2015-09-15 13:08:00

शरणार्थी संकट पर पुर्तगाली रेडियो से सन्त पापा ने की बातचीत


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 15 सितम्बर 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने पुर्तगाल के रेनाशेना रेडियो से शरणार्थी संकट पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि विश्व को ऐसे सामाजिक एवं आर्थिक निकायों को कार्यरूप प्रदान करना होगा ताकि लोग अन्यत्र प्रवास करने अथवा विदेशों में शरण लेने के लिये बाध्य न हों।  

हाल के दिनों में सिरिया, ईराक, अफ़गानिस्तान तथा कुछ अफ्रीकी देशों से यूरोप के समुद्री तटों तथा मार्गों पर आ रहे हज़ारों शरणार्थियों एवं आप्रवासियों की व्यथा पर बोलते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "ये युद्ध और क्षुधा से पीड़ित लोग हैं और यह सिर्फ हिमशैल का शीर्ष है क्योंकि इसके अन्तर में छिपे कारण गम्भीर हैं, जिनमें अन्यायपूर्ण सामाजिक-आर्थिक निकाय, पर्यावरण का ह्रास, राजनीति में भ्रष्टाचार तथा भेदभाव शामिल हैं।"

उन्होंने कहा कि विश्व को ऐसे निकायों पर काम करना होगा जो लोगों की मदद कर सकें जिससे उन्हें आप्रवास या अन्यत्र जाने की ज़रूरत न पड़े।

सन्त पापा ने कहा, "जहाँ कारण क्षुधा या भुखमरी है हमें रोज़गार उत्पन्न करने होंगे तथा विकास में निवेश करना होगा। जहाँ कारण युद्ध है वहाँ शांति की खोज करनी होगी तथा शांति को बरकरार रखने के लिये काम करना होगा।" उन्होंने कहा, "आज के युग में विश्व स्वतः से संघर्ष कर रहा है, विश्व अपने आप से लड़ रहा है, वह रुक-रिक कर लड़ रहा है, वह धरती के विरुद्ध लड़ रहा है, भूमि के साथ लड़ रहा है और हमारे सामान्य धाम एवं पर्यावरण का विनाश कर रहा है।"

शरणार्थी समस्या के प्रति अभिमुख होकर उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि यह एक महान चुनौती है जो ख़तरे से खाली नहीं है। उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि सिसली द्वीप से केवल 400 किलो मीटर की दूरी पर ही आतंकवादी संगठन क्रियाशील हैं और इनमें से कुछ के शरणार्थी के वेश में किसी यूरोपीय देश में घुसपैठ की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता। तथापि, उन्होंने कहा, "आप सचेत रह सकते हैं, सावधानी बरत सकते हैं, इन लोगों को आप किसी काम में लगा सकते हैं, हालांकि, यूरोप ख़ुद रोज़गार संकट से गुज़र रहा है।" 

सन्त पापा ने यूरोपीय देशों में घटती जन्म दर की ओर भी इंगित किया और कहा कि यदि किसी देश में बच्चे नहीं हैं तो यह स्वाभाविक है कि आप्रवासी आकर उनकी जगह लें। उन्होंने कहा, "मैं समझता हूँ कि आज यूरोप के समक्ष प्रस्तुत महानतम चुनौती है पुनः माता यूरोप बनने की और अपने मौलिक सिद्धान्तों को याद करने की।"     








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