2015-09-03 16:11:00

भ्रातृत्व की भावना से की गयी सेवा अधिक सुन्दर


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 3 सितम्बर 2015 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 3 सितम्बर को वाटिकन स्थित सामान्य लोक सभा परिषद भवन में श्योनस्टाट के पुरोहितों की आम सभा में उपस्थित पुरोहितों को सम्बोधित किया।

उन्होंने कहा कि फादर जोसेफ केनटेनिक द्वारा स्थापित धर्मसमाज की स्थापना की स्वर्ण जयन्ती के तुरन्त बाद यह 5 वीं आम सभा चल रही है जिससे कि धर्मसमाज की विशिष्टताओं को आने वाले सालों में तथा युवाओं के बीच इस ज्ञान को हस्तांतरित करने के कार्य को जारी रखा जा सके जो उन्हें प्रेरित करे एवं जीवन तथा मिशन को सुदृढ़ रखने में मदद करे।

संत पापा ने कहा, ″करिश्म कोई संग्रहालय की वस्तु नहीं है जिसे शीशे के अंदर प्रदर्शनी के लिए बंद कर रखा जाए। विश्वासनीयता जो वास्तविक करिश्मे को बनाये रखती है उसे किसी भी तरह सीलबंद बोतल में डिस्टिल्ड की तरह बंद कर नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि वह बाह्य चीजों से दूषित नहीं होता।″

संत पापा ने संस्थापक फादर केनतेनिक के कथन का स्मरण दिलाते हुए आध्यात्मिक जीवन के दो स्तम्भों के बारे कहा, ″कान द्वारा ईश्वर के हृदय को सुनना तथा हाथ द्वारा समय के मिज़ाज को पकड़ना″ ये ही हैं सच्चे आध्यात्मिक जीवन के दो स्तम्भ।

इन दो स्तम्भों का अर्थ बतलाते हुए संत पापा ने कहा कि पहले का अर्थ है- ईश्वर से मुलाकात। ईश्वर हम से मुलाकात करते हैं तथा हमसे पहले वे हमें प्रेम करते हैं। उन्होंने कहा कि जब हम उनके वचनों पर चिंतन करते तथा कलीसिया की प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं तो वे प्रार्थना में हमें अपने आप को प्रकट करते हैं। संत पापा ने कहा कि किसी धर्मसमाज का करिश्म बाह्य धार्मिक कार्यों को पूरा करने मात्र से बना नहीं रहता किन्तु यह ईश्वर का कार्य है अतः हमें उसे उदारतापूर्वक सुनने एवं प्रेम से प्रत्युत्तर देने की आवश्यकता है।

दूसरे स्तम्भ के बारे में संत पापा ने कहा कि यह अभिव्यक्ति है समय, वास्तविकता एवं लोगों की स्थिति के प्रति सचेत रहना। उन्होंने कहा, ″वास्तविकता से न डरें।″ प्रार्थना में ईश्वर से बात-चीत हमें लोगों तथा परिस्थितियों की आवाज सुनने की प्रेरणा प्रदान करता है जो सेवा में प्रकट होती है। प्रार्थना में हम भाइयों के दुःख को ख्रीस्त के दुःख के रूप में अनुभव करते तथा उनकी सेवा करना सीखते हैं। एक पुरोहित का कार्य ख्रीस्तीयों की सेवा करना है। संत पापा ने कहा कि यद्यपि यह कठिन है किन्तु सम्भव है तथा मनोहर हो जाता है जब इसे भ्रातृत्व के साथ पूरा किया जाता है। संत पापा ने सचेत किया कि पुरोहिताई मिशन व्यक्तिगत मिशन नहीं है इसे अकेले में नहीं किया जा सकता।








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