2015-07-10 18:21:00

सकारात्मक बदलाव की आवश्यकता


सांता क्रूज़, शुक्रवार, 10 जुलाई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 9 जुलाई को बोलिविया के सांता क्रूज़ स्थित "एक्पो फियेरा" नामक रंगभवन में लोकगत अभियानों के विश्व सम्मेलन के प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया।

 उन्होंने लोगों को सम्बोधित कर कहा, ″कई महीनों पहले रोम में हुई हमारी प्रथम मुलाकात को मैं याद करता हूँ। मैंने अपनी प्रार्थनाओं में आप को सदा याद किया है और अब मैं आप सभी से पुनः मुलाकात कर अति प्रसन्न हूँ।″ 

संत पापा ने रोम में मुलाकात की मधुरता को व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने उसमें सुन्दरता, भाईचारा, दृढ़ता, समर्पण तथा न्याय की प्यास का अनुभव किया था तथा उन्हीं भावनाओं को आज वे सांता क्रूज़ में अनुभव कर रहे हैं।

संत पापा ने खुशी जाहिर की कि कलीसिया में भी बहुत सारे लोग इस पोपुलर मूवमेंट के अति करीब हैं। उन्होंने कहा, ″मैं खुश हूँ कि कलीसिया अपना द्वार सभी के लिए, लोगों का आलिंगन करने के लिए खोल रही है तथा आपका साथ दे रही है और पोपुलर मूवमेंट के साथ अपने धर्मप्रांतों में न्याय एवं शांति आयोग का गठन कर रही है। संत पापा ने कलीसिया के सभी धर्मगुरूओं को प्रोत्साहन दिया कि वे इस कार्य को गंभीरता से आगे बढ़ायें।

संत पापा ने भूमि, आवास तथा रोजगार की मांग हेतु लोगों की आवाज में शामिल होने का इच्छा जाहिर की तथा कहा, ″ये पवित्र अधिकार हैं, यह महत्वपूर्ण है तथा उनके लिए संघर्ष करना अर्थपूर्ण है। लातीनी अमरीका एवं दुनिया भर के बहिष्कृत लोगों की आवाज सुनी जाए।″

संत पापा ने कहा, ″परिवर्तन आवश्यक है।″ परिवर्तन की आवश्यकता को सार्थक बताने के लिए उन्होंने लोगों से कई प्रश्न किये। ″क्या हम अनुभव करते हैं कि दुनिया में कुछ गलत हो रहा है जहाँ किसान भूमि बिना हैं, परिवार बेघर हैं तथा मजदूर अधिकार से वंचित एवं कितने लोग सम्मान एवं प्रतिष्ठा से रहित हैं?  

उन्होंने कहा कि क्या हम इसका एहसास कर पाते हैं कि कितने व्यर्थ के युद्ध चल रहे हैं एवं भ्रातृ वध से संबंधित हिंसा हमारे ही दरवाजे पर हो रहे हैं? जब इस दुनिया की मिट्टी, पानी, हवा तथा सजीव प्राणी को निरंतर जोखिम में पड़ते देखते हैं तो क्या आप को कुछ बुराई का एहसास होता है?

अतः हम यह कहने से न घबरायें कि हमें परिवर्तन की आवश्यकता है।

संत पापा ने कहा कि पत्र में तथा पहले मुलाकात में हमने अपने कार्यक्षेत्रों, पड़ोसियों तथा समस्त क्षेत्र में कई प्रकार के बहिष्कार एवं अन्याय पर चर्चा की थी। उन्होंने इन सभी समस्याओं पर चिंता व्यक्त करते हुए एक बड़ी समस्या का खुलासा किया और कहा कि वह है लाभ की मानसिकता। उन्होंने कहा, ″क्या हम अनुभव करते हैं कि इस प्रणाली ने किसी भी कीमत पर लाभ की मानसिकता को बढ़ावा दिया है जिसको सामाजिक बहिष्कार अथवा प्रकृति के विनाश से कोई सरोकार नहीं है?  

संत पापा ने कहा कि यदि ऐसी स्थिति है दो परिवर्तन की चाह रखने से न डरें। हम अपने जीवन, अपने पड़ोसियों तथा दैनिक वास्तविकताओं में परिवर्तन ला सकते हैं। परिवर्तन की हमारी चाह पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती है। आशा का वैश्वीकरण एक ऐसी आशा है जो लोगों के द्वारा उत्पन्न होती तथा गरीबों में घर करती है, उसे ही बहिष्कार और उदासीनता के वैश्वीकरण की जगह लेनी चाहिए।

संत पापा ने सकारात्मक बदलाव पर जोर देते हुए कहा कि यह हमारे लिए उत्तम एवं मुक्तिदायी है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में लोग इसकी तलाश कर रहे हैं और जिसके अभाव में लोगों के बीच असंतुष्टि एवं निराशा की भावना फैली हुई है। संत पापा ने कलीसिया की जिम्मेदारी की याद दिलाते हुए कहा कि ऐसी परिस्थिति में कलीसिया अपने को अलग नहीं कर सकती।

उन्होंने मानवता के भविष्य को बनाये रखने के लिए सभी लोगों की जिम्मेदारी बतलाया तथा कहा, ″मानवता का भविष्य न केवल नेताओं, सत्ताधारियों एवं बुद्धिजीवियों के हाथ में है किन्तु सभी लोगों के हाथ में है उनके व्यवस्था करने की क्षमता में निहित है। इस प्रकार हम एक साथ कह सकेंगे, ″न कोई परिवार बेघर होगा न कोई किसान खेत रहित, न कोई मजदूर अधिकारहीन, न कोई व्यक्ति प्रतिष्ठा से वंचित, न ही कोई बच्चा बचपन रहित एवं न कोई युवा भविष्य के बिना और न कोई वयोवृद्ध सम्मान से दूर।″

 

 








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