2015-10-13 12:36:00

धर्मसभा के आचार्यों ने परिवारों के संग-संग चलने पर दिया बल


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015 (सेदोक): वाटिकन में 05 से 25 अक्टूबर तक जारी विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के सातवें दिन धर्माध्यक्षों ने परिवारों के संग-संग चलने तथा उनकी प्रेरितिक मदद पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार प्रभु येसु ख्रीस्त ने एम्माऊस तक शिष्यों का साथ दिया था उसी प्रकार धर्माध्यक्षों को परिवारों का साथ देना चाहिये। 

सोमवार की सभा में धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के कार्य दस्तावेज़ "इन्सत्रुमेन्तुम लाबोरिस" के दूसरे भाग पर ध्यान केन्द्रित किया गया। कुछेक धर्माचार्यों ने विवाह एवं परिवार के लिये प्रार्थना दिवस एवं पवित्र घड़ी का प्रस्ताव रखा तो कुछ ने नवदीक्षार्थी अभियानों के द्वारा धर्मशिक्षा प्रदान करने पर बल दिया। इसके अतिरिक्त, सोमवार को सम्पन्न कार्य शिविरों में आसिया बीबी एवं कॉप्टिक शहीदों के मुद्दे पर भी बातचीत हुई।

परिवारों के संग-संग चलने के प्रश्न पर धर्माचार्यों ने कहा, "वैयक्तिकवाद एवं एकाकीपन से पीड़ित आज के समाजों में साथ-साथ चलने का विचार विवाह के इच्छुक युवा दम्पत्तियों के लिये  निर्णायक है ताकि वे परिपक्वता के साथ निर्णय ले सकें।" उन्होंने कहा कि ऐसा करना पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त का अनुसरण करना है जिन्होंने दुःख और व्यथा के क्षण में एम्माऊस तक जानेवाले अपने शिष्यों का साथ दिया था।

सोमवार के कार्यशिविरों में परिवार पर पड़नेवाले श्रम के प्रभाव पर भी बातचीत हुई जिसमें इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया कि कभी-कभी परिवारों को इतना कठोर श्रम करना पड़ता है कि उनके जीवन में हर्ष एवं एक साथ मिलकर खुशियाँ मनाने का समय ही नहीं होता। दूसरी ओर श्रम या रोज़गार के अभाव में परिवार अपनी जीविका कमाने में असफल हो जाते हैं।

अन्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों में जीवन यापन करने वाले परिवारों की चर्चा करते हुए धर्माध्यक्षों ने पाकिस्तान की आसिया बीबी की याद की जिनपर ईशनिन्दा का झूठा आरोप लगाया गया और उन्हें उनके परिवार से दूर रखा गया। इसी प्रकार, लिबिया में अपनी रोज़ी रोटी कमाने गये मिस्र के कॉप्टिक ख्रीस्तीयों को आतंकवादियों ने मार डाला। उन्होंने कहा कि इन लोगों को सिर्फ इसलिये उत्पीड़न एवं मृत्यु का सामना करना पड़ा क्योंकि ये ख्रीस्त के अनुयायी थे।

वाटिकन के प्रेस प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने सोमवार की प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि सोमवार के वाद-विवाद में तलाक शुदा एवं पृथक हुए दम्पत्तियों को परमप्रसाद प्रदान करने न करने पर गहन विचार विमर्श हुआ जिसमें कुछेक धर्माध्यक्षों ने इन लोगों को परमप्रसाद न देने के पक्ष में आवाज़ उठाई। इसपर फादर लोमबारदी ने कहा, "इस प्रकार की "संकीर्णता" को कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन करनेवालों को भी साथ लेकर चलने के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिये ताकि सभी को लगे कि वे कलीसिया के अंग हैं तथा कलीसिया उनके समीप है।"  








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