2015-10-28 16:15:00

नोस्त्रा अएताते की 50वीं वर्षगाँठ पर आप की उपस्थित खास है


वाटिकन सिटी, बुधवार 28 अक्टूबर 2015, (सेदोक, वी. आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में  जमा हुए हज़ारों तीर्थयात्रियों को इतालवी भाषा में,  दवितीय वाटिकन महासभा, के दस्तावेज “नोस्त्रा एताते”  की 50वीं वर्षगाँठ पर संबोधित करते हुए कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात,


आमदर्शन समारोह में हमेशा विभिन्न धर्म के लोग रहते है, लेकिन आज दवितीय वाटिकन महासभा, “नोस्त्रा अएताते”  की 50वीं वर्षगाँठ पर आप की उपस्थित खास है क्योंकि यह गैर-ख्रीस्तीय धर्मो से हमारे संबंध की चर्चा करता है। यह विषय धन्य संत पापा पौल 6वें के हृदय में था, जिन्होंने महासभा के अन्त में पेन्तेकोस्त पर्व के अवसर पर गैर-काथलीकों के लिए सचिवालय की स्थापना की योजना सोच रखी थी जो आज अन्तरधार्मिक वार्ता संबंधी परमधर्मपीठीय समिति कहलाती है। इसीलिए मैं आप सब का धन्यवाद करते हुए आज के आमदर्शन समारोह में विशेष स्वागत करता हूँ।

द्वितीय वाटिकन महासभा काथलीक कलीसिया के लिए विचार मंथन, वार्ता और प्रार्थना का एक अभुतपूर्व क्षण था जहाँ माता कलीसिया ने समय की माँग को देखते हुये अपने को नवीकृत किया कि वह अपनी परम्पराओं और कलीसिया के लोगों के प्रति निष्ठावान बनी रहे । ईश्वर जो अपने को मानव और सृष्टि में प्रकट करते हैं, जिन्होंने नबियों के मुख से बोला और अन्तः अपने पुत्र के द्वारा बोला।(इब्र.11) वे हम प्रत्येक की आत्मा और हृदय में अपने वचनों को रखते हैं जो उसकी सत्य की तलाश करते और उसे अपने जीवन में जीने की कोशिश करता है।

“नोस्त्रा अएताते” के उद्धघोषित संदेश आज भी हमारे बीच व्याप्त हैं जिसके कुछ विन्दुओं को मैं संक्षेप में कहना चाहूँगा।

मानव का एक दूसरे पर निर्भरता में बढ़ोतरी, जीवन, दुःख और मृत्यु को समझने की चाह में मानवीय खोज, इस पर सवाल जो हमेशा हमारे समाने आते हैं, मानवीय जीवन का उद्गम और उसका भाग्य, मानवीय परिवार की एकात्मकता, विभिन्न समुदायों और संस्कृति के धर्मों में ईश्वर की खोज, विभिन्न धर्मों के प्रति कलीसिया की दयादृष्टि, जो उनमें निहित अच्छाइयों का परित्याग नहीं करती जो सुन्दर और सच्चाई है, कलीसिया विभिन्न धर्म और विश्वासियों के आध्यात्मिक, नैतिक जीवन का सम्मान करती है, कलीसिया अपने विश्वास और मान्यताओं को लेकर किसी से वार्ता करने को तैयार है कि मुक्ति येसु ख्रीस्त में है, जो मुक्तिदाता हैं और पवित्र आत्मा कार्यशील हैं जो हमें प्यार और शांति देते हैं।

विगत 50 वर्षो में गैर-ख्रीस्तीय धर्मों के साथ हमारी बहुत सारे क्रिया कलाप हुये जिन्हें याद करना मुश्किल है। एक विशेष घटना जो 27 अक्तूबर 1986 में एक भेंट के रूप में हुई। यह आज से तीस साल पहले, संत पापा जोन पौल द्वितीय की योजना में हुई जिन्होंने कासाबलंका के युवा मुस्लिमों से मिल कर यह अपील की कि, सभी विश्वासी व्यक्तिगत तौर पर एक दूसरे से मित्रता और एकता की भावना को बढ़वा दें। जो चिनगारी असीसी में जलाई गई थी वह पूरी दुनिया में स्थायी आशा की निशानी बन कर फैल गई है।

