2015-12-08 12:14:00

पवित्र द्वार खोलकर सन्त पापा ने किया करुणा की जयन्ती का उदघाटन


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 8 दिसम्बर 2015 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में मंगलवार को निष्कलंक माँ मरियम के महापर्व के उपलक्ष्य में सन्त पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

"न्याय के द्वारों को खोलों..." इन शब्दों से सन्त पापा ने सन्त पेत्रुस महागिरजाघर का पवित्र द्वार खोलकर करुणा को समर्पित जयन्ती वर्ष का शषुभारम्भ किया।

ख्रीस्तयाग समारोह के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने इसी सन्दर्भ में कहा,

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, कुछ ही क्षणों में मुझे करुणा के पवित्र द्वार खोलने का सौभाग्य प्राप्त होगा। इस साधारण तथापि गहन प्रतीकात्मक कृत्य का सम्पादन हम ईश वचन के प्रकाश में कर रहे हैं जिसका श्रवण हमने अभी-अभी किया। ईश्वर का वचन कृपा की श्रेष्ठता को प्रकाशमान करता है। बारम्बार पवित्र धर्मग्रन्थ के ये पाठ हमें उन शब्दों की याद दिलाते हैं जिनके द्वारा गाब्रिएल महादूत ने उस रहस्य के विषय में एक युवा बाला को बताया जो उन पर प्रकट होने वाला था: "प्रणाम, कृपापूर्ण" (लूकस 1:28)।" सर्वप्रथम तो मरियम उस तथ्य पर आनन्दित होने के लिये  आमंत्रित की गई थीं जो प्रभु ने उनमें पूरा किया था। ईश्वर की कृपा ने उनका आलिंगन किया और उन्हें ख्रीस्त की माता बनने के योग्य बनाया। जब गाब्रिएल महादूत ने उनके घर में प्रवेश किया तब गहन से गहन तथा अभेद्य से अभेद्य रहस्य भी उनके लिये हर्ष, विश्वास एवं उन्हें मिले सन्देश के प्रति समर्पण का कारण बन गये।"

सन्त पापा ने कहा, "कृपा की पूर्णता मानव मन को रूपान्तरित कर देती तथा उसे ऐसा कुछ करने में समर्थ बना देती है जिसमें मानव इतिहास को बदल देने की क्षमता निहित रहा करती है।"  

उन्होंने कहा कि इस प्रकार, "निष्कलंक माँ मरियम का पर्व ईश प्रेम के वैभव को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। ईश्वर का प्रेम केवल पापों की ही क्षमा नहीं देता अपितु मरियम में वह उस आदि पाप के दाग को भी हटा देता है जो इस विश्व में आनेवाले प्रत्येक स्त्री और पुरुष के अन्तर में विद्यमान रहता है। यही है ईश्वर का प्रेम जो आगे-आगे चलता, पूर्वाभास दिलाता तथा मुक्ति प्रदान करता है। अदन की वाटिका में पाप के इतिहास का प्रारम्भ उद्धारकारी प्रेम में प्रस्फुटित होता है। उत्पत्ति ग्रन्थ के शब्द हमारे दैनिक अनुभव को प्रतिबिम्बित करते हैं: हम अनवरत अवज्ञा के प्रलोभन में पड़ते हैं, हमारी यह अवज्ञा ईश इच्छा की परवाह किये बिना जीवन यापन की चाह में अभिव्यक्त होती है। यही है वह वैमनस्यता जो लोगों के जीवन पर प्रहार करती रहती तथा उन्हें ईश योजना के विरुद्ध बना देती है। तथापि,"  सन्त पापा ने कहा, "पाप का इतिहास केवल ईश्वर के प्रेम एवं उनकी क्षमा के प्रकाश में ही समझा जा सकता है। यदि ऐसा होता कि पाप ही हमारे जीवन में सब कुछ होता तब तो हम प्राणियों में सर्वाधिक निराश प्राणी होते। किन्तु प्रभु ख्रीस्त द्वारा प्रतिज्ञात विजय सब कुछ को ईश्वर की करुणा में प्रकट करती है। ईश वचन जो हमने अभी-अभी सुना इस बात पर कोई सन्देह नहीं प्रकट करता। इस प्रतिज्ञा और इसकी परिपूर्णता के विशिष्ट साक्ष्य रूप में निष्कलंक कुँवारी हमारे समक्ष प्रस्तुत हैं।"        

