2016-02-17 12:16:00

प्रेरक मोतीः सन्त आलेक्सिस फालकोनियेरी (1200-1310)


वाटिकन सिटी, 17 फरवरी सन् 2016

सन्त आलेक्सिस फालकोनियेरी इटली के सन्त हैं जिन्हें ओरवियेत्तो नगर का संरक्षक भी घोषित किया गया है। सन् 1200 ई. में आलेक्सिस का जन्म इटली के फ्लोरेन्स शहर के एक धन- सम्पन्न व्यापारी के परिवार में हुआ था।

1225 ई. में आलेक्सिस तथा उनके छः साथियों ने पवित्र कुँवारी मरियम को समर्पित भ्रातृसंघ का गठन कर मरियम भक्ति के प्रति स्वतः को अर्पित करने की शपथ ग्रहण कर ली थी। 1233 ई. में, मरियम के स्वर्गोत्थान महापर्व के दिन जब आलेक्सिस अपने छः साथियों के साथ मिलकर प्रार्थना में लीन थे तब इन्हें मरियम दर्शन प्राप्त हुए थे जिसने इन्हें प्रार्थना को समर्पित एक नये धार्मिक समुदाय की स्थापना हेतु प्रेरित किया। परिणास्वरूप, फ्लोरेन्स के निकट "ला कमार्सिया" में आलेक्सिस एवं उनके साथियों ने प्रार्थना को समर्पित प्रथम धार्मिक समुदाय की स्थापना की जिसे बाद में शहर के परिसर में मोन्ते सेनारियो में अन्तिम रूप दिया गया।

आलेक्सिस एवं उनके साथियों को प्रार्थना करते समय एक बार फिर मरियम के दर्शन प्राप्त हुए जिससे प्रेरित होकर उन्होंने सरवाईट्स अर्थात् मरियम सेवकों के धर्मसंघ की स्थापना की। आलेक्सिस को छोड़कर उनके सभी साथी अभिषिक्त पुरोहित थे क्योंकि आलेक्सिस अपने आप को इस प्रतिष्ठित पद के लिये काबिल नहीं समझते थे। इस तरह, आलेक्सिस धर्मसंघ की दैनिक देखरेख का कार्यभार सम्भाला करते थे। काफाजियो में उन्होंने सरवाईट्स गिरजाघर का भी निर्माण करवाया था। 

सन् 1304 ई. में, आलेक्सिस एवं उनके साथियों द्वारा स्थापित सरवाईट्स अर्थात् मरियम सेवक धर्मसंघ को, सन्त पापा बेनेडिक्ट 11 वें से परमधर्मपीठीय अनुमोदन मिल गया था। उस वक्त संस्थापकों में से केवल आलेक्सिस ही जीवित बचे थे।

17 फरवरी, सन् 1310 ई. को मोन्ते सेनारियो में 110 वर्ष की आयु में आलेक्सिस फालकोनियेरी का निधन हो गया। आलेक्सिस एवं उनके साथियों को सात पवित्र संस्थापक के नाम से जाना जाता है। इन सातों संस्थापकों को सन् 1888 ई. में सन्त पापा लियो 13 वें ने सन्त घोषित कर कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान किया था। 17 फरवरी को, कलीसिया, सन्त आलेक्सिस फालकोनियेरी का स्मृति दिवस मनाती है।     

चिन्तनः "बुद्धिमान् के शब्द अंकुश-जैसे है; उसकी सूक्तियों का संग्रह मज़बूती से ठोकी कीलों-जैसा है। ये सब एक ही चारवाहे की देन है। पुत्र! सावधान रहो, उन में कुछ नहीं जोड़ो। अनेक ग्रन्थों के निर्माण का अन्त नहीं होता और अधिक अध्ययन करने से शरीर थक जाता है। ईश्वर पर श्रद्धा रखो और आज्ञाओं का पालन करोः यही मनुष्य का कर्त्तव्य है; क्योंकि ईश्वर हर कार्य का न्याय करेगा चाहे वह कितना ही गुप्त क्यों न हो और वह उसे भला या बुरा सिद्ध करेगा" (उपदेशक ग्रन्थ 12: 11-14)। 








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