2015-07-10 16:30:00

निराशापूर्ण हृदय में विचार करने की शक्ति खत्म हो जाती है


सांता क्रूज़, शुक्रवार, 10 जुलाई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ बोलिविया के सांता क्रूज़ स्थित ख्रीस्त मुक्तिदाता प्राँगण में गुरूवार 9 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया। प्रवचन में उन्होंने कहा, ″हम कई स्थानों, क्षेत्रों एवं गाँवों से ईश्वर के जीवित उपस्थिति को मनाने आये हैं। हमने अपने घरों तथा समुदायों से यात्रा कर ईश्वर की पवित्र प्रज्ञा के रूप में एकत्र हुए हैं।  

क्रूस तथा प्रेरिताई की छवि हमें उन समुदायों का स्मरण दिलाता है जो इस धरती पर येसु के नाम पर निवास करते थे। हम उन्हीं की संतान हैं।″ 

संत पापा ने सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए कहा कि जिस प्रकार चार हज़ार लोग येसु को सुनने के लिए एकत्र थे उसी तरह आज हम भी येसु की वाणी को सुनना एवं उनसे जीवन प्राप्त करना चाहते हैं।

संत पापा ने माताओं की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि माताओं को अपने कंधे पर बच्चे को लटकाएँ हुए देखना मुझे बहुत प्रभावित करता है।

उन्होंने कहा, ″उनको लेकर आप अपना एवं अपने लोगों के भविष्य को आगे बढ़ाते हैं। आप अपने सम्पूर्ण आनन्द एवं आशा को लेकर चलते हैं। धरती का आशीर्वाद एवं फल लाते हैं जो आपके हाथों के परिश्रम फल हैं। आप एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि कल की आशा एवं स्वप्न को साकार कर सकें।″ संत पापा ने पुर्वजों के कड़वे अनुभव की याद करते हुए कहा किन्तु उन लोगों के कंधे कड़वी निराशा एवं दुःख के भार से झुका था, अन्याय एवं न्याय के तिरस्कार की भावना से सहमा हुआ था। उन्होंने अपनी धरती को आनन्द प्रदान किया एवं दुःख झेला। उनकी याद सदा बनी रहेगी।

उन्होंने कहा कि हम इस यात्रा से बहुधा थक जाते हैं। उस आशा को बनाये रखने की ताकत कमजोर पड़ जाती है। कई बार हम ऐसी परिस्थितियों से होकर गुजरते हैं जो हमारी स्मरण शक्ति को शिथिल कर देती है। हमारी आशा को कमज़ोर तथा खुशी के कारण को फीका कर देता है। इस प्रकार हमारे जीवन में उदासी छा जाती है। हम सिर्फ अपने लिए सोचने लगते हैं हम भूल जाते हैं कि हम उस प्रजा में से हैं जिसे प्रेम किया गया है तथा चुना गया है। उस स्मृति का अभाव हमें गुमराह कर देता है, हमारे हृदय को दूसरों की ओर से बंद कर देता है, विशेष कर ग़रीबों के लिए।

संत पापा ने सचेत किया कि ऐसी परिस्थिति में हम भी प्रेरितों के समान व्यवहार कर सकते हैं जो लोगों की भीड़ देख कर येसु से आग्रह कर रहे थे कि वे उन्हें चले जाने को कहें। ″उन्हें घर भेज दें″   क्योंकि इतने लोगों के लिए खाना का प्रबंध करना उन्हें असम्भव लग रहा था। संत पापा ने कहा कि इस दुनिया में कई प्रकार की भूखों का सामना करते हुए हम समस्याओं के समाधान को सम्भव मान सकते हैं और हम निराश हो सकते हैं।

