2015-06-22 12:14:00

ट्यूरिन, इटलीः महाशक्तियों, शस्त्र निर्माताओं की सन्त पापा ने की निन्दा


ट्यूरिन, इटली, सोमवार, 22 जून 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्रांसिस ने उपेक्षाभाव के लिये विश्व की महाशक्तियों तथा विनाश का कारण बन रहे शस्त्रों के निर्माताओं की कड़ी निन्दा की।

इटली के ट्यूरिन शहर में, रविवार, 21 जून को युवाओं को सम्बोधित करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने विगत शताब्दी में हुई आरमेनियाई त्रासदी तथा द्वितीय विश्व युद्ध एवं उसके बाद यहूदियों, ख्रीस्तीयों, खानाबदोशों, समलैंगिकों एवं अन्यों के विरुद्ध अत्याचार पर गहन दुःख व्यक्त किया और कहा इन त्रासदियों के समय विश्व की कथित महाशक्तियाँ निष्क्रिय एवं उदासीन रही थी।

सन्त पापा ने युवाओं से कहा कि वे इस बात को भलीभाँति समझ सकते हैं कि क्यों वर्तमान युग के युवा लोग विश्व पर विश्वास नहीं करते। उन्होंने कहा, "आज का विश्व सरलवादी एवं सुखवादी हो गया है जहाँ बाहरी दिखावा आन्तरिक मूल्यों से अधिक मायने रखता है।"  

सन्त पापा ने कहा, "प्रायः हम अविश्वास की भावना में जीते हैं क्योंकि कुछ ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जो हमें विचार करने पर मजबूर कर देती हैं। इस विश्व में व्याप्त युद्धों पर हम तनिक विचार करें। मैंने कहा है कि इस समय हम टुकड़ों में, तृतीय विश्व युद्ध के दौर में जी रहे हैं, यूरोप में युद्ध है, अफ्रीका में युद्ध चल रहा है, मध्यपूर्व में युद्ध जारी है, अन्य देश भी युद्धों से घिरे हैं...... ऐसे विश्व में मैं कैसे विश्वास कर सकता हूँ? विश्व के नेताओं में कैसे अपने विश्वास की अभिव्यक्ति कर सकता हूँ? जब मैं किसी अभ्यर्थी के पक्ष में मतदान करता हूँ तब मुझे यह कैसे विश्वास हो सकता है कि वह मेरे राष्ट्र को युद्ध तक नहीं ले जायेगा? यदि केवल मानव पर विश्वास करोगे तो पराजित हो जाओगे।"

अस्त्र निर्माताओं की निन्दा करते हुए सन्त पापा ने कहाः "मेरा विचार एक बात के प्रति अभिमुख होता और वह यह कि कि वे लोग, वे नेता, वे उद्यमी और उद्योगपति जो ख्रीस्तीय धर्मानुयायी होने का दावा करते हैं तथा हथियार निर्माण में लिप्त हैं, क्या वे विश्वास योग्य हैं? भले ही वे कह लें कि नहीं, नहीं मैं हथियारों का निर्माण नहीं करता, मैंने तो केवल हथियारों के कारखाने में अपनी बचत लगाई है क्योंकि वहाँ ब्याज की दर ऊँची होती है।"    

प्रथम विश्व युद्ध एवं द्वितीय विश्व युद्ध के इर्द-गिर्द की त्रासदियों की याद कर सन्त पापा ने कहाः "विगत शताब्दी में क्या हुआः 1914, 15 में क्या हुआ? आरमेनिया की महात्रासदी जिसमें लाखों के  के प्राण चले गये, सही संख्या का पता नहीं है किन्तु जो दस लाख से अधिक थी। उस वक्त महाशक्तियाँ कहाँ थी? वे दूसरी ओर से देख रही थी। क्यों, क्योंकि युद्ध में उनकी दिलचस्पी थीः उनके अपने युद्ध में, और ये लोग जो मर रहे थे वे द्वितीय वर्ग के लोग थे? फिर, 1930 और 40 के दशक में "शोआ" की त्रासदी। उस समय महाशक्तियों के पास उन रेलमार्गों  की तस्वीरें थी जो नज़रबन्दी शिविर तक जाती थी, जैसे आऊशविस्ट तक जहाँ यहूदियों और ख्रीस्तीयों को, खानाबदोशों को तथा समलैंगिकों मारने के लिये ले जाया जाता था।" सन्त पापा ने कहा, "मुझे बताओं कि उन्होंने क्यों उस पर बमबारी नहीं की? ऊँचे ब्याज के लिये।"

उन्होंने कहाः "इसी प्रकार स्टालीन के युग में ख्रीस्तीयों के उत्पीड़न एवं उनकी हत्या के लिये रूस में "गुलाग या लागर" थेः कितने ख्रीस्तीयों को उत्पीड़ित किया गया और मार डाला गया। महाशक्तियाँ यूरोप को किसी केक के रूप में विभाजित कर रही हैं। एक प्रकार की "स्वतंत्रता" की उपलब्धि तक कई वर्ष लग गये। एक प्रकार का पाखण्ड सर्वत्र व्याप्त है जहाँ एक ओर शांति की बात की जाती है तो दूसरी ओर हथियार निर्माण और हथियारों के बेचने के दाँव-पेचों पर विचार होता है और इसीलिये, यहाँ-वहाँ, सर्वत्र युद्ध की स्थिति बनी हुई है।"          








All the contents on this site are copyrighted ©.