2015-11-06 14:44:00

वाटिकन ने हिन्दूओं को दीपावली की शुभकामनाएँ प्रेषित की


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 6 नवम्बर 2015 (वीआर सेदोक): 11 नवम्बर को मनाये जाने वाले हिन्दूओं के महोत्सव दीपावली के शुभावसर पर, वाटिकन ने सभी हिन्दूओं को त्यौहार की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए मानवीय पारिस्थितिकी को प्रोत्साहन देने हेतु मिलकर कार्य करने का प्रोत्साहन दिया।

अंतरधार्मिकवार्ता हेतु परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल ज़ाँ लुईस तौरान ने संदेश में कहा, ″अन्तरधार्मिक सम्वाद सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद, आगामी 11 नवम्बर को मनाये जानेवाले दीपावली महोत्सव के अवसर पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित करती है। सम्पूर्ण विश्व में मनाये जा रहे समारोह आपको, आपके परिवारों एवं समुदायों को आनन्द एवं मैत्री के अनुभव की ओर अग्रसर करें।″

उन्होंने कहा कि सन्त पापा फ्राँसिस के विश्व पत्र "लाओदातो सी" में धरती को जोखिम में डाल रहे पर्यावरणीय एवं मानवीय पारिस्थितिकी सम्बन्धी संकट की ओर ध्यान आकर्षित कराया है। इस सन्दर्भ में, हम मानवीय पारिस्थितिकी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर कुछ विचार आपके साथ बाँटने तथा सृष्टि की अन्तःसम्बद्धता की पुनर्खोज को परिपोषित करना उपयुक्त मानते हैं।

कार्डिनल तौरान ने कहा कि मानव स्वार्थ, प्रकृति के "रखवाले" एवं "प्रबन्धक" होने के बजाय इसके "स्वामी" और "विजेता" होने की अतोषणीय लालसा को पाले रखता है। हमारी अपनी-अपनी धार्मिक आस्था अथवा राष्ट्रीय पहचान जो भी हो, हम सब, अपने समक्ष प्रस्तुत पारिस्थितिकी सम्बन्धी चुनौतियों के अनुसार, प्रकृति के प्रति महान ज़िम्मेदारी के साथ जीने, जीवनदायी सम्बन्धों को संपोषित करने और इससे भी बढ़कर अपनी जीवन शैलियों एवं आर्थिक संरचनाओं को पुनर्व्यवस्थित करने के लिये बुलाये गये हैं। ख्रीस्तीय धर्म सिखाता है कि सृजित विश्व सभी मानव प्राणियों के लिये ईश-प्रदत्त् वरदान है। अतः हम इसके प्रबन्धक होने के नाते उत्तरदायित्व के साथ एवं दृढ़तापूर्वक इसकी देखभाल के लिये बुलाये गये हैं।

उन्होंने कहा कि सृष्टि के साथ हमारे सामंजस्य तथा एक दूसरे के साथ हमारी शांति के बीच एक अविभाज्य सम्बन्ध है। यदि शांति को विश्व में प्रबल होना है तो हमें "प्रकृति की सुरक्षा, निर्धनों के बचाव तथा सम्मान एवं भ्रातृत्व के तन्त्रों के निर्माण हेतु"(लाओदोतो सी, 201), एक साथ मिलकर एवं व्यक्तिगत रूप से भी, सचेतन समर्पित होना पड़ेगा। पृथ्वी के संसाधनों के विवेकपूर्ण प्रबन्धन में प्रशिक्षण एवं शिक्षा की आवश्यकता है। यह परिवार में शुरू होता है जो "मानव पारिस्थितिकी की प्रथम एवं बुनियादी संरचना है ... जिसमें मनुष्य सत्य एवं भलाई पर अपने निर्माणात्मक विचारों को प्राप्त करता है, प्यार करने एवं प्यार पाने के अर्थ को और इस प्रकार व्यक्ति होने के मर्म को समझता है।″

