2015-09-21 17:20:00

निर्धनता और दया से न डरें


वाटिकन सिटी, सोमवार 21 सितम्बर 2015 (सेदोक) संत पापा ने अपनी क्यूबा यात्रा के दौरान हवाना के महागिरजाघर में पुरोहितों, धर्मसमाजियों और सेमनरियों को संबोधित करते हुए कहा, आप निर्धनता और दया से न डरे। निर्धनता उन्होंने कहा कि एक बेतुका शब्द है संसार इस विचारधारा को नहीं जानता है और इसे पसंद नहीं करता, इसे छिपाता है शालीनता के कारण नहीं वरन् घृणा के कारण। संसार की विचार धारा येसु की जीवन यात्रा को पसंद नहीं करता जो अपने को नम्र, गरीब और दीन बनाकर हमारे तरह बन गये। सुसमाचार में धनी युवक ने सभी तरह के नियमों का पालन किया लेकिन वह निर्धनता से भयभीत हुआ और उदास हो कर चला गया।

संत पापा ने कहा, आप को सम्पति का उपयोग करने सीखना है। यह जरूरी है क्योंकि सम्पति ईश्वर प्रदत उपहार है लेकिन जब यह हमारे हद्य में प्रवेश कर जाती और हमारे जीवन को संचालित करने लगती हैं तो यह हमारे जीवन को नष्ट कर देती है। संत इग्नसियुस लोयोला ने कहा है कि निर्धनता दीवार और समर्पित जीवन की माता है। माँ ईश्वर में विश्वास का सृजन करती है और दीवार सब दुनियावी चीजों से हमारी रक्षा करती है। दुनियादारी ने कितनी ही आत्माओं को डुबो दिया। धनवान उदार युवक ने अच्छी शुरूआत की थी लेकिन उसका अन्त सामान्य हो गया। वे प्रेम विहीन रह जाते हैं क्योंकि वह उन्हें दरिद्र बना देता है।

संत पापा ने कहा जब धन का नाश पुरोहितों, विशपों और पोप जैसे समर्पित जन के हद्य में समा जाती है तो वे भविष्य के लिए धन संग्रहित करने लग जाते हैं और ईश्वर जो उनके जीवन का भविष्य और सुऱक्षा हैं उनसे दूर चले जाते हैं।

उसी तरह उदाहरण स्वरूप कोई धर्मसमाज धन जमा करने की बात सोचते तो ईश्वर जो अच्छे हैं एक ऐसे कोषाध्यक्ष को कामों में लगाते हैं कि वह धर्मसमाज की वितीय स्थिति को अस्त-व्यस्त कर देता है। वे ईश्वर की ओर से कलीसिया के लिये सर्वोतम उपहार है क्योंकि वे हमें गरीब और धन मुक्त बना देते हैं।

हमारी माता कलीसिया गरीब है और येसु ग़रीबों को प्यार करते हैं वे माता मरियम के समान गरीब रहें।

 संत पापा से धर्मसमाजियों से प्रश्न करते हुये कहा कि आप अपने आप में आत्म निरीक्षण कीजिए कि निर्धनता के प्रति आप की विचार  धारा क्या है? आप मत्ती रचित सुसमाचार के अंश को न भूलें “ धन्य हैं वे गरीब हैं, जो धन सम्पति और दुनिया की शक्तियों से जुड़े नहीं हैं।

संत पापा ने धर्मसमाजियों को दया का साक्ष्य देने हेतु आह्वान किया,“ जो कुछ तुमने मेरे इन भाइयों के लिए किया, वह मेरे लिये किया। ” बहुत से प्रेरितिक कार्य है जो मानवीय दृष्टिकोण से लिये लाभप्रद हैं, लेकिन जब हम बीमारों, परित्यक्त और  दीन जनों की सेवा करते तो हम प्रभु की सर्वोतम सेवा करते हैं।

संत पापा उन धर्मसमाजियों को “रोते बालक”की संज्ञा देते हैं  जो शिकायत करते हैं। वे शिकायत करते हैं क्योंकि उन्हें वह काम नहीं दिया गया जिसपर वे दक्ष है और जिस काम के लिये उन्हें तैय़ार किया गया था, वे चीजों को और अच्छा कर सकते थे लेकिन उन्हें “ दया के निवास ” में डाल दिया गया जहाँ ईश्वर के कोमल प्यार के प्रमाण अधिक प्रभावकारी रूप में झलकता है। हमें से  कितने हैं जो ऐसे स्थानों में अपनी ताकत और ऊर्जा का खर्च करना चाहेंगे।

संत पापा ने उन सभी धर्मबहनों को धन्यवाद दिया जिन्होंने अपने जीवन को ऐसे तुच्छ और नगण्य कामों के लिए दे दिया है। मैं सभी समर्पित भाई बहनों को धन्यवाद देता हूँ जो इस काम में संलग्न हैं।

पुरोहितों को संबोधित करते हुये संत पापा ने कहा कि पुरोहितों के लिये एक विशेष स्थान है जो बहुत छोटा प्रतीत होता है और वह है पापस्वीकार। उन्होंने पुरोहितों से अपील की कि ″वे विश्वासियों को पापा क्षमा संस्कार से वंचित न करें। आप पापमोचन के काम से न चुके।″ संत अम्बोस के शब्दों को उद्धत करते हुये उन्होंने कहा, “ जहाँ क्षमा है वहाँ येसु की आत्मा है, जहाँ कठोरता है वहाँ केवल उसके संचालक हैं।” 

अंत में संत पापा ने कहा कि प्रिय धर्माध्यक्ष भाइयों और पुरोहितो आप दया से न डरे वरन् इसे अपने हाथों से एवं क्षमा द्वारा आलिगंन से प्रवाहित होने दें क्योंकि जो आपके पास आते हैं वे दीन जन हैं।

Fr. Sanjay SJ








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