सन्त पापा ने आगे कहा, "यह असाधारण पवित्र वर्ष अपने आप में कृपा का एक वरदान है। पवित्र द्वार की देहलीज़ पार करने का अर्थ है पिता ईश्वर की असीम दया की पुनर्खोज करना जो सभी को आमंत्रित करते तथा प्रत्येक के साथ साक्षात्कार हेतु व्यक्तिगत रूप से आगे आते है। यह वह वर्ष होगा जिसमें ईश्वर की करुणा पर अपने विश्वास को सुदृढ़ कर पायेंगे। सन्त अगस्टीन लिखते हैं: ईश्वर एवं उनकी कृपा के प्रति हम कितना ग़लत करते हैं जब हम हमारे पापों के ईश्वर द्वारा क्षमा कर दिये जाने से पहले ही उनके लिये ईश्वर की सज़ा के बारे में बोलने लगते हैं (दे. सन्त अगस्टीन, दे प्रेदेस्तिनात्सियोने सान्कतोरुम, 12,24)! किन्तु यही सच है।

सन्त पापा ने कहा, "हमें न्याय अथवा दण्ड से पहले करुणा को जगह देनी होगी और यह समझना होगा कि किसी भी स्थिति में ईश्वर का न्याय सदैव उनकी करुणा के प्रकाश में होगा। अस्तु, पवित्र द्वार को पार करते हुए हम यह अनुभव करें कि हम भी प्रेम के उस रहस्य के अंग हैं। आइये सभी भय एवं आशंकाओं को हम एक ओर रखें इसलिये कि प्रेम पाने योग्य स्त्री-पुरुषों से ये मेल नहीं खाती हैं।  इसके विपरीत, उस कृपा के साक्षात्कार के आनन्द का अनुभव करें जो सब कुछ को रूपान्तरित कर देती है।" 

सन्त पापा ने आगे कहा, "आज जब हम पवित्र द्वार को पार कर रहे हैं तब हम एक और द्वार की याद करना चाहते हैं जिसे पचास वर्षों पूर्व द्वितीय वाटिकन महासभा के पितामहों ने सम्पूर्ण विश्व के लिये खोला था। इस वर्षगाँठ की स्मृति केवल, विश्वास के महान विकास का साक्ष्य प्रस्तुत करनेवाले महासभा के दस्तावेज़ों की धरोहर रूप में ही नहीं मनाई जा सकती। सबसे पहले महासभा एक साक्षात्कार थी। कलीसिया एवं हमारे युग के स्त्री –पुरुषों के बीच एक यथार्थ साक्षात्कार। पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से चिह्नित साक्षात्कार जिन्होंने कलीसिया को उन फ़न्दों से मुक्त होने के लिये प्रेरित किया जिनमें वह वर्षों से अपने आप में सिमटी हुई थी ताकि वह एक बार फिर उत्साहपूर्वक अपनी मिशनरी यात्रा पर निकल पड़े।"     

उन्होंने कहा, "यह ऐसी यात्रा पर फिर से निकल पड़ना था जिसमें वह लोगों के साथ उन स्थलों पर मिली जहाँ वे निवास करते है: उनके शहरों में, उनके घरों में और उनके कार्यस्थलों पर। जहाँ कहीं भी लोग हैं वहाँ तक पहुँचने के लिये कलीसिया बुलाई गई है ताकि आनन्द का सुसमाचार सुना सके। दशकों के बाद हम एक बार फिर उसी शक्ति और उत्साह के साथ इस मिशनरी यात्रा का पुनरारम्भ करते हैं। जयन्ती वर्ष इस उदारता हेतु हमें चुनौती देता है  तथा मांग करता है कि हम द्वितीय वाटिकन महासभा से प्रस्फुटित भाव की उपेक्षा न करें, महासभा के समापन के अवसर पर उच्चरित सन्त पापा पौल षष्टम के शब्दों में, भले समारी की उदारता को याद करें। पवित्र द्वार से हमारा आज गुज़रना हम सब को भले समारी की दया को अपनाने के प्रति समर्पित रखे।    








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