ईश्वर का विशेष धन्यवाद क्योंकि विगत 50 वर्षो में यहुदियों और काथलिकों के मध्य सच्चे परिवर्तन देखने को मिले हैं। तटस्थता और तकरार बदल कर सहयोग और ख्याति का रूप ले लिया है। हम जो शत्रु और परदेशी थे अब मित्र और भाई बन गये हैं। “नोस्त्रा अएताते”  की घोषणा ने काथलिकों को यहुदियों में अपनी जड़ों को पुनः खोजने, और किसी प्रकार के हिंसा, अपमान, निंदा और उत्पीड़न को नकारने में सहायता की है। ज्ञान, सम्मान और आपसी सदभावना जिस के द्वारा यहुदियों से हमारे संबंध में मधुरता आई जो सभी धर्मों में आपसी संबंध हेतु लागू होता है। मैं सोचता हूँ मुस्लिम, जैसे की महासभा हमें याद दिलाती है- “केवल ईश्वर जीवित ईश्वर की पूजा, जो दयालु और सर्वशक्तिमान, स्वर्ग और पृथ्वी के रचित है, जो मनुष्य से वार्ता करते है।” (5) वे इब्राहीम के पितृत्व को मानते, येसु को एक श्रद्धेय नबी मानते तथा उसकी कुंवारी मां का सम्मान करते हैं, वे न्याय के दिन का इंतजार  करते है और प्रार्थना, उपवास और दान देते हैं।

आपसी वार्ता हमें एक दूसरे का सम्मान और परस्पर खुलेपन का आह्वान करता है जहाँ हम एक-दूसरे के जीवन के अधिकार, भौतिक अखंडता, मौलिक स्वतंत्रता, विवेक, विचार, अभिव्यक्ति और धर्म की आजादी हेतु कोशिश करते हैं।

दुनिया हम सभी विश्वासियों को आशा भरी नज़रों से देखती है और हमें निमंत्रण देती है कि हम एक दूसरे का साथ सहयोग करें जो किसी भी धर्म को नहीं मानते। हमसे विभिन्न मुद्दे जैसे शांति, भूख, गरीबी जिससे लाखों की संख्या में लोग प्रभावित है, पर्यावरण की समस्या, हिंसा विशेष कर धर्म के नाम पर किया गया हिंसा, भ्रष्टाचार, नौतिक पतन, पारिवारिक समस्यायें, अर्थव्यवस्था और सबसे बढ़कर आशा के बारे में सवाल पूछते हैं। 

ये हमारे लिये मुसीबतें हैं और इनका हमारे पास एक मात्र जवाब है, हमारी प्रार्थना। प्रार्थना हमारा धन है जिसकी ओर हम अभिमुख होते हैं।

विश्वास में वार्ता बीज के समान अंकुरित हो कर मित्रता का पौधे बनें जो गरीबों, युवाओं, बुर्जुगों, प्रवासियों के स्वागत और परित्यक्तयों की ओर ध्यान देने में हमारी मदद करेंगे। इस तरह हम एक साथ चल सकेंगे और ईश्वर का धन्यवाद कर सकेंगे उस दुनिया रूपी वाटिका के लिए जिसकी देख रेख करने का बीड़ा हमें सौंपा गया है।

करुणा का वर्ष हमारे सामने है जो हमें एक साथ दया के काम करने का अवसर देगा। हम प्रेम और करुणा से प्रेरित हो कर अपने कामों को हमारे उन भाई-बहनों के लिये करें जिन्हें हमारे प्रेम और दया की जरूरत है जो हमारी ओर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु नजरें गड़ायें हुये हैं।

करुणा में हम सारी सृष्टि को आलिंगन करने के लिये बुलाये गये हैं क्योंकि हम पृथ्वी के प्रबंधक हैं न की इसके विनाशक।

इतना कहने के बाद संत पापा ने उपस्थित जनसमूह से आग्रह किया कि हम सब अन्तरधार्मिक वार्ता के लिये प्रार्थना करें क्योंकि ईश्वर के बिना कुछ भी संभव नहीं है। हमारी प्रार्थनाओं में ईश्वरीय इच्छा पूरी हो जो हम से चाहते हैं कि हम विश्वबन्धुत्व में जीवनयापन कर अपनी विविधता के बावजूद भी एकता में बने रहें। 








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