अंतरधार्मिकवार्ता हेतु परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल तौरान ने ख्रीस्तीयों एवं हिन्दूओं को एकजुट होने की अपील करते हुए कहा कि ″अपनी मानवता एवं परस्पर ज़िम्मेदारी और साथ ही हमारे साझा मूल्यों एवं प्रतिबद्धताओं में एकजुट होकर, हम हिन्दू एवं ख्रीस्तीय धर्मानुयायी, अन्य धार्मिक परम्पराओं के समस्त लोगों एवं शुभचिन्तकों के साथ मिलकर, सदैव ऐसी संस्कृति को विकसित करें जो मानवीय पारिस्थितिकी को बढ़ावा दे। 

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ख्रीस्तीय एवं हिन्दू धर्मानुयायी

मानवीय पारिस्थितिकी को प्रोत्साहन देने हेतु मिलकर कार्य करें

प्रिय हिन्दू मित्रो,

अन्तरधार्मिक सम्वाद सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद, आगामी 11 नवम्बर को मनाये जानेवाले  दीपावली महोत्सव के अवसर पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित करती है। सम्पूर्ण विश्व में मनाये जा रहे समारोह आपको, आपके परिवारों एवं समुदायों को आनन्द एवं मैत्री के अनुभव की ओर अग्रसर करें।
सन्त पापा फ्राँसिस ने, हाल ही में, अपने विश्व पत्र "लाओदातो सी" में हमारी धरती को जोखिम में डाल रहे पर्यावरणीय एवं मानवीय पारिस्थितिकी सम्बन्धी संकट की ओर ध्यान आकर्षित कराया है। इस सन्दर्भ में, अपनी पोषित परम्परा को ध्यान में रखते हुए, हम मानवीय पारिस्थितिकी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर कुछ विचार आपके साथ बाँटने तथा सृष्टि की अन्तःसम्बद्धता की पुनर्खोज को परिपोषित करना उपयुक्त मानते हैं। मानवीय पारिस्थितिकी धरती के प्रति मनुष्यों के सम्बन्ध एवं उनकी ज़िम्मेदारी तथा "पारिस्थितिकी सदगुणों" के संपोषण की ओर इंगित करती है। इन गुणों में, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, मानव प्राणी एवं प्रकृति की अन्तःसम्बद्धता एवं परस्पर निर्भरता का सम्मान करनेवाली नीतियों को अपना कर पृथ्वी के संसाधनों का धारणीय उपयोग करना शामिल है। जैसा कि हम जानते हैं, इन मुद्दों का प्रभाव मानव परिवार के धाम अर्थात् हमारी धरती पर ही नहीं अपितु भावी पीढ़ियों पर भी सीधा पड़ता है।
मानव स्वार्थ, जैसा कि कुछ व्यक्तियों और समूहों में व्याप्त उपभोक्तावादी और भोगवादी  प्रवृत्तियों को देखा गया है, प्रकृति के "रखवाले" एवं "प्रबन्धक" होने के बजाय इसके "स्वामी" और "विजेता" होने की अतोषणीय लालसा को पाले रखता है। हमारी अपनी-अपनी धार्मिक आस्था अथवा राष्ट्रीय पहचान जो भी हो, हम सब, अपने समक्ष प्रस्तुत पारिस्थितिकी सम्बन्धी चुनौतियों के अनुसार, प्रकृति के प्रति महान ज़िम्मेदारी के साथ जीने, जीवनदायी सम्बन्धों को संपोषित करने और इससे भी बढ़कर अपनी जीवन शैलियों एवं आर्थिक संरचनाओं को पुनर्व्यवस्थित करने के लिये बुलाये गये हैं। आपकी परम्परा प्रकृति, मानवता एवं दिव्य के "एकत्व" पर बल देती है। ख्रीस्तीय धर्म सिखाता है कि सृजित विश्व सभी मानव प्राणियों के लिये ईश-प्रदत्त् वरदान है। सृजित निकाय के प्रबन्धक होने के नाते हम उत्तरदायित्व के साथ एवं दृढ़तापूर्वक इसकी देखभाल के लिये बुलाये गये हैं।
