2015-11-28 12:38:00

"अफ्रीका आशा का महाद्वीप" सन्त पापा फ्राँसिस


यूगाण्डा, शनिवार, 28 नवम्बर 2015 (सेदोक): विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस ने अफ्रीका को "आशा का महाद्वीप" घोषित कर यूगाण्डा के अति विख्यात ख्रीस्तीय शहीदों के प्रति श्रद्धान्जलि अर्पित की। 

अफ्रीकी देशों में अपनी छः दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दूसरे चरण में शुक्रवार को सन्त पापा फ्राँसिस केनिया से यूगाण्डा के एन्तेब्बे अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पधारे जहाँ यूगाण्डा के राष्ट्रपति योवेरी मूसेवेनी ने सैन्य सलामी सहित उनका स्वागत किया। यूगाण्डा के पारम्परिक ढोलकियों एवं कमर मटकाते-घूमते नृतकों ने इस अवसर पर अपने यहाँ पधारे खास मेहमान के प्रति हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति की।

हवाई अड्डे से सात किलो मीटर की दूरी पर स्थित एन्तेब्बे के स्टेट हाऊस तक सन्त पापा के स्वागत में मार्गों के ओर-छोर यूगाण्डा के काले, पीले एवं लाल तथा वाटिकन के श्वेत एवं पीले रंगों के ध्वजों के बीच, लोग जयनारे लगाते खड़े थे। इन्हीं के साथ, सोमालिया स्थित अल-शबाब अल मुजाहिदीन चरमपंथी दल द्वारा किसी भी प्रकार के हमले को रोकने के लिये, सैकड़ों सैनिक तैनात थे। स्टेट हाऊस में राष्ट्रपति मुसेवेनी, यूगाण्डा के वरिष्ठ सरकारी, प्रशासनिक एवं कलीसियाई  अधिकारियों सहित देश में सेवारत विश्व के राजनयिकों ने सन्त पापा का हार्दिक स्वागत किया।

यूगाण्डा में सन्त पापा फ्राँसिस की यात्रा का प्रमुख उद्देश्य यूगाण्डा के उन ख्रीस्तीय शहीदों के प्रति श्रद्धा व सम्मान प्रकट करना है जिनका वध, ख्रीस्तीय धर्म के बढ़ते प्रभाव से भयभीत   एक स्थानीय राजा के आदेश पर,19 वीं शताब्दी में कर दिया गया था।

यूगाण्डा के शहीद नाम से विख्यात इन ख्रीस्तीयों में 23 एंगलिकन ख्रीस्तीय एवं 22 काथलिक धर्मानुयायी शामिल हैं जो अपने ख्रीस्तीय विश्वास के ख़ातिर सन् 1885 ई. एवं 1887 ई. के दरम्यान मार डाले गये थे। इनमें से 22 काथलिक शहीदों को सन्त पापा पौल षष्टम ने सन् 1964 ई. में सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। इन शहीदों की सन्त घोषणा की 50 वीं वर्षगाँठ पर इनके प्रति श्रद्धा अर्पित करना सन्त पापा की यूगाण्डा यात्रा का प्रमुख लक्ष्य रहा है। शहीदों के स्मरणार्थ नामूगॉन्गो में निर्मित तीर्थस्थल पर सन्त पापा फ्राँसिस यूगाण्डा के काथलिकों के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित कर रहे हैं। इस तीर्थ का निर्माण उसी स्थल पर किया गया है जहाँ शहीदों को आग हवाले कर भस्म कर दिया गया था।

राष्ट्रपति मूसेवेनी तथा यूगाण्डा के वरिष्ठ अधिकारियों को सम्बोधित कर सन्त पापा ने शहीदों के प्रति श्रद्धान्जलि अर्पित करते हुए कहाः "काथलिक और एंगलिकन ख्रीस्तीय शहीद राष्ट्र के सच्चे ओजस्वी अभिनायक हैं। वे, -ईश्वर के लिये और मेरे देश के लिये- यूगाण्डा के मार्गदर्शक सिद्धान्तों एवं आदर्श वाक्य का यथार्थ साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। वे हमें, जनकल्याण के लिये, विश्वास, नैतिक ईमानदारी तथा प्रतिबद्धता के महत्व की याद दिलाते हैं जिन्होंने इस राष्ट्र के सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।"

उन्होंने कहा, "वे हमें इस बात का भी स्मरण दिलाते हैं कि हमारी विविध आस्थाओं एवं विश्वास के बावजूद हम सब सत्य, न्याय एवं पुनर्मिलन की खोज तथा एक मानव परिवार के सदस्य होने के नाते एक दूसरे की रक्षा करने और एक दूसरे का सम्मान करने के लिये बुलाये गये हैं।"

सन्त पापा ने कहा कि यूगाण्डा के अधिकारियों से, विशेष रूप से, इस प्रकार के उदात्त आदर्शों की मांग की जाती है जिनपर स्वस्थ एवं पारदर्शी प्रशासन, अखण्ड मानव विकास, राष्ट्रीय जीवन में उदार भागीदारी और साथ ही ईश्वर द्वारा इस भूमि को प्रदत्त संसाधनों के विवेकपूर्ण एवं न्याय पर आधारित वितरण की ज़िम्मेदारी है।

अफ्रीका के प्रति ध्यान आकर्षित कराते हुए उन्होंने कहा, "मेरी यात्रा का उद्देश्य सम्पूर्ण अफ्रीका के प्रति, उसकी प्रतिज्ञाओं, आशा एवं आकाँक्षाओं, उसके संघर्षों एवं उसकी उपलब्धियों के प्रति     ध्यान आकर्षित कराना है।" उन्होंने कहा, "विश्व "आशा के महाद्वीप" रूप में अफ्रीका की ओर दृष्टि लगाये हुए है।"       

शरणार्थियों को पनाह देने के लिये यूगाण्डा की सराहना करते हुए सन्त पापा ने कहाः " यहाँ पूर्वी अफ्रीका में, यूगाण्डा ने शरणार्थियों का स्वागत कर उन्हें प्रतिष्ठा और ईमानदारी के साथ अपनी जीविका कमाने के अवसर दिये हैं। हमारा विश्व युद्धों, हिंसा एवं विभिन्न प्रकार के अन्यायों से घिरा है तथा लोगों के अभूतपूर्व आप्रवास का दीदार कर रहा है। इन लोगों के प्रति हमारा क्या व्यवहार है? इसी कसौटी पर ज़रूरतमन्द के प्रति हमारी मानवता, मानव प्रतिष्ठा के प्रति हमारे सम्मान और सबसे बढ़कर हमारी एकात्मता को परखा जायेगा।   

सन्त पापा ने कहा कि हालांकि यूगाण्डा में उनकी यात्रा एक छोटी सी यात्रा है तथापि वे निर्धनों, रोगियों तथा कष्ट में पड़े सभी लोगों की देख-रेख को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "गहन चिन्ता के साथ हम "फेंक देने वाली संस्कृति" के वैश्वीकरण को देख रहे हैं। जो आध्यात्मिक मूल्यों को अन्धा बना देती, ज़रूरतमन्दों के प्रति हमारे हृदयों को कठोर कर देती तथा हमारे युवाओं की आशा को छीन लेती है।"      








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