2015-11-02 15:47:00

सब संतों के समारोह में संत पापा का उपदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार, 2 नवम्बर 2015 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 1 नवम्बर को सब संतों के महापर्व पर रोम के वेरोना स्थित कब्रस्थान पर यूखरिस्तीय बलिदान अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, “सुसमाचार में हमने येसु को गलीलिया झील के पास, पर्वत से अपने शिष्यों को शिक्षा देते हुए सुना। येसु के पुनर्जीवित और सजीव वचन हमें भी संबोधित करते हैं कि सच्ची खुशी को किस प्रकार पाया जाये जो हमें स्वर्ग के रास्ते में ले चलती है। यह हमारी समझ से परे प्रतीत होता है क्योंकि यह दुनिया की शिक्षा से भिन्न है लेकिन प्रभु कहते हैं जो इन राहों पर चलते हैं वे खुशी के पात्र हैं।

“धन्य हैं जो मन के दीन हैं क्योंकि स्वर्ग राज्य उन्हीं का है।” हम पूछ सकते हैं कि दीन अथवा गरीब लोग कैसे स्वर्ग के अधिकारी हो सकते हैं? इसका जवाब यह है कि दुनियावी सभी चीजों से वंचित व्यक्ति ईश्वरीय राज्य की प्रतीक्षा करता है।

“धन्य हैं वे जो शोक करते हैं उन्हें सांत्वना मिलेगी।” जो शोकित है उन्हें खुशी कैसे मिलेगी। यद्यपि जिन्होंने जीवन में कभी दुःख, तकलीफ और मुश्किलता का अनुभव नहीं किया वे कैसे जानेंगे कि सांत्वना क्या होती है बल्कि वे लोग खुश है जो अपने जीवन और दूसरों के जीवन के दुःख से प्रभावित होते और दुःख-दर्द को समझते हैं। वे खुश होगें क्योंकि ईश्वर का स्नेहिल प्यार उन्हें सांत्वना और धीरज प्रदान करेगा।

“धन्य हैं जो नम्र है।” इसके विपरीत कितनी बार हम अधीर, हताश और हमेशा शिकायत करने लग जाते हैं। दूसरों से हम कितनी आशा करते हैं लेकिन जब हमारी बारी आती तो हम कैसे चिड़चिड़े और अपनी आवाज ऊँची कर लेते हैं मानो हम दुनिया के मालिक हैं जबकि सच्चाई यह है कि हम सब ईश्वर के बच्चे हैं। हम उन माता-पिता के बारे में सोचें जिनके बच्चे उन्हें परेशान करते लेकिन वे अपने बच्चों के प्रति कितने धैर्यवान बने रहते हैं। ये ईश्वर के नम्र और धैर्य के मार्ग हैं। येसु इसी रास्ते पर चले और उन्होंने एक बच्चे के माफिक सभी अत्याचार और दुत्कार का सहन किया, एक वयस्क की भाँति उन्होंने सभी तरह के झूठे दोष, निन्दा-शिकायत को न्यायासन से सुनना पड़ा लेकिन वे सब कुछ को धैर्यपूर्वक सहते रहे। उन्होंने हमारे कारण क्रूस भी स्वीकार किया।

“धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं वे तृप्त किये जायेंगे।” हाँ जो न्याय की प्राप्ति के पक्के हैं न केवल दूसरों के प्रति वरन् अपने लिए भी वे तृप्त किया जायेंगे क्योंकि वे बड़े न्याय को स्वीकार करने के लिये तैयार हैं जो केवल ईश्वर की ओर से आता है।

“धन्य हैं वे जो दयालु हैं उन पर दया की जायेगी।” धन्य हैं वे जो दूसरों को क्षमा करते, दूसरों को दया भाव दिखाते हैं जो दूसरों को दंड नहीं देते लेकिन दूसरों की तरह अपने को ढाल लेते हैं। क्षमा भाव एक ऐसी चीज है जो हम सबको आवश्यक है इसीलिए मिस्सा के शुरू में हम अपने को स्वीकार करते हैं कि हम कौन हैं, हम सब पापी हैं। यह हमारे जीवन की सच्चाई है। “हे प्रभु यहाँ हूँ मुझे क्षमा कर।” जब हम दूसरों को क्षमा देते हैं तथा क्षमा की याचना करते हैं तो हम धन्य होते हैं, जैसा कि “हे पिता हमारे की प्रार्थना में हम कहते हैं, हमारे पापों को क्षमा कर जैसे हम भी अपने पापियों के पाप क्षमा करते हैं।”

धन्य हैं जो मेल करते हैं वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे। हम उनके चेहरे को देखे जो दूसरों की बुराई करते फिरते हैं क्या वे खुश हैं? जो दूसरों को धोखा देने की ताक में हैं, फायदा मारने के फिराक में रहते, क्या वे खुश हैं? नहीं वे खुश नहीं रह सकते। बल्कि जो प्रतिदिन धैर्य से शांति स्थापना हेतु कार्य करते हैं वे शांति, मेल-मिलाप के शिल्पकार होते हैं क्योंकि वे स्वर्गीय पिता के सच्चे बच्चे हैं। वे शांति के वाहक होते है जैसे की येसु संसार में शांति लेकर आये।

प्रिय भाइयो एवं बहनो, यह पवित्रता और खुशी का मार्ग है। येसु ने स्वयं इस पथ को चुना और जो उनके साथ चलते हैं वे उनके अनंत राज्य में प्रवेश करते हैं। हम येसु से नम्रता और सरलता हेतु याचना करें, दीन बनने, न्याय और शांति हेतु काम करने और उससे भी बढ़कर हम अपने को उनके हाथों में सौंप दें जिससे कि वे हमें अपनी दया का श्रोत बनायें। संतों ने यही किया और वे ईश्वर के निवास में हैं। वे हमारी सहायता करते हैं जिससे हम येसु के प्रेम में आगे बढ़ सकें।








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