2016-01-11 12:19:00

राजनयिकों को दिये सन्देश में सन्त पापा ने किया उदासीनता की संस्कृति का खण्डन


वाटिकन सिटी, सोमवार, 11 जनवरी 2016 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने वर्तमान विश्व में व्याप्त उदासीनता की संस्कृति का खण्डन किया है।

सोमवार को नववर्ष के उपलक्ष्य में सन्त पापा फ्राँसिस ने परमधर्मपीठ के साथ कूटनैतिक सम्बन्ध रखनेवाले राष्टों के राजनयिकों से मुलाकात कर उन्हें अपना सन्देश दिया।

अपने सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने इस बात पर बल दिया कि कूटनैतिक स्तर पर परमधर्मपीठ हर सम्भव प्रयास करेगी कि शांति के पक्ष में उसकी आवाज़ सुनी जाये। विश्व के विभिन्न राष्ट्रों और, विशेष रूप से, मध्य पूर्व के देशों में दीर्घ काल से जारी संघर्षों के प्रति उन्होंने गहन चिन्ता व्यक्त की और कहा कि वार्ताओं द्वारा संघर्षरत पक्षों के बीच समझौतों का सम्पादन नितान्त आवश्यक है और इसके लिये परमधर्मपीठ अनवरत क्रियाशील रहेगी।

इस बात को रेखांकित करते हुए कि सच्चे दिल से धर्म का पालन शांति को प्रोत्साहित करने में असफल नहीं हो सकता उन्होंने कहा कि संघर्षों की समाप्ति एवं शांति की स्थापना के लिये ही उन्होंने काथलिक कलीसिया में करुणा को समर्पित असाधारण जयन्ती वर्ष की घोषणा की है ताकि सभी को ईश्वर की दया पर चिन्तन का मौका मिले तथा पुनर्मिलन और क्षमा की बहाली हो सके। इसी प्रकाश में उन्होंने कहा कि अपनी अफ्रीकी राष्ट्रों की प्रेरितिक यात्रा के अवसर पर उन्होंने बांगी के गिरजाघर का पवित्र द्वार खोला था ताकि सम्पूर्ण अफ्रीका के लोग ईश्वर की करुणा का एहसास पा सके।

राजनयिकों से सन्त पापा ने आग्रह किया कि अपने-अपने देशों के परिवारों पर वे विशेष ध्यान केन्द्रित करें जो करुणा और प्रेम की प्रथम पाठशालाएँ हैं। इस बात पर उन्होंने चिन्ता व्यक्त की कि सामाजिक दृश्य पटल पर आप्रवास, बेरोज़गारी एवं सामाजिक ढाँचों की कमी के कारण परिवार दुर्बल होते चले जा रहे हैं।

वर्तमान विश्व में बढ़ रही व्यक्तिवादी एवं उदासीनता की भावनाओं पर उन्होंने दुःख व्यक्त किया  जो केवल अपना स्वार्थ खोजती तथा अन्यों को फेंक देने के लायक मानने लगती है। उन्होंने कहा कि इन नकारात्मक भावनाओँ का दुष्प्रभाव निर्धनों एवं हाशिये पर जीवन यापन करनेवालों पर पड़ रहा है जो भविष्य के बारे में भयभीत हैं और अनिश्चित्ताओं से घिरे हैं।

आप्रवास के गहराते संकट पर ध्यान आकर्षित कराते हुए सन्त पापा ने कहा कि 2015 के वर्ष में सिरिया तथा अन्य देशों में जारी सशस्त्र युद्धों ने आप्रवास और उसके साथ-साथ अपराधी जगत की गतिविधियों को प्रश्रय दिया है। इसके अतिरिक्त यूरोप, एशिया, उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका के मेज़बान देशों में भय उत्पन्न कर दिया है।

सन्त पापा ने कहा कि आप्रवास के संकट का सामना बाईबिल धर्मग्रन्थ में दिये परामर्श किया जा सकता है। योहूब से प्रभु ईश्वर कहते हैं: "डरे नहीं और न ही निराश होवें क्योंकि जहाँ भी आप जायें प्रभु ईश्वर आपके साथ हैं"। उन्होंने कहा, "मानव इतिहास असंख्य आप्रवासों की कहानी है जो कभी-कभी अपनी स्वतंत्रता के चयन से तो कभी-कभी बाहरी परिस्थितियों से उत्पन्न होती है।"

"फ्रेक देनेवाली संस्कृति" के विरुद्ध चेतावनी देते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने राजनयिकों चेतावनी देते हुए कहा कि मानव व्यक्तियों और समुदायों में व्याप्त निर्धनता, क्षुधा, कुपोषण और शांति की चाह को अनदेखा न किया जाये अपितु इन समस्याओं का समाधान पाने के लिये हर सम्भव प्रयास किये जायें।     








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