संत पापा ने चिंता व्यक्त की कि निराशा पूर्ण हृदय में विचार करने की शक्ति खत्म हो जाती है जो कि आज बढ़ रही है। यह एक ऐसी मानसिकता है जिसमें सभी चीजों का कीमत है तथा वे मात्र खरीद कर ही प्राप्त किये जा सकते हैं। संत पापा ने कहा कि इस प्रकार की मानसिकता में सिर्फ कुछ ही लोगों के लिए स्थान है जब कि यह अन्य लोगों का बहिष्कार करता है जो " अनुत्पादक, अनुपयुक्त या अयोग्य हैं तथा अपनी ओर से कुछ जोड़ पाने के काबिल नहीं हैं किन्तु येसु हम से कहते हैं कि उनका बहिष्कार नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें चले जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमें उन्हें देना है।

संत पापा ने कहा कि येसु के इस कथन का आज गहरा अर्थ है। उन्होंने कहा, ″आज इस प्राँगण में येसु हमसे यही कह रहे हैं। जी हाँ, किसी का बहिष्कार नहीं किया जाना चाहिए। हम उन्हें खाने के लिए कुछ दें। येसु के इस कथन में कमजोर लोगों के बहिष्कार की मानसिकता के लिए कोई स्थान नहीं है। जिसको साबित करने के लिए येसु ने रोटी एवं मछली ली, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी तथा उसे शिष्यों को दिया ताकि वे उसे लोगों के बीच बाटें और वहीं चमत्कार हो गया। संत पापा ने कहा कि यह कोई जादू नहीं था बल्कि इन तीन चिन्हों द्वारा येसु ने लोगों का मन बदल दिया था।

संत पापा ने उन तीन चिन्हों को स्पष्ट किया, लेना, धन्यवाद एवं देना।

लेना- संत पापा ने कहा कि यह प्रथम चरण है। येसु अपने तथा दूसरों के जीवन को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं। वे उनके जीवन में नजर डालते हैं तथा उनकी परिस्थितियों को समझ लेते हैं। अनुभव करने के बाद वे विचार कर उपाय ढ़ूँढ़ने का प्रयास करते हैं कि किस तरह उनकी मदद की जाए। येसु व्यक्ति पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं न कि उनकी संस्कृति या अन्य बाह्य चीजों पर। अतः वे लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। संत पापा ने कहा कि समाज का सबसे बड़ा धन व्यक्ति का जीवन है। येसु किसी की प्रतिष्ठा को कम नहीं करते हैं।

धन्यवाद- येसु को जो भी दिया दया था उसके लिए उन्होंने पिता को धन्यवाद दिया क्योंकि उन्हें मालूम था कि जो कुछ है वह सब ईश्वर का दान है। अतः वे चीजों को एक वस्तु की तरह नहीं देखते किन्तु जीवन का हिस्सा समझते हैं जो ईश्वर के करुणावान प्रेम का फल है। वे उसे महत्वपूर्ण मानते तथा पिता को धन्यवाद देते हुए उसपर पवित्र आत्मा के वरदान की याचना करते हैं। संत पापा ने कहा कि जीवन हमेशा एक वरदान है जब उसे ईश्वर को समर्पित किया जाए तब यह गुणात्मक हो जाता है।

देना- येसु उस चीज को नहीं लेते हैं जिसके लिए ईश्वर को धन्यवाद न दिया गया हो तथा बिना धन्यवाद के देना भी वास्तव में देना नहीं है। आशीष एक प्रेरिताई है जिसके तहत हमने जो प्राप्त किया है उसे बांटना। बांटने में ही सच्चे आनन्द की प्राप्ति हो सकती है। बांटने के द्वारा हम ईश प्रजा होने की याद को ताजा कर सकते हैं। येसु के जिस हाथ को पिता को धन्यवाद देने हेतु उठाया उसी हाथ से उन्होंने भूखी जनता को भी खिलाया जिसके द्वारा महान चमत्कार घटित हुआ।

संत पापा ने कहा कि युखरिस्त संसार के जीवन के लिए तोड़ी गयी रोटी है। कलीसिया इसे मनाती है तथा प्रभु के बलिदान का स्मरण करती है क्योंकि कलीसिया यादगारी का समुदाय है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार हम अकेले नहीं हैं किन्तु हम स्मृति के लोग है, एक ऐसी स्मृति जिसे याद किया जाना तथा दूसरों के साथ बांटा जाना चाहिए।

                       

 

 








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