2015-07-24 08:50:00

प्रेरक मोतीः सन्त जॉन बॉस्ते (1544-1594 ई.)


वाटिकन सिटी, 24 जुलाई सन् 2015:

सन्त जॉन बॉस्ते इंगलैण्ड तथा वेल्स के चालीस शहीदों में से एक थे। जॉन बॉस्ते का जन्म, सन् 1544 के लगभग, इंगलैण्ड के वेस्टमोरलैण्ड में हुआ था। उन्होंने ऑक्सफर्ड के क्वीन्स कॉलेज से उच्च-शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1576 ई. में उन्होंने काथलिक धर्म का आलिंगन कर लिया था जिसके बाद वे इंगलैण्ड छोड़कर चले गये तथा सन् 1581 ई. में, रेम्स में उन्हें, पुरोहित अभिषिक्त कर दिया गया।

एक सक्रिय मिशनरी पुरोहित रूप में जॉन वापस इंगलैण्ड लौटे। उत्तरी इंगलैण्ड में उनके मिशनरी कार्यों के परिणामस्वरूप बहुतों ने काथलिक धर्म का आलिंगन किया। उनकी मिशनरी यात्राओँ के दौरान ही उनके किसी सहयोगी ने उनके साथ विश्वासघात किया तथा उन्हें अधिकारियों के सिपुर्द करवा दिया। इस प्रकार, सन् 1593 ई. में डरहेम के निकट, जॉन बॉस्ते गिरफ्तार कर लिये गये। पूछताछ के लिये उन्हें लन्दन के क़िले ले जाया गया तथा देशद्रोह का आरोप लगाकर प्राण दण्ड की सज़ा दे दी गई। 24 जुलाई, सन् 1594 ई. को, डरहेम में, ड्रायबर्न के निकट, उन्हें फ्राँसी दे कर मार डाला गया। बॉस्ते ने देशद्रोह के आरोप से साफ़ इनकार कर दिया था और अपने उत्पीड़कों से  कहा था, "मेरा काम आत्माओं को जीतना है लौकिक एवं दुनियाबी ठिकानो पर धावा बोलना नहीं।"

सन् 1970 ई. में, सन्त पापा पौल षष्टम ने, डरहेम के शहीद रूप में, जॉन बॉस्ते को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। उनका पर्व 24 जुलाई को मनाया जाता है।

चिन्तनः "धर्मी के विचार न्यायसंगत हैं, किन्तु दुष्टों की योजनाएँ कपटपूर्ण हैं। दुष्टों के शब्द घातक हैं, किन्तु धर्मियों के शब्द लोगों की रक्षा करते हैं। दुष्टों का विनाश हो जाता है और वे फिर दिखाई नहीं देते, किन्तु धर्मी का घराना बना रहता है। समझदारी के कारण मनुष्य की प्रशंसा होती है, किन्तु जिनका मन कुटिल है, उनका तिरस्कार किया जाता है" (सूक्ति ग्रन्थ: 12, 5-8)।      








All the contents on this site are copyrighted ©.