2015-12-16 10:37:00

शांति सन्देश में सन्त पापा ने किया उदासीनता को अभिभूत करने का आह्वान


वाटिकन सिटी, बुधवार, 16 दिसम्बर 2015 (सेदोक): सन् 2016 के विश्व शांति दिवस के लिये प्रकाशित अपने सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने उदासीनता को पराजित कर शांति हासिल करने का आह्वान किया है।

काथलिक कलीसिया द्वारा घोषित विश्व शांति दिवस प्रति वर्ष पहली जनवरी को मनाया जाता है। विश्व शांति दिवस सन् 2016 का शीर्षक हैः "उदासीनता को पराजित कर शांति जीतें"।  

विश्व शांति दिवस के उपलक्ष्य में प्रकाशित अपने सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि वर्तमान विश्व विभिन्न प्रकार के युद्धों, आतंकवाद एवं उत्पीड़न के काल से गुज़र रहा है तथापि, उनका कहना है कि आशा के भी कई संकेत मिले हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिये अपितु उन्हीं के आधार पर शांति का निर्माण किया जाना चाहिये।

सन्त पापा ने कहा कि 2015 के दौरान ऐसी अनेक घटनाएँ घटी जिनसे मानव परिवार में आशा का संचार हुआ है जैसे पेरिस में सम्पन्न जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन, द्वितीय वाटिकन महासभा की 50 वीं वर्षगाँठ तथा आठ दिसम्बर को प्रारम्भ करुणा को समर्पित जयन्ती वर्ष।

विश्व में व्याप्त विभिन्न प्रकार की उदासीनताओं को प्रकाश में लाकर सन्त पापा ने कहा कि जब तक मनुष्य ईश्वर के प्रति उदासीनता को पराजित नहीं करेगा तब तक वह अपने पड़ोसी के प्रति तथा पर्यावरण के प्रति भी उदासीन ही बना रहेगा। उन्होंने कहा कि ईश्वर के प्रति उदासीनता व्यक्ति को दयाविहीन और निर्दय बना देती है। ठीक उसी प्रकार जैसे उत्पत्ति ग्रन्थ का काईन अपने भाई आबिल के प्रति निर्दय बन जाता है। इसके विपरीत ईश्वर में आस्था और विश्वास मनुष्य को दया, करुणा और प्रेम से भर देता है इसलिये कि विश्वासी व्यक्ति देखता, सुनता, आगे आता और मुक्ति दिलाता है। वह अपने भाई के दुःख को समझता और उसकी सहायता को आगे आता है।

सन्त पापा लिखते हैं, "करुणा ईश्वर का हृदय है और इसी कारण उसे ईश्वर की सभी सन्तानों का हृदय भी होना चाहिये।"        

सन्त पापा ने कहा कि हम सब अपने परस्पर सम्बन्धों में करुणा, प्रेम, दया एवं एकात्मता के लिये बुलाये गये हैं और इसके लिये ज़रूरी है मनपरिवर्तन ताकि हम वास्तविक एकात्मता के लिये उदार बन सकें।

उन्होंने कहा कि एकात्मता और उदारता ऐसे गुण हैं जिन्हें परिवार में पोषित किया जाता है। परिवार ही वह पहला स्थल है जहाँ प्रेम,  भ्रातृत्व, एकजुटता और भागीदारी के सदगुण पनपते हैं। इस दिशा में उन्होंने शिक्षकों एवं सम्प्रेषण माध्यम के कार्यकर्त्ताओं की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया और कहा कि समाचार प्रकाशित करनेवालों को इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिये कि वे लोगों को सही सूचना प्रदान करें तथा ऐसी अफ़वाहों का प्रचार न करें जो अवैध ढंग से हासिल की गई हों अथवा नैतिक रूप से सुसंगत न हों।   

सन्त पापा ने अपने सन्देश में आप्रवासियों, शरणार्थियों, बेरोज़गार युवाओं, क़ैदियों एवं बीमारों को विशेष रूप से याद किया तथा उनकी सहायता हेतु विश्व के लोगों से अपील की। उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि शांति एकात्मता, दया और करुणा की संस्कृति का फल है जिसे मानवजाति के कल्याण के लिये सींचा जाना नितान्त आवश्यक है।  








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