2016-03-21 14:57:00

येसु में सच्चे आनन्द के स्रोत को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता


वाटिकन सिटी, सोमवार, 21 मार्च 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 20 मार्च को, खजूर रविवार के उपलक्ष्य में ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, ″धन्य हैं वे जो प्रभु के नाम पर आते हैं।″ (लूक.19:38) येरूसालेम की जनता ने अत्यन्त उल्लास से येसु का स्वागत किया और उन्हीं लोगों की तरह हमने भी किया है। येसु जो हमारे पास आना चाहते हैं हमने उनका स्वागत करने हेतु अपने उत्साह का प्रदर्शन किया है। येसु ने जैसे येरूसालेम में प्रवेश किया था वे हमारे शहरों और हमारे जीवन में भी प्रवेश करना चाहते हैं। हम सुसमाचार में पाते हैं कि उन्होंने गदहे पर सवारी की उसी तरह वे हमारी मानवीय स्वभाव को धारण करते हैं। अपने सामर्थ्य के दिव्य प्रेम से वे हमारे पापों को क्षमा कर देते हैं तथा पिता के साथ एवं अपने आप से हमारा मेल कराते हैं।  

जनता द्वारा उनका जय-जयकार किये जाने के कारण येसु उनसे अत्यन्त खुश थे। भीड़ में कुछ फरीसी थे उन्होंने ईसा से कहा, गुरूवर अपने शिष्यों को डाँटिए, परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, ″मैं तुमसे कहता हूँ यदि वे चुप रहें तो पत्थर ही बोल उठेंगे।″ (लूक.19:39) संत पापा ने कहा कि येसु में सच्चे आनन्द के स्रोत को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता जो हमारे साथ रहते तथा हमें शांति प्रदान करते हैं क्योंकि मात्र येसु ही हैं जो पाप, मृत्यु, भय तथा उदासी से हमें छुटकारा प्रदान कर सकते हैं।

आज की धर्मविधि हमें शिक्षा देती है कि प्रभु ने हमें अपने भव्य प्रवेश और न ही कोई महान चमत्कार द्वारा बचाया है बल्कि, प्रेरित संत पौलुस फिलीपियों को लिखे अपने दूसरे पत्र में कहते हैं, येसु ने अपने को पूरी तरह ‘खाली’ कर दिया तथा अपने को ‘विनीत’ बनाया। (फिली.2:7-8) ये दोनों शब्द हमें ईश्वर के असीम प्रेम को प्रकट करते हैं। येसु ने अपने आप को खाली कर दिया वे अपनी महिमा से आसक्त नहीं हुए जो उन्हें ईश पुत्र होने के कारण प्राप्त थी किन्तु मानव पुत्र बन गये ताकि पाप को छोड़ बाकी सभी विषयों में हम पापियों के साथ एकात्मता प्रदर्शित कर सकें। उससे भी बढ़कर वे हमारे साथ रहे, कोई राजा के रूप में नहीं किन्तु एक सेवक के रूप में। (पद. 7) अतः उन्होंने अपने को विनम्र बनाया अपमान की खाई तक उतर गये जिसका स्मरण पवित्र सप्ताह दिलाता है।

असीम प्रेम का पहला चिन्ह था, शिष्यों का पैर धोना। प्रभु और गुरु होकर वे अपने चेलों के पैर धोते हैं जिसको मात्र एक सेवक ही कर सकता था। वे उदाहरण देते हैं कि हम उनकी तरह प्रेम करना सीखें, एक ऐसा प्रेम जो झुकने के लिए प्रेरित करता है। उनकी कोमलता और उनका सच्चा प्रेम जो ठोस सेवा में प्रकट होता है जिसका अनुभव किये बिना हम नहीं रह सकते।

