2016-01-23 15:27:00

धर्माध्यक्षों के दो प्रमुख कर्तव्य


वाटिकन सिटी, शनिवार, 23 जनवरी 2016 (वीआर सेदोक): ″धर्माध्यक्षों का कर्तव्य है प्रार्थना करना तथा येसु ख्रीस्त के पुनरुत्थान की घोषणा करना, यदि कोई धर्माध्यक्ष प्रार्थना नहीं करता तथा सुसमाचार की घोषणा नहीं करता बल्कि अन्य चीजों पर अधिक ध्यान देता है, ईश प्रजा को उसे परेशानी होती है।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थना लय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

प्रवचन में संत पापा ने संत मारकुस रचित सुसमाचार से लिए गये पाठ पर चिंतन किया। जहाँ येसु अपने बारह शिष्यों का चयन करते हैं ताकि वे उनके साथ रह सकें तथा सुसमाचार प्रचार हेतु भेजे जा सकें।

संत पापा ने कहा कि वे बारह शिष्य प्रथम धर्माध्यक्ष थे जिनमें यूदस की मृत्यु के बाद मतियस चुना गया जिसे कलीसिया में पहली बार धर्माध्यक्षीय अभिषेक प्रदान किया गया था। संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्ष कलीसिया के स्तम्भ हैं जो येसु के पुनरूत्थान की घोषणा करने के लिए बुलाये गये हैं।

उन्होंने कहा कि ″हम धर्माध्यक्षों का कर्तव्य भी साक्षी बनना है। यह प्रस्तुत करता कि प्रभु येसु जीवित हैं वे जी उठे हैं, हमारे साथ चलते हैं, हमें बचाते, हमें जीवन प्रदान करते और वे हमारे आशा हैं वे सदा हमारा स्वागत करते तथा हमें क्षमा प्रदान करते हैं।″  

संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्षों के दो काम हैं प्रार्थना करना तथा साक्ष्य देना। धर्माध्यक्ष को प्रार्थना में येसु के साथ रहना है यही उनका पहला काम है न कि प्रेरितिक हेतु योजना बनाना। दूसरा काम है साक्ष्य देना अर्थात् प्रवचन देना। मुक्ति का संदेश जिसे येसु ने लाया उसे सुनाना। संत पापा ने कहा कि ये दोनों कार्य निश्चय ही आसान नहीं हैं किन्तु ये कलीसिया के मजबूत स्तम्भ है अतः यदि ये कमजोर पड़ जाएँ तो कलीसिया भी कमजोर हो जाती है तथा ईश प्रजा को तकलीफ झेलना पड़ता है।

धर्माध्यक्षों के बिना कलीसिया नहीं चल सकती अतः हमें सभी धर्माध्यक्षों के लिए प्रार्थना करना है। संत पापा ने सभी विश्वासियों को निमंत्रण दिया कि वे धर्माध्यक्षों के लिए प्रार्थना करें क्योंकि वे भी पापी हैं उनमें भी कमज़ोरियाँ हैं। 








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