भूबनेश्वर, बुधवार, 2 सितम्बर 2015 (ऊका समाचार): ओडिशा के राईकिया नगर में 5000 से अधिक ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों ने प्रदर्शन कर 2008 की ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा को याद किया जिसमें कम से कम 100 व्यक्तियों की हत्या हो गई थी तथा 50,000 विस्थापित हो गये थे। प्रदर्शनकारियों में अधिकांश आदिवासी एवं दलित ख्रीस्तीय शामिल थे।
प्रदर्शन का आयोजन ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के शिकार हुए लोगों की मदद करनेवाले "कन्धामाल न्याय शांति और सदभावना समाज" द्वारा किया गया था जिसमें प्रदर्शनकारियों ने 2008 की हिंसा में विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास एवं हत्या के शिकार लोगों के परिजनों के लिये क्षतिपूर्ति की मांग की।
ग़ौरतलब है कि कट्टरपंथी हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या के उपरान्त 25 अगस्त, 2008 से ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा शुरु हुई थी जो कई माहों तक जारी रही। हिन्दु कट्टरपंथियों का आरोप था कि स्वामी सरस्वती की हत्या ख्रीस्तीयों ने की थी जबकि माओवादी इस हत्या की ज़िम्मेदारी ले चुके थे।
प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित कर संसद सदस्य एवं पूर्व संघीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने कहा, "विविध धर्मों और जातियों के लोग शांति में जीवन यापन किया करते थे लेकिन अचानक बहुत से लोगों की हत्या हो गई, कई घरों और गिरजाघरों को नष्ट कर दिया गया, महिलाओं को पीटा गया और उन्हें बलात्कार का शिकार बनाया गया और हज़ारों लोग विस्थापित हो गए। विस्थापितों में कई लोग अब भी अपने घरों को लौट नहीं पाये हैं।"
उन्होंने कहा, "हिंसा की इन घटनाओं को भुलाया नहीं जा सकता, इन्हें भुलाना अपराध होगा। न्याय हासिल करना नितान्त आवश्यक है।"
साम्यवादी पार्टी की कार्यकर्त्ता बृन्दा करट ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि हालांकि माओवादियों ने स्वामी सरस्वती की हत्या की ज़िम्मेदारी कबूल की है तथापि, सात आदिवासी एवं दलित ख्रीस्तीय इसी हत्या के आरोप में कारावास में बन्द हैं।
कन्धामाल ज़िले में कानूनी मामलों का समन्वयन करनेवाले वकील एवं पुरोहित फादर देबन्कर पारेख ने सरकार से मांग की है वह उन लोगों की पहचान कर उनपर कार्रवाई करे जो ख्रीस्तीय समुदाय के गवाहों को डरा-धमका रहे हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार 2008 की ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के दौर में, ख्रीस्तीयों की 90 करोड़ रुपये की सम्पत्ति नष्ट हो गई थी जबकि अब तक सरकार ने केवल 70 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति के तौर पर दिये हैं।
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