2015-08-27 10:01:00

प्रेरक मोतीः सन्त मोनिका (331-387 ई.)


वाटिकन सिटी, 27 अगस्त सन् 2015:

सन्त मोनिका हिप्पो के अगस्टीन की माता थीं जिन्होंने अपने लेखों एवं आध्यात्मिक चिन्तनों में अपनी माँ के सदगुणों के बारे में विस्तार से चर्चा की है। मोनिका का विवाह उत्तरी अफ्रीका के एक ग़ैरविश्वासी व्यक्ति से कर दिया गया था जो उनसे उम्र में बहुत अधिक बड़ा था। हालांकि, उनका पति एक उदारमना व्यक्ति था उसका स्वभाव क्रोधी और हिंसक था जिससे मोनिका का जीवन अत्यधिक दुखदायी हो चला था। पति के घर में केवल वे ही नहीं थीं बल्कि उनकी सास भी उसी घर में रहती थी जिससे मुश्किलें और अधिक बढ़ गई थी। मोनिका का जीवन निरंन्तर चुनौतियों से भरा रहा किन्तु ईश्वर में विश्वास के कारण उन्होंने सबकुछ धैर्यपूर्वक सह लिया।

मोनिका की तीन सन्तानें थीं, अगस्टीन, नेवीगियुस और पेरपेतुआ। अपने धैर्य और अपनी प्रार्थनाओं द्वारा सन् 370 ई. में, वे, अपने पति और अपनी सास के मनपरिवर्तन में सफल हो गई। बिना किसी शिकवा के मोनिका की अपार सेवा और श्रद्धा को देख उन्होंने काथलिक धर्म का आलिंगन कर लिया था। इसके एक वर्ष बाद ही मोनिका के पति की मृत्यु हो गई। पेरपेतुआ और नेवीगियुस ने माँ के पदचिन्हों पर चल ईश्वर में मन लगाने का प्रण किया और धर्मसमाजी जीवन का चयन कर लिया जबकि अगस्टीन का हृदय कठोर ही बना रहा। माँ के बहुत कहने पर भी वे ईश्वर में मन नहीं लगा पाये। प्रार्थनाओं में उनका मन कभी नहीं लगता था, धर्म और आध्यात्म की बातें उन्हें फिज़ूल की बातें जान पड़ती थी। कारथेज में पढ़ाई के बाद वे ईरानी गूढ़ज्ञानवादी, मानी, द्वारा सिखाये जानेवाले तर्कणा और बुद्धि पर आधारित सिद्धान्तों में रुचि लेने लगे थे जो ख्रीस्तीय धर्म के बिलकुल विपरीत था। इसके बावजूद, मोनिका ने धैर्य नहीं खोया। वे अपने पुत्र के मनपरिवर्तन के लिये 17 वर्षों तक प्रार्थना करती रहीं तथा पुरोहितों से उसके लिये विनती करने का आग्रह करती रहीं।

पुरोहितों ने भी अगस्टीन के मामले को आशाविहीन बताकर मोनिका से किनारा कर लिया था किन्तु एक पुरोहित ने उन्हें यह कहकर सान्तवना दी कि, "ऐसा कदापि सम्भव नहीं कि इतने अधिक आँसुओं से सींचा गया पुत्र लुप्त हो जाये," फिर क्या था, इस वाक्य के साथ अपनी दूरदृष्टि और ईश्वर में अपने अटल विश्वास को जोड़कर मोनिका ने अपने संकल्प को और भी मज़बूत कर लिया। अपने पुत्र अगस्टीन के लिये वे अनवरत प्रार्थना करती रहीं जिसके परिणामस्वरूप सन् 387 ई. में अगस्टीन ने सन्त एम्ब्रोज़ से बपतिस्मा ग्रहण किया तथा काथलिक धर्म का आलिंगन किया। इसी वर्ष, रोम से अफ्रीका की यात्रा करते समय, ऑस्तिया में, मोनिका का निधन हो गया। सन्त अगस्टीन की माँ, सन्त मोनिका, पत्नियों एवं घरेलु हिंसा की शिकार महिलाओं एवं बच्चों की संरक्षिका हैं। सन्त मोनिका का पर्व 27 अगस्त को मनाया जाता है। 

चिन्तनः कठिनाइयों के बावजूद सतत् प्रार्थना द्वारा प्रभु ईश्वर में अपने विश्वास को हम मज़बूत करें।








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