के साथ साथ धर्मसमाज में अकिंचनता, ब्रहम्चर्य एवं आज्ञाकारिता की शपथें ग्रहण की। मिलान शहर में ईशशास्त्र के अध्ययन के उपरान्त 1230 ई. में इसनारदो पाविया प्रेषित कर दिये गये जहाँ अपने यथार्थ समर्पण के कारण पाविया के धर्माध्यक्ष रेदोबाल्दो के इष्ट मित्र बन गये।

धर्माध्यक्ष रेदोबाल्दो ने युवा पुरोहित इसनारदो को पाविया स्थित "नाज़रेथ की मरियम" को समर्पित गिरजाघर का कार्यभार सौंप दिया। इस गिरजाघर के पल्ली पुरोहित रहते इसनारदो एक योग्य प्रचारक एवं उपदेशक होने के साथ साथ त्याग एवं तपस्या के भी आदर्श सिद्ध हुए। पल्ली के काम-काज निपटाने के बाद जो भी समय बचता उसमें वे घूम घूम कर लोगों को उपदेश दिया करते तथा चंगाई हेतु प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया करते थे। इस प्रेरिताई के दौरान उन्होंने कई रोगियों एवं विकलांगो को चंगा किया जिसके कारण वे चमत्कारी उपदेशक इसनारदो के नाम से विख्यात हो गये थे।

19 मार्च सन् 1244 ई. को इसनारदो का निधन हो गया। उनका पार्थिव शरीर पाविया के दोमिनिकन गिरजाघर में दफ़नाया गया है। मरणोपरान्त भी इसनारदो की मध्यस्थता से कई चमत्कार हुए। बताया जाता है कि कुछेक क़ैदी ईश भक्त इसनारदो से प्रार्थना करने के बाद मुक्त कर दिये गये थे जिनकी जंजीरें अब तक इसनारदो की समाधि पर रखी हैं। इसी तरह समाधि पर उन रोगियों के पत्रों को भी देखा जा सकता है जिन्होंने इसनारदो से प्रार्थना करने के बाद चंगाई प्राप्त की थी। 12 मार्च सन् 1919 ई. को इसनारदो दा चाम्पो को धन्य घोषित किया गया था। सन्त इसनारदो का पर्व 22 मार्च को मनाया जाता है।

चिन्तनः प्रभु ईश्वर में अटल विश्वास हमें भले कार्यों की शक्ति देता तथा मैत्री, पुनर्मिलन एवं प्रेम के सन्देशवाहक बनता है।








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