संत पापा ने कहा कि यह मात्र एक शुरूआत थी। येसु का अपमान उनके दुखभोग तक आगे चलता है। वे चाँदी के तीस सिक्कों में बेच दिये गये तथा चुम्बन द्वारा अपने ही शिष्य द्वारा विश्वासघात किये गये। जिन शिष्यों को उन्होंने खुद चुना था और अपना मित्र स्वीकार किया था सब के सब उन्हें छोड़कर चले गये। पेत्रुस ने उन्हें तीन बार अस्वीकार किया। लोगों ने उपहास द्वारा उनका अपमान किया तथा उनपर थूका। येसु ने अपने शरीर में लात और घूँसे की क्रूरता सही और उनके सिर पर जड़ा कांटों के मुकुट ने उन्हें इतना विकृत बना दिया कि वे पहचाने जाने योग्य नहीं थे। उन्हें धार्मिक और राजनीतिक नेताओं के अपमान और दण्ड सहने पड़े। वे पापी तथा अन्यायी समझे गये। पिलातुस ने उन्हें हेरोद के पास भेजा जिन्होंने पुनः उन्हें रोमी शासकों के पास भेजा। उनके लिए हर प्रकार के न्याय की उपेक्षा की गयी। इस प्रकार येसु ने लोगों द्वारा गहन उदासीनता का अनुभव किया। उसी भीड़ ने जो कुछ समय पूर्व उनका जय जयकार किया था अब अपनी आवाज को बदल कर उनके लिए मृत्यु दण्ड की मांग करने लगी और उनके स्थान पर हत्यारे को रिहा कराया।

अंततः क्रूस पर उनकी मृत्यु का समय आया, भयंकर दर्द भरा अपमान जो सिर्फ आतंकवादी, दास तथा जघन्य अपराध में पकड़े गये लोगों की सज़ा थी। उन्हें ये सब कुछ सहना पड़ा ताकि वे हमारे साथ पूरी तरह एक हो जाएँ। उन्होंने क्रूस में पिता के रहस्यात्मक परित्याग का अनुभव किया।

इस परित्यक्त अवस्था में उन्होंने पिता से प्रार्थना की तथा अपने आप को उनके हाथों सौंप दिया। ″हे पिता मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों सौंप देता हूँ।″ (लूक.23:47) लकड़ी के क्रूस पर लटकते हुए भी उन्हें अंतिम प्रलोभन से होकर गुजरना पड़ा, क्रूस से नीचे आने का प्रलोभन, शक्ति द्वारा बुराई पर जीत हासिल करने तथा सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामर्थ्य को प्रदर्शन करने का प्रलोभन। अपने सत्यानाश के चरम पर भी उन्होंने ईश्वर के सच्चे चेहरे को प्रस्तुत किया। अपने को क्रूस पर चढ़ाने वालों को क्षमा की तथा पश्चातापी डाकू के लिए स्वर्ग का द्वार खोल दिया। यदि बुराई का रहस्य विशाल है तो उनके द्वारा उंडेला गया प्रेम असीम है क्योंकि उन्होंने हमारे सभी कष्टों को अपने ऊपर ले लिया तथा अंधकार को प्रकाश, मृत्यु को जीवन तथा घृणा को प्रेम में बदल दिया।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर के कार्य करने का तरीका हमसे अलग है वे हमारे कारण कुचल दिये गये जबकि हम अपने छोटे से तकलीफ को भूल नहीं पाते। वे हमें बचाने और सेवा, उदारता तथा निःस्वार्थ भावना के रास्ते पर चलने हेतु हमें बुलाये आये थे।

संत पापा ने विश्वासियों को निमंत्रण देते हुए कहा कि हम उनके रास्ते पर चलें। इन दिनों क्रूस को निहारने हेतु रूकें जो ईश्वर का ‘महिमामय सिंहासन’ है। हम उनके विनम्र प्रेम को सीखें जो हमें बचाता तथा जीवन प्रदान करता है ताकि हम अपने स्वार्थ एवं कीर्ति और सत्ता पाने की चाह को पूरी तरह त्याग सकें। हम अपना चेहरा उनकी ओर करें और हमारे लिए उनके महान कार्य के रहस्य को समझने हेतु कृपा मांगें। हम मौन होकर इस पवित्र सप्ताह के रहस्य पर चिंतन करें।








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