2016-01-28 08:32:00

प्रेरक मोतीः सन्त थॉमस आक्वाईनुस (1225-1274)


सन्त थॉमस आक्वाईनुस काथलिक पुरोहित, काथलिक कलीसिया के आचार्य तथा समस्त विश्वविद्यालयों एवं विद्यार्थियों के संरक्षक सन्त हैं।

सन् 1225 ई. में थॉमस आक्वाईनुस का जन्म इटली के सिसली द्वीप में हुआ था। जब थॉमस पाँच वर्ष के थे तब उनके पिता काऊन्ट आक्वीनो ने उन्हें मोन्ते कासिनो के बेनेडिक्टीन धर्मसमाजियों के सिपुर्द कर दिया था ताकि वे उनकी शिक्षा-दीक्षा कर सकें।

बेनेडिक्टीन धर्मसमाजियों के अधीन शिक्षा प्राप्त करने के बाद, सन् 1243 ई. में 18 वर्ष की आयु में थॉमस, नेपल्स स्थित दोमिनीकन धर्मसमाज में भर्ती हो गये। थॉमस के परिवार सदस्य उनके इस चयन से नाखुश थे और उन्होंने कई प्रलोभन देकर उन्हें दोमिनीकन धर्मसमाज से हटाने का प्रयास किया किन्तु थॉमस अपने रास्ते पर दृढ़ रहे। पवित्रता के पथ पर वे अग्रसर रहे जिसके कारण उन्हें "एन्जेलिक डॉक्टर" का शीर्षक भी प्रदान किया गया।

नेपल्स में समर्पित जीवन हेतु शपथ ग्रहण करने के उपरान्त थॉमस जर्मनी के कोलोन शहर गये जहाँ उन्होंने सन्त अलबर्ट महान की छत्रछाया में रहकर अध्ययन किया। यहाँ उनके भारी भरकम शरीर तथा शान्त व्यवहार के कारण, उन्हें "डम्ब ऑक्स" यानि गूँगा बैल कहकर पुकारा जाता था। 22 वर्ष की उम्र में थॉमस को कोलोन में ही शिक्षक नियुक्त कर दिया गया। इसी दौरान उन्होंने अपनी प्रथम कृतियाँ प्रकाशित की गई। चार वर्ष बाद वे पेरिस भेज दिये गये जहाँ उनका पुरोहितभिषेक हुआ। 31 वर्ष की आयु में उन्होंने ईश शास्त्र में डॉक्टरेड पास किया।

पेरिस में सम्राट लूईस के साथ उनकी खास मित्रता थी जिनके साथ वे कई बार भोजन भी किया करते थे। सन् 1261 ई. में सन्त पापा अरबन चतुर्थ के आदेश पर थॉमस रोम लौटे तथा परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालय के प्राध्यपक रूप में अपनी प्रेरिताई का निर्वाह करते रहे। इस दौरान थॉमस ने ईश्वर एवं सत्य पर कई कृतियों की प्रकाशना की। उनके ज्ञान की उत्कृष्ट कृति "सुम्मा थेओलोजीका" अधूरी ही रह गई इसलिये कि सन् 1274 ई. में, सन्त पापा ग्रेगोरी दसवें द्वारा आदेशित लियों के दूसरी महासभा पर जाते समय रास्ते में ही थॉमस बीमार पड़ गये तथा फोस्सा नुओवा के सिस्टरशियन मठ में उनका देहान्त हो गया।

नेपल्स के कुलीन परिवार में जन्में थॉमस आक्वाईनुस प्रकृतिक ईशशास्त्र एवं धर्मतत्व विज्ञान के अग्रणी शास्त्रीय प्रस्तावक तथा थॉमिज़म के पितामह थे। पश्चिमी विचार पर उनका प्रभाव काफी रहा है। वस्तुतः, अधिकांश आधुनिक दर्शन उनके विचारों का विकास या बहिष्कार है विशेष रूप से, नीति शास्त्र, प्राकृतिक विधान, तचत्वमीमांसा एवं राजनीतिक सिद्धान्त आदि के क्षेत्र में।

पुरोहिताभिषेक हेतु अध्ययनरत छात्रों के लिये सन्त थॉमस आक्वाईनुस एक आदर्श शिक्षक हैं। पुरोहित, दर्शनशास्त्री एवं ईशशास्त्री सन्त थॉमस आक्वाईनुस काथलिक कलीसिया के आचार्य घोषित किये गये हैं। उनका पर्वन 28 जनवरी को मनाया जाता है।   

चिन्तनः "पुत्र! मेरी प्रज्ञा पर ध्यान दो, मेरी शिक्षा कान लगा कर सुनोजिससे तुम विवेकशील  बने रहो और तुम्हारे होंठ ज्ञान की बातें बोलें" ( सूक्ति ग्रन्थ 5: 1-2)। 








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