सृष्टि के साथ हमारे सामंजस्य तथा एक दूसरे के साथ हमारी शांति के बीच एक अविभाज्य सम्बन्ध है। यदि शांति को विश्व में प्रबल होना है तो हमें "प्रकृति की सुरक्षा, निर्धनों के बचाव तथा सम्मान एवं भ्रातृत्व के तन्त्रों के निर्माण हेतु"(लाओदोतो सी, 201), एक साथ मिलकर एवं व्यक्तिगत रूप से भी, सचेतन समर्पित होना पड़ेगा। मानव पारिस्थितिकी के संवर्धन के लिये, सभी स्तरों पर, पारिस्थितिक चेतना और जिम्मेदारी में तथा पृथ्वी के संसाधनों के विवेकपूर्ण प्रबन्धन में, प्रशिक्षण एवं शिक्षा की आवश्यकता है। यह परिवार में शुरू होता है जो "मानव पारिस्थितिकी की प्रथम एवं बुनियादी संरचना है ... जिसमें मनुष्य सत्य एवं भलाई पर अपने निर्माणात्मक विचारों को प्राप्त करता है, प्यार करने एवं प्यार पाने के अर्थ को और इस प्रकार व्यक्ति होने के मर्म को समझता है" (सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय, विश्व पत्र चेन्तेसिमुस आन्नुस, 39)। शैक्षिक और सरकारी संरचनाओं की ज़िम्मेदारी है कि वे मानव पारिस्थितिकी तथा मानव परिवार एवं सृजित विश्व के भविष्य के साथ उसके सम्बन्ध पर, अपने नागरिकों में उचित समझदारी उत्पन्न करें।
अपनी मानवता एवं परस्पर ज़िम्मेदारी और साथ ही हमारे साझा मूल्यों एवं प्रतिबद्धताओं में एकजुट होकर, हम हिन्दू एवं ख्रीस्तीय धर्मानुयायी, अन्य धार्मिक परम्पराओं के समस्त लोगों एवं शुभचिन्तकों के साथ मिलकर, सदैव ऐसी संस्कृति को विकसित करें जो मानवीय पारिस्थितिकी को बढ़ावा दे। इस प्रकार हमारे अन्तर में, अन्यों के साथ तथा प्रकृति एवं ईश्वर के साथ हमारे रिश्तों में, सामन्जस्य होगा जो " ‘शांति के वृक्ष’ के विकास को समर्थन देगा"  (सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें, विश्व शांति दिवस का सन्देश, 2007)।
एक स्वस्थ पारिस्थितिकी के लिए प्रार्थना करना तथा विभिन्न तरीकों से प्रकृति की देखभाल के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना वास्तव में एक उदात्त कार्य है। इसीलिये सन्त पापा फ्रांसिस ने, प्रति वर्ष "सृष्टि की देखभाल हेतु विश्व प्रार्थना दिवस" के रूप में पहली सितम्बर को स्थापित किया है। आशा की जाती है कि यह पहल सृष्टि के उत्तम प्रबन्धक होने की आवश्यकता के प्रति लोगों में जागरूकता को बढ़ायेगी और इस प्रकार, यथार्थ मानवीय पारिस्थितिकी को प्रोत्साहन देगी।

इन सदभावनाओं के साथ हम आप सबको एक सुखमय दीपावली महोत्सव की मंगलकामनाएँ अर्पित करते हैं।   

                                        

                                                                                                                                                                                                 कार्डिनल जाँ-लूई तौराँ

                                                                                                                                                                                                  अध्यक्ष       

                                          

                                                                                                                                                                                     श्रद्धेय मिगेल आन्गेल अयुसो गिक्सो, एमसीसीजे

                                                                                                                                                                                                       सचिव 

                                                            

 

 








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