2015-11-27 12:15:00

सन्त पापा ने केनिया के पुरोहितों एवं धर्मबहनों से किया सेवा करने का आह्वान


नायरोबी, शुक्रवार, 27 नवम्बर 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने अफ्रीका में अपनी छः दिवसीय यात्रा के दौरान गुरुवार को नायरोबी में राष्ट्र के लगभग एक हज़ार काथलिक पुरोहितों एवं धर्मसंघियों से मुलाकात कर उनका आह्वान किया कि वे सेवा के लिये सदैव तत्पर रहें। उन्होंने कहा कि वे अन्यों की सेवा करें तथा अन्यों से सेवा की अपेक्षा कदापि न करें।

पुरोहितों एवं धर्मसंघियों को दिये सन्देश में सन्त पापा ने कहा कि जो व्यक्ति समर्पित जीवन यापन का फैसला करते हैं वे ईश्वर द्वारा विशेष रूप से एक मिशन के लिये बुलाये गये हैं। वे प्रभु येसु के अनुसरण के लिये बुलाये गये ताकि लोगों की सेवा कर सकें इसलिये पुरोहितों एवं धर्मबहनों का लक्ष्य केवल सेवा करना होना चाहिये अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये वे कदापि इस जीवन का चयन न करें। उन्होंने कहा, "येसु का अनुसरण करने वालों के जीवन में निजी स्वार्थ एवं व्यक्तिगत लक्ष्यों की पूर्ति के लिये कोई स्थान नहीं। आप लोग यह भली भाँति समझ लें कि येसु का अनुसरण करने वाले के जीवन में न तो अपने लक्ष्यों की पूर्ति, न ही धन वैभव एकत्र करने और न हीं विश्व में नाम कमाने के लिये कोई जगह है। येसु का अनुसरण सभी मायनों में करना आपका दायित्व है उनके क्रूस की पीड़ा को सहना तथा उनके नाम पर लोगों की सेवा करना आपका परम दायित्व है।"

सन्त पापा ने पुरोहितों एवं धर्मबहनों को चेतावनी दी कि "कलीसिया कोई औद्योगिक कम्पनी नहीं है और न ही कोई ग़ैरसरकारी संगठन है जहाँ धन और नाम कमाने के प्रयास किये जायें।"

सन्त पापा ने बात का भी स्मरण दिलाया कि हालांकि पौरोहित्य जीवन अथवा समर्पित जीवन के लिये बुलाये गये व्यक्तियों ने ईश्वर का बुलाहट प्राप्त की है तथापि ऐसा नहीं है कि उनमें त्रुटियाँ नहीं हैं। वे भी सामान्य लोग हैं, वे भी पापी हैं जिनसे अपने पापों पर पश्चाताप की अपेक्षा की जाती है। सन्त पापा ने कहा कि अपने पापों पर सभी को पश्चाताप करना चाहिये जैसा कि प्रेरित सन्त योहन एवं याकूब भी अपने पापों पर रोये थे। उन्होंने कहा कि पुरोहितों एवं धर्मबहनों के लिये भी कभी कभी रोना स्वाभाविक है, "आप रोना बन्द न करें, जब कोई पुरोहित अथवा धर्मसंघी या धर्मबहन के आँसू ख़त्म हो जाते हैं तब यह समझ लिया जाना चाहिये कि सबकुछ ठीक नहीं है। अपनी विश्वासघात के कारण रोना, विश्व के दुःख-दर्दों के लिये रोना, समाज से बहिष्कृत लोगों के लिये रोना, परित्क्त वयोवृद्धों के लिये रोना, हत्या के शिकार निर्दोष बच्चों के लिये रोना और प्रश्न करना कि आख़िर क्यों? यह बिलकुल स्वाभाविक है किन्तु इन सब व्यथाओं को क्रूसित येसु की पीड़ा मानकर सहना ही धर्मसमाजी एवं धर्मसंघी का दायित्व है।"   








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