2015-12-28 16:20:00

संत पापा का पवित्र परिवार के पर्व पर प्रवचन


वाटिकन सिटी, सोमवार, 28 दिसम्बर 2015 (सेदोक) संत पापा ने पवित्र परिवार के पर्व दिवस पर संत पेत्रुस महागिरजा घर में पवित्र मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए अपने मिस्सा के प्रवचन में कहा, ”बाईबल से हमने जो दो पाठ सुना वह दो परिवारों के ईश्वरीय घराने की तीर्थयात्रा के बारे में बतलाता हैं। एल्काना और हन्ना अपने पुत्र सम्मुएल को शिलो के ईश मन्दिर में ईश्वर को चढ़ाने लाते हैं। उसी तरह जोसेफ और मरियम येसु के साथ पास्का पर्व मनाते हेतु येरूसालेम के मन्दिर में तीर्थयात्री के समान जाते हैं।” (लूक. 2:41-52)

हम बहुधा तीर्थयात्रियों को प्रसिद्ध तीर्थस्थानों की तीर्थयात्रा करते हुए देखते हैं। इन दिनों बहुत से विश्वासी दुनिया में खुले महागिरजाघरों के पवित्र द्वार की यात्रा कर रहे हैं। आज के प्रभु वचनों में सबसे सुन्दर चीज उभर कर आती है कि सम्पूर्ण परिवार तीर्थ हेतु जाता है। माता-पिता और बच्चे एक साथ ईश्वर के घर जाते हैं जिसे वे अपनी प्रार्थनाओं द्वारा दिन को पवित्र कर सकें। यह एक महत्वपूर्ण बात है जो हमारे परिवारों के लिए भी जरूरी है। वास्तव में, हम कह सकते हैं कि पारिवारिक जीवन छोटे बड़े तीर्थयात्रायों की एक श्रंखला है।

उदाहरण के लिए माता मरियम और जोसेफ के बारे में मनन करना हमारे लिए कितना अच्छा है जो येसु को प्रार्थना करना सिखलाते हैं। यह प्रार्थना का एक शैक्षणिक तीर्थ के समान है। यह जानना हमारे लिए कितना अच्छा है कि वे सारा दिन प्रार्थना करते हैं और प्रत्येक रविवार को मंदिर जाते हैं जिससे की संहिता और नबियों के द्वारा कही गई बातों का श्रवण कर सकें और समुदाय के साथ ईश्वर का महिमागान कर सकें। अपनी येरुसलेम तीर्थ के दौरान उन्होंने निश्चय ही यह भजन गा कर प्रार्थना किया होगा, “मैं यह सुनकर आनन्दित हो उठा, आओ हम ईश्वर के मन्दिर चलें। येरुसलेम, अब हम पहुँचे हैं, हमने तेरे फाटकों में प्रवेश किया है।” (स्तोत्र.122.1-2)

हमारे परिवारों के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ एक उद्देश्य के पीछे चलें। हम जानते हैं कि हमें एक रास्ते पर चलना है एक राह जहाँ हम कठिनाइयों का सामना करते हैं लेकिन हमें खुशी और तसल्ली मिलती है। जीवन के इस तीर्थ में हम अपनी प्रार्थनाओं के क्षणों को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं। माता-पिता के लिए इससे सुन्दर और क्या हो सकता है कि वे रोज सुबह और शाम अपने बच्चों के माथे पर क्रुस का चिन्ह अंकित करते हुए आर्शीवाद प्रदान करें जैसे की उन्होंने बपतिस्मा के दिन में किया था। क्या यह सबसे सरल प्रार्थना नहीं जिसे माता-पिता अपने बच्चों को दे सकें? आर्शीवाद देना याने की उन्हें ईश्वर के हाथों में सुपूर्द करना जैसे कि एलकाना और हन्ना, जोसेफ और मरियम ने किया जिससे कि वे सारा दिन उनकी सुरक्षा और देखभाल में सौंप दें। इस प्रकार परिवार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि यह भोजन ग्रहण करने के पहले एक साथ छोटी प्रार्थना करे जिसे हम उनके द्वारा प्राप्त उपहारों के लिए उनका धन्यवाद कर सकें और अपने वरदानों को उनके साथ बाँटना सीख सकें जिन्हें इनकी अति आवश्यकता है। यह छोटी निशानी हैं फिर भी यह एक महान पारिवारिक शिक्षा की बात बयाँ करती है जो हमारे दैनिक जीवन की तीर्थ में होता है।

अपने तीर्थ के बाद येसु नाजरेत लौटते हैं और अपने माता-पिता के अधीन रहते हैं। इस दृश्य में हमारे पारिवारों की सुन्दर शिक्षा परिलक्षित होती है। तीर्थ हमारे गणतव्य स्थान में पहुँचने के साथ समाप्त नहीं होती लेकिन जब हम अपने घर लौटते, अपने रोज दिन के जीवन की शुरूआत करते हैं और अपने आध्यात्मिक अनुभवों को कर्यान्वित करते हैं। हम येसु के कामों से वाकिफ हैं कि उन्होंने उस समय क्या किया। वे अपने माता-पिता के संग घर लौटने के बदले येरुसलेम मन्दिर में ही रह गये, जिसे जोसेफ और मरियम को बहुत दुःख हुआ क्योंकि उन्होंने येसु को खोज नहीं पाया। इस गलती हेतु येसु को अपने माता पिता से क्षमा माँगनी पड़ी होगी जिसका जिक्र सुसमाचार नहीं करता है, लेकिन मैं सोचता हूँ हम इसका अनुमान लगा सकते हैं। मरियम के सवाल में थोड़ी फटकार सम्मिलित है जो यह प्रदर्शित करता है कि येसु की चिंता में उन्हें कितने कष्ट का अनुभव  हुआ। येसु घर लौटने के बाद निश्चिय ही उनके निकट रहे जो उनके प्यार और आज्ञाकारिता को दिखाता है। ऐसे क्षण हम प्रत्येक के जीवन रूपी तीर्थ के अंग बनते हैं, और येसु हमें जीवन के ऐसे क्षणों को एक अवसर में परिवर्तित कर देते हैं जहाँ हम अपने जीवन में सिखते, एक दूसरे से क्षमा मांगते और आज्ञाकरिता में अपने प्यार को व्यक्त करते हैं।

करूणा के जयन्ती वर्ष, जीवन की तीर्थ में प्रत्येक ख्रीस्तीय परिवार को खुशी और क्षमा का अनुभव करने हेतु एक सौभग्यपूर्ण अवसर हो सकते हैं। क्षमा का सार प्यार हैं जो गलतियों को समझता और उन्हें सुधारता है। यदि ईश्वर हमें क्षमा न करें तो हमारी स्थिति कितनी दयनीय होगी। परिवार में हम एक दूसरे को क्षमा करना सीखते हैं क्योंकि हम निश्चित रूप से जानते हैं की हम समझे और सहायता किया जाते हैं चाहे हमारी गलती कुछ भी क्यों न हो।

आइये हम अपने परिवार पर विश्वास न खोये। यह अति प्रिय है जब हम अपना हृदय दूसरों के लिए खोलते और चीजों को नहीं छुपाते। जहां प्यार हैं वहाँ सदैव समझदारी और क्षमा है। आप सब प्रिय परिवारों को मैं यह महत्वपूर्ण प्रेरितिक कार्य सौंपता हूँ जो घरेलू जीवन का तीर्थ है, जिसे पूरी दुनिया और कलीसिया को और अधिक जरूरत है।








All the contents on this site are copyrighted ©.