वाटिकन सिटी, सोमवार, 7 दिसम्बर 2015 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर
के प्राँगण में रविवार 6 दिसम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत
प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित
कर कहा,
अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात,
आगमन के दूसरे रविवार की धर्मविधि, हमें
संत योहन बपतिस्ता के उपदेश पर चिंतन करने का निमंत्रण देती है जिन्होंने लोगों को पश्चाताप
के बपतिस्मा का उपदेश दिया था। (लूक.3:3) हम भी अपने आप से पूछ
सकते हैं कि हमें क्यों पश्चाताप की आवश्यकता है?
संत पापा ने कहा कि हम सोच सकते हैं कि
पश्चाताप या मन-परिवर्तन एक अविश्वासी का विश्वासी बनने तथा पापी के सुधार के लिए आवश्यक
है चूँकि हम ख्रीस्तीय हैं अतः हमें मन-परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि
यह सच नहीं है क्योंकि ख्रीस्तीय होते हुए भी क्या हम जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में
येसु के मनोभाव को पूरी तरह अपना पाते हैं, क्या हम क्षमा देने में कठिनाई महसूस नहीं
करते तथा अन्यों की खुशी एवं दुःख में पूर्णतः सहभागी हो पाते हैं? जब हम अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करते हैं तो क्या हम सुसमाचार के प्रति लज्जा अनुभव
किये बिना साहस एवं सरलता के साथ उसे प्रकट कर सकते हैं? इस प्रकार, यदि हम अपने आप से इन सवालों को पूछेंगे तो पायेंगे
कि हम सही स्थिति में नहीं हैं और हमें येसु के मनोभाव को धारण करने के लिए निरन्तर पश्चाताप
की आवश्यकता है।
संत पापा ने कहा कि संत योहन बपतिस्ता
की पुकार आज भी मानवता के रेगिस्तान में सुनाई पड़ रही है। आधुनिक युग का रेगिस्तान क्या
है? उन्होंने कहा कि आज का रेगिस्तान है बंद मन तथा कठोर हृदय। आज नबी इसायस की भविष्यवाणी
हमें चेतावनी दे रही है, ″प्रभु का मार्ग तैयार करो उनके पथ सीधे
कर दो।″ (पद.4) यह हमारे हृदय द्वार खोलने तथा ईश्वर की मुक्तिदायी
कृपा को स्वीकार करने का एक सशक्त निमंत्रण है जो हमें पापों के सभी बंधनों से मुक्त
करता है। आगे नबी भविष्यवाणी करते हैं कि ″सब शरीरधारी ईश्वर के मुक्ति विधान के दर्शन करेंगे।″ (पद.6) मुक्ति सभी लोगों को प्रदान की गयी है। हम में से कोई यह दावा नहीं कर सकता
कि मैं पवित्र हैं, पूर्ण हूँ अथवा मैं मुक्ति प्राप्त कर चुका हूँ। नहीं, हमें मुक्ति
की कृपा को स्वीकार करने की आवश्यकता है जिसके लिए करुणा का वर्ष हमें इस मुक्ति के रास्ते
पर ले चलेगा, वह रास्ता जिसपर येसु ने हमें चलना सिखाया है ″क्योंकि वे चाहते हैं कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें तथा सत्य को जानें।″ (1तिम.2,4-6)
इस प्रकार, हम सभी उन लोगों को येसु के
बारे बतलाने के लिए बुलाये गये हैं जो उन्हें अब तक नहीं जानते किन्तु इसका अर्थ धर्मांतरण
नहीं है। यह द्वार खोलना है। प्रेरित संत पौलुस घोषित करते हैं, ″धिक्कार मुझे यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ।″ (1कोर.9:16) संत पापा ने कहा कि यदि हम प्रभु येसु में अपने जीवन का परिवर्तन करते हैं तो
जब-जब हम अपने में परिवर्तन लाते हम उनके करीब आते हैं अतः जहाँ हम काम करते, स्कूलों,
अस्पतालों तथा अन्य स्थानों में हम कैसे दूसरों को भी येसु के करीब आने में मदद न करें? हम यदि अपने चारों ओर दृष्टि डालेंगे तथा येसु के प्रेम
से लोगों के साथ मुलाकात करेंगे, तो हम पायेंगे कि कितने लोग अपनी विश्वास यात्रा शुरू
करने अथवा पुनः शुरू करने के लिए तैयार हैं।
विश्वासियों के चिंतन हेतु संत पापा ने
कुछ प्रश्न रखे, ″क्या मैं सचमुच येसु से प्रेम करता हूँ,
