2015-07-08 16:47:00

एकता निर्माण में आने वाली चुनौती को स्वीकार करें


क्वीटो, बुधवार, 8 जुलाई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार 7 जुलाई को इक्वाडोर के क्वीटो स्थित वाईसेन्टेनियल पार्क में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए विश्वासियों से आग्रह किया कि वे एकता में बढ़ें।

उन्होंने कहा, ″ईशवचन हमें एकता में जीने हेतु निमंत्रण दे रहा है ताकि संसार विश्वास कर सके।″

लातिनी अमरीका की आजादी की मांग की यादगारी में स्थापित वाईसेन्टेनियल पार्क में प्रवचन देते हुए उन्होंने याद किया कि जिस तरह अंतिम व्यारी में मानव की मुक्ति हेतु येसु ने आपको अर्पित कर दिया उसी तरह सत्ता के कारण वहाँ के लोगों को परतंत्रता, शोषण तथा लूट सहना पड़ा था। संत पापा ने सुसमाचार प्रचार में इन दोनों भावनाओं को संयुक्त रूप से देखने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि हम सुसमाचार प्रचार में अलंकृत या जटिल भाषाओं का प्रयोग नहीं करते किन्तु सुसमाचार के आनन्द का प्रचार करते हैं जो येसु के साथ मुलाकात करने वालों के हृदय एवं जीवन को आनन्द भर देता है, वह उन लोगों को पाप, दुःख, शून्यता तथा अकेलापन से मुक्त करता है।″ संत पापा ने सभी विश्वासियों के कहा कि उनका एक साथ होना ही एक आवाज है, एक अर्जी है कि येसु की उपस्थिति हमें एकता में आगे ले चले।

संसार से विदा होने के पूर्व येसु ने विश्वासियों की एकता हेतु पिता से प्रार्थना की थी, ″पिता, वे एक हो जाए... ताकि संसार यह विश्वास कर सके।″ संत पापा ने कहा कि उस समय येसु ने अपने शरीर में इस संसार जिससे उन्होंने अत्यधिक प्रेम किया था उसकी बुराई का एहसास किया उसके छल एवं विश्वासघात अवगत हुआ किन्तु वे अपने रास्ते से नहीं डिगे और न ही कोई शिकायत की।

उन्होंने कहा कि हम भी ऐसे संसार में जीते हैं जो युद्ध एवं हिंसा के कारण टुकड़ों में विभक्त है। ऐसे समय में हमें इस बात पर चिंतन करने की आवश्यकता है कि विभाजन एवं घृणा से राष्ट्रों एवं समाज में मात्र संघर्ष ही बढ़ता है। संत पापा ने उसे ‘व्यापक व्यक्तिवाद’ का परिचायक कहा जो हमें अलग करता तथा एक-दूसरे के विरूद्ध कराता है और यह पाप मानव हृदय में प्रवेश कर समाज एवं समस्त सृष्टि में अत्यधिक दुःख उत्पन्न करता है। संत पापा ने कहा किन्तु यही वह दुनिया है जिसमें येसु हमारे लिए भेजे गये थे अतः हमें भी दुनिया की बुराइयों से मात्र शिकायत नहीं किन्तु उनका प्रत्युत्तर येसु के मनोभाव को अपनायें तथा कृपा को स्वीकार करते हुए एकता निर्माण में आने वाली चुनौती को स्वीकार करें।

संत पापा ने सुसमाचार प्रचार का महत्व बतलाते हुए कहा कि यही एक रास्ता है हमारी आशाओं, विचारों एवं सपनों को एक साथ मिलाने का। संत पापा ने कहा, ″यद्यपि इस संसार में ख़ासकर कई देशों में युद्ध एवं हिंसा जारी है किन्तु हम ख्रीस्तीय एक-दूसरे का सम्मान करने, उनके घावों को चंगा करने, सेतु का निर्माण करने, संबंधों को मजबूत करने तथा एक-दूसरे का बोझ उठाने के इरादे को बरकरार रखते हैं। एकता की चाह हमें सुसमाचार प्रचार के आनन्द और खुशी से भर देता है और उसी खुशी के ख़जाने को हम लोगों के बीच बांटते एवं उनकी ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील होते हैं।

संत पापा ने कहा कि एकता में प्रेरिताई है। सुसमाचार प्रचार का अर्थ धर्म-परिवर्तन नहीं है किन्तु उन लोगों को करीब लाने की विनम्र कोशिश है जो अपने को ईश्वर एवं कलीसिया से दूर महसूस करते हैं जो उदासी एवं भय का अनुभव करते हैं। 

संत पापा ने कलीसिया के मिशन की याद दिलाते हुए कहा कि कलीसिया का मिशन मुक्ति का चिन्ह है जिसकी पहचान एक यात्री रूप में है तथा वह पृथ्वी के समस्त राष्ट्रों का आलिंगन करती है। उन्होंने कहा कि मिशनरी कलीसिया को निरंतर समुदाय को प्रोत्साहन देना है क्योंकि हमें कलीसिया के अंदर ही मिशनरी होने की आवश्यकता है ताकि समुदाय के सभी सदस्य स्नेह, स्वीकृति तथा एकता का अनुभव कर सकें।

येसु ने पिता से प्रार्थना की थी, ″तू उन्हें सत्य की सेवा में समर्पित कर।″ संत पापा ने कहा कि एक सुसमाचार प्रचारक का आध्यात्मिक जीवन गहन सत्य द्वारा प्रस्फुटित होता है जिसे धार्मिक अभ्यासों द्वारा मिलने वाले संतोष समझ लेने की ग़लतफ़हमी नहीं करनी चाहिए। येसु अपने को समर्पित करते हैं ताकि हम व्यक्तिगत रूप से उनसे मुलाकात कर सकें और यह मुलाकात हमें दूसरों के साथ मुलाकात करने हेतु प्रेरित करता है।

ईश्वर के साथ संयुक्ति, एकता, वार्ता, त्याग तथा प्रेम जैसे चिन्हों में व्यक्त होता है। अतः येसु हमें एकरूपता के लिए नहीं किन्तु बहुमुखी और सद्भावना के लिए निमंत्रण देते हैं। येसु प्रार्थना करते हैं ताकि हम उस बृहद परिवार के सदस्य बन जाएं जहाँ ईश्वर हमारे पिता होंगे और हम सब एक-दूसरे के भाई-बहन। यही हमारी मुक्ति है जिसे ईश्वर हमें प्रदान करते तथा कलीसिया जिसका आनन्द के साथ प्रचार करती है कि हम दैवी समुदाय के हिस्सा बन जाएँ।

संत पापा ने आशा व्यक्त की कि वह समय कितना सुहावना होगा जब एक-दूसरे के प्रति हमारे सद्भावना, प्रोत्साहन एवं एक-दूसरे की मदद की प्रशंसा सभी कर पायेंगे। हम एक-दूसरे को मात्र उपहार नहीं देते किन्तु अपने आपको अर्पित करते हैं। हमारे जीवन द्वारा ईश्वर का प्रेम प्रकट होता है पवित्र आत्मा हममें निवास करते हैं इस प्रकार जब हम अपने को समर्पित करते हैं तभी हम ईश्वर की संतान के रूप में अपनी सच्ची पहचान प्राप्त करते हैं।

 

 

 








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