2015-10-20 12:05:00

जनजातियों की पारम्परिक प्रज्ञा एवं अनुभव को न भुलाया जाये


न्यू यार्क, मंगलवार, 20 अक्टूबर 2015 (सेदोक): महाधर्माध्यक्ष बेर्नार्दीतो आऊज़ा ने कहा है कि धारणीय विकास की बात करते समय जनजातियों की पारम्परिक प्रज्ञा एवं अनुभव को न भुलाया जाये।

न्यू यार्क में सोमवार को संयुक्त राष्ट्र संघीय महासभा के 70 वें सत्र में विश्व प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर, वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक, महाधर्माध्यक्ष बेर्नार्दीतो आऊज़ा ने 2030 के लिये निर्धारित विकास लक्ष्यों के विषय में कहा कि धारणीय विकास की जब बात की जाती है तब विश्व की जनजातियों को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि हमें इस धरती पर जीवन यापन करनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के प्रति ज़िम्मेदारी वहन करनी होगी, विशेष रूप से, जनजातियों के विकास पर ध्यान देना होगा।

उन्होंने कहा कि धारणीय विकास तब ही सम्भव होगा जब हमारी कार्यसूची में जनजातियों की सुरक्षा, उनके मानवाधिकारों का सम्मान तथा उनकी अस्मिता, संस्कृति एवं परम्परा को बरकरार रखने हेतु ठोस प्रयास किये जायें। महाधर्माध्यक्ष  आऊज़ा ने कहा कि सम्पूर्ण मानव परिवार का कल्याण तब ही सम्भव है जब जनजातियों की पारम्परिक प्रज्ञा एवं अनुभव से सीखा जाये।  

इस सन्दर्भ में, उन्होंने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि जनजातियों के लिये धरती उपभोग की वस्तु नहीं है बल्कि यह ईश्वर एवं उनके पूर्वज़ों द्वारा दिया गया वरदान है जिसे भावी पीढ़ियों के लिये सुरक्षित रखा जाना अनिवार्य है।   








All the contents on this site are copyrighted ©.