2015-10-10 12:19:00

प्रेरक मोतीः सन्त फ्राँसिस बोरजिया (1510 – 1572)


वाटिकन सिटी 10 अक्टूबर 2015

फ्रांसिस स्पेन के राज दरबार में एक युवा सामंत थे। केवल तैंतीस वर्ष की आयु में उन्हें ड्यूक की उपाधि मिल गई थी। पत्नी एलेनोर और उनके आठ बच्चों के साथ वे खुशहाली का जीवन व्यतीत किया करते थे। तथापि, अन्य शक्तिशाली रईसों के विपरीत, फ्रांसिस एक आदर्श ईसाई सज्जन, तथा ईश भक्त थे। ख्रीस्तयागों शामिल होकर वे परमप्रसाद ग्रहण किया करते थे। कुछ ही समय बाद पत्नी एलेनोर का देहान्त हो गया जिसके बाद ड्यू फ्राँसिस ने अपना सबकुछ त्याग कर ड्यूक की पदवी अपने बेटे चार्ल्स को दे दी। उनके इस कृत्य ने सभी अन्य सामंतों एवं दरबार में सेवारत लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। सबकुछ त्याग कर फ्राँसिस ने येसु धर्मसमाज में प्रवेश कर लिया था। उनका पुरोहिताभिषेक हुआ जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। धर्मसमाज में फ्राँसिस का जीवन आसान नहीं था।

एक समय के ड्यूक फ्राँसिस धर्मसमाज के रसोई में खाना बनाया करते थे, लकड़ी काट कर लाते थे, घर की साफ सफाई करते थे। वे अन्य पुरोहितों को खाना परोसा करते थे तथा कुछ ग़लती हो जाने पर घुटनों के बल गिरकर उनसे क्षमा याचना किया करते थे फिर भी उन्होंने कभी किसी से शिकायत नहीं की। वे नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें दरबार का सामंत समझें अथवा ड्यूक समझकर उनका सम्मान करें। अपनी दीनता और अकिंचनता के कारण फ्राँसिस सर्वत्र विख्यात हो गये तथा घूम-घूम कर सुसमाचार का प्रचार करने लगे। उन्हीं के कार्यों के परिणामस्वरूप स्पेन और पुर्तगाल में येसुधर्मसमाज के मठों की स्थापना हुई और जब वे इस धर्मसमाज के के विश्वाध्यक्ष चुने गये तब उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में अपने मिशनरियों को प्रेषित किया।

फ्राँसिस बोरजिया के मार्गदर्शन में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में येसु धर्मसमाज के पुरोहितों ने प्रभु येसु के सुसमाचार का प्रचार किया तथा मानव उत्थान में योगदान दिया। विनम्र एवं दीन काथलिक पुरोहित, येसुधर्मसमाजी सन्त फ्राँसिस बोरजिया का पर्व 10 अक्टूबर को मनाया जाता है।      








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