2015-12-16 07:31:00

प्रेरक मोतीः वियेन्ने के सन्त आदो (निधन 875ई.)


वाटिकन सिटी, 16 दिसम्बर सन् 2015:

16 दिसम्बर को काथलिक कलीसिया सन्त आदो का स्मृति दिवस मनाती है। वे महाधर्माध्यक्ष एवं ईशशास्त्र के विद्धान थे।

महाधर्माध्यक्ष आदो का जन्म फ्राँस में वियेन्ने के शाही परिवार में हुआ था। फ्रेरियेर्रस स्थित बेनेडिक्टीन मठ में उन्होंने शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी। मठाध्यक्ष लुपुस सेर्वातुस के अधीन उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी तथा उनके पद चिन्हों पर चलते हुए अकिंचनता, पवित्रता एवं प्रार्थनामय जीवन में रुचि लेने लगे थे। इसी के चलते आदो ने शाही परिवार के ठाट-बाठ का परित्याग कर दिया तथा बेनेडिक्टीन धर्मसमाजी मठ में भर्ती हो गये। कुछ समय बाद युवा मठवासी आदो को फ्राँस से जर्मनी भेज दिया गया। यहाँ ट्रियर शहर के प्रूम मठ में आदो कठोर त्याग और तपस्या का जीवन यापन करने लगे जिससे उनके कई शत्रु बन गये और उन्हें ट्रियर छोड़ना पड़ा।

ट्रियर के बाद आदो रोम की तीर्थयात्रा पर चले गये तथा दो वर्षों तक रोम में रहे। यहाँ से वे इटली के रावेन्ना नगर गये जहाँ उन्हें रोमी शहादतनामे की एक पुरानी प्रति मिली। इसका उपयोग कर आदो ने रोमी शहादतनामे का एक नया संस्करण लिखा जो सन् 858 ई. में प्रकाशित हुआ। तदोपरान्त, लियों के महाधर्माध्यक्ष सन्त रेमेजियुस ने आदो को अपने यहाँ बुलाया ताकि वे लियों के लोगों की प्रेरितिक देखरेख कर सकें।

सन् 860 ई. तक आदो लियों के पल्ली पुरोहित रहे जिसके बाद सन्त पापा निकोलस प्रथम ने उन्हें, उनके जन्म स्थल, वियेन्ने का महाधर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया। महाधर्माध्यक्ष आदो ने वियेन्ने के याजकीय जीवन में कई सुधार किये तथा सन्त देसीदेरियुस एवं सन्त थेओदेरिस के जीवन चरित्रों की रचना की। इसी समय उन्होंने लॉरेन के राजा लोथेर के भोगविलासी जीवन की भी कड़ी आलोचना की जो उस समय अपनी धर्मपत्नी को छोड़ अपनी रखेल के साथ प्रेम प्रसंग में पड़ा था। लोथेर ने अपनी रानी एवं विधिसम्मत पत्नी थोएटबेर्गा से तलाक लेने के लिये अधिकारियों को घूँस दे रखी थी किन्तु जब महाधर्माध्यक्ष आदो ने राजा की शिकायत रोम जाकर सन्त पापा से की तब उसकी कुयोजना नाकाम हो गई।

अपने जीवन के अन्त तक महाधर्माध्यक्ष आदो वियेन्ने में ही रहे। सन् 875 ई. में उनका निधन हो गया। महाधर्माध्यक्ष एवं ईशशास्त्री सन्त आदो का स्मृति दिवस 16 दिसम्बर को मनाया जाता है। 

चिन्तनः "पुत्र! मेरी बातों पर ध्यान दो; तुम्हारी आँखें मेरे आचरण पर टिकी रहें। वेश्या गहरा गड्ढा है और परस्त्री सँकरा कुआँ। वह डाकू की तरह घात में बैठती है और बहुत-से पुरुषों को व्यभिचारी बना लेती है। कौन दुःखी है? कौन शोक मनाता है? कौन झगड़ा लगाता है? कौन शिकायत करता है? कौन अकारण घायल हो जाता है? किस की आँखे लाल है?यह उनकी दशा है, जो देर तक अंगूरी पीते; जो मिश्रित अँगूरी के प्याले चखते रहते हैं। लाल-लाल अंगूरी पर दृष्टि मत लगा, जो प्याले में बुदबुदाती है। वह पीते समय मधुर लगती है, किन्तु अन्त में साँप की तरह डसती और करैत की तरह विष उगलती है" (सूक्ति ग्रन्थ 23:26-।    








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