क्या मुझे पक्का विश्वास है कि येसु मुझे मुक्ति प्रदान करते हैं?″ संत पापा ने कहा कि यदि हम येसु से प्रेम करते हैं तो हमें उन्हें जानना चाहिए।
हमें साहसी बनना, घमंड एवं बदले की भावना के पहाड़ को ढाह देना, उदासीनता द्वारा खोदे
गये नाले को भर कर रास्ता तैयार करना तथा आलस्य एवं मध्यमार्ग के रास्ते को सीधा करना
चाहिए।
संत पापा ने धन्य कुँवारी मरियम से प्रार्थना
की कि वे जो एक माता हैं, जीवन में मन-परिवर्तन हेतु सभी घेरों एवं बाधाओं को दूर करना
जानती हैं हमें प्रभु की ओर बढ़ने में हमारा मार्ग दर्शन करें क्योंकि केवल येसु ही हमारी
आशाओं को पूर्णता प्रदान कर सकते हैं।
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय
के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
देवदूत प्रार्थना के उपरांत संत पापा
ने विभिन्न विषयों पर जानकारी प्रस्तुत की उन्होंने कहा, ″मैं पेरिस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के कार्यों पर ध्यान दे रहा हूँ तथा
मुझे एक सवाल की याद आ रही है जिसको मैंने प्रेरितिक पत्र ‘लाओदातो सी’ में पूछा है,
हम भावी पीढ़ी के बच्चों के लिए किस तरह के विश्व को देने जा रहे हैं?″(न.160) हमारे तथा भावी पीढ़ी के सामान्य घर के लिए, पेरिस सम्मेलन के सभी प्रयासों
को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए होनी चाहिए और साथ ही, निर्धनता तथा
मानव प्रतिष्ठा की सुरक्षा हेतु चुनौतियों का सामना करने का उपाय किया जाना चाहिए।
मानव प्रतिष्ठा के विस्तार के लिए जलवायु
परिवर्तन को रोकना तथा ग़रीबी दूर करना ये दोनों साथ-साथ चलते हैं। संत पापा ने सम्मेलन
के सभी प्रतिभागियों के लिए प्रार्थना की कि पवित्र आत्मा महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले
सभी लोगों को ज्योति तथा साहस प्रदान करे ताकि वे समस्त मानव के बृहद परिवार को बेहतर
बनाये रखने के लिए मापदंड तैयार कर सकें।
संत पापा ने काथलिक एवं ऑथोडोक्स कलीसियाओं
के बीच मेल मिलाप की महान घटना की 50 वीं वर्षगाँठ की याद करते हुए कहा कि 7 दिसम्बर
1965 ई. को संत पापा पौल षष्ठम एवं प्राधिधर्माध्यक्ष अथनागोरस की संयुक्त घोषणा के साथ
द्वितीय वाटिकन महासभा का समापन हुआ था जिसने सन 1054 ई. के रोम एवं पूर्वी रीति की कलीसियाओं
के एक-दूसरे को बहिष्कार करने की भावना को मिटा दिया था। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में
मेल-मिलाप के प्रतीक की एक ऐतिहासिक घटना है जिसने ऑथोडोक्स एवं काथलिक कलीसियाओं के
बीच प्रेम एवं सच्चाई से वार्ता का द्वार पुनः खोल दिया है। इसका एक खास रास्ता है जिसके
तहत हमें विभाजन के पाप के लिए एक दूसरे से क्षमा मांगना है। संत पापा ने ऑथोडॉक्स कलीसिया
के प्राधिधर्माध्यक्ष के लिए प्रार्थना अर्पित की तथा कहा कि काथलिक एवं ऑथोडोक्स कलीसिया
भ्रातृ प्रेम की भावना से सदा प्रेरित होता रहे।
संत पापा ने पेरू में धन्य घोषणा की जानकारी देते हुए कहा कि कल पेरू में मैकेल तोमास्कज़े तथा ज्बींनींव स्त्राजालकोस्की तथा अलेसांद्रो दोरदी की धन्य घोषणा हुई जो सन् 1991 ई.
में विश्वास के कारण शहीद हो गये थे। ख्रीस्त के प्रति उन शहीदों की निष्ठा हमें ख्रीस्त
का अनुसरण करने की शक्ति प्रदान करे विशेषकर, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अत्याचार
के शिकार ख्रीस्तीय सुसमाचार का साहसिक साक्ष्य दे सकें।
अंत में संत पापा ने देश विदेश से एकत्र सभी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन किया तथा सभी को शुभ रविवार एवं करूणा वर्ष की अच्छी तैयारी हेतु मंगलकामनाएँ अर्पित की।
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