2015-12-16 10:42:00

कलीसिया को विनम्र और प्रभु में विश्वास करनेवाली होना चाहिये


वाटिकन सिटी, बुधवार, 16 दिसम्बर 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि कलीसिया को विनम्र और प्रभु में विश्वास करनेवाली होना चाहिये तथा अपनी सत्ता का प्रदर्शन कदापि नहीं करना चाहिये। उसे इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिये कि उसका धन वैभव निर्धन लोग हैं।

वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए मंगलवार को सन्त पापा ने कहा कि कलीसिया को सजग रहना चाहिये क्योंकि प्रलोभन कलीसिया के साक्ष्य को भ्रष्ट कर सकता है। उन्होंने कहा, "ऐसी कलीसिया जो प्रभु में पूर्ण विश्वास और भरोसा रखती है उसे विनम्र, अकिंचन और विश्वासमन्द होना चाहिये।"

उन्होंने कहा कि विनम्र होने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हम पापी हैं। यह कोई नाटकीय व्यवहार नहीं है अपितु यथार्थ विनम्रता की मांग है। उन्होंने कहा कि अन्यों के पाप को इंगित करने से पहले कलीसिया के सदस्यों को ख़ुद अपनी ग़लतियों को पहचान कर उन्हें स्वीकार करना चाहिये तथा उनके लिये पश्चाताप कर क्षमा की याचना करना चाहिये।

दूसरा अनिवार्य सदगुण है, उन्होंने कहा, "अकिंचनता धारण करना, मन से दीन बनना जो प्रभु येसु द्वारा सिखाये आशीर्वचनों में सबसे पहला आशीर्वचन है।"  उन्होंने कहा कि हमें ऐसी कलीसिया का बहिष्कार कर देना चाहिये जो धन के प्रति आसक्त है और सब समय धन कमाने के जरिये खोजा करती है। पहली सहस्राब्दि के सन्त लॉरेन्स का उदाहरण प्रस्तुत कर सन्त पापा ने कहा कि उन्होंने सम्राट के समक्ष दरिद्रों एवं निर्धनतम लोगों को प्रस्तुत कर कहा था कि वे ही कलीसिया का सोना और चाँदी थे। उन लोगों को भी उन्होंने फटकार बताई थी जो गिरजाघरों के द्वार पार करने के लिये लोगों से पैसे मांगा करते थे।

सन्त पापा ने कहा कि धन, सत्ता एवं मित्रों में विश्वास करने के बजाय कलीसिया के सदस्य प्रभु ईश्वर में विश्वास करें जो कभी भी निराश नहीं करते तथा उपयुक्त समय पर हमारी सहायता करते हैं। 








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