2015-06-11 17:48:00

सेवा के उत्तम आधार


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 11 जून 2015 (वीआर सेदोक)꞉ ″यात्रा, सेवा और ऐच्छिक दान″ वे तीन बिन्दु हैं जिन पर संत पापा फ्राँसिस ने अपना प्रवचन केंद्रित किया।

वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में पावन ख्रीस्तीयाग अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने संत मती रचित सुसमाचार पर चिंतन किया जिसमें येसु अपने शिष्यों को सुसमाचार प्रचार हेतु दुनिया के कोने-कोने में भेजते है।

उन्होंने कहा, ″येसु ने एक यात्रा के लिए भेजा, जो टहलना नहीं है किन्तु सुसमाचार का प्रचार करने हेतु मुक्ति संदेश के साथ भेजा जाना है।″   

उन्होंने कहा कि यात्रा द्वारा सुसमाचार फैलाना येसु द्वारा शिष्यों को दिया गया आदेश है किन्तु यदि एक शिष्य बाहर नहीं जाता तथा बप्तिस्मा में प्राप्त आदेश के पालन हेतु सुसमाचार का प्रचार दूसरों के बीच नहीं करता है तो वह येसु का सच्चा शिष्य नहीं है। दूसरों के लिए अच्छी चीज लाने में वह चूक जाता है।

सच्चे शिष्य की विशेषता बतलाते हुए संत पापा ने कहा कि ″येसु के सच्चे शिष्य का रास्ता है दूर जाकर सुसमाचार का प्रचार करना। उन्होंने शिष्य होने का एक अन्य मार्ग की जानकारी दी वह है आध्यात्मिक मार्ग, इस रास्ते पर चलकर शिष्य प्रार्थना एवं चिंतन द्वारा प्रत्येक दिन प्रभु की खोज करता है क्योंकि जो शिष्य प्रतिदिन प्रभु की खोज नहीं करता है उसके सुसमाचार प्रचार का कार्य, कमजोर, फीका तथा प्रभावहीन होता है।

संत पापा ने कहा कि यदि कोई शिष्य प्रभु को पाने की आवश्यकता महसूस नहीं करता है वह ख्रीस्तीय नहीं है। सभी शिष्यों को येसु की उन शिक्षाओं का पालन करना चाहिए जिसे उन्होंने आशीर्वचन एवं महाविचार के रूप में दी थी। सुसमाचार में ये ही दो शिक्षाएँ हैं जो सेवा के उत्तम आधार हैं।

यदि एक शिष्य सेवा के लिए आगे नहीं बढ़ता है तो उसकी यात्रा बेकार है। यदि उसका जीवन सेवा के लिए नहीं है जो उसे ख्रीस्तीय कहलाने की आवश्यकता नहीं है। यद्यपि स्वार्थी भावना में बढ़ना एक बड़ा प्रलोभन है तथापि एक अच्छा ख्रीस्तीय यदि बीमारों और कैदियों की सेवा नहीं करता है तो वह येसु की सेवा नहीं करता है क्योंकि येसु उन्हीं लोगों में उपस्थित हैं।

तीसरा बिन्दु है ऐच्छिक दान। येसु की आज्ञा है, ″तुम्हें मुफ्त में मिला है मुफ्त में दे दो।″ सेवा में ऐच्छिक दान पर येसु विशेष जोर देते हैं क्योंकि मुक्ति हमें मुफ्त में मिला है हम में से किसी ने इसे पाने की इच्छा नहीं की थी किन्तु ईश्वर ने येसु ख्रीस्त के बलिदान द्वारा अपनी उदारता से हमें यह प्रदान किया है।

संत पापा ने उन ख्रीस्तीयों के प्रति खेद प्रकट किया जो येसु के द्वारा ऐच्छिक दान करने के आदेश को भूल जाते हैं। उन्होंने कहा कि कई ख्रीस्तीय समुदाय, पल्ली, धर्मसंघीय संस्थाएँ, धर्मप्रांत मुफ्त में मिले दान को भूल जाते हैं इसके पीछे अहम की भावना है जो मुक्ति को मानव शक्ति द्वारा प्राप्त वस्तु मानती है।

संत पापा ने उपस्थित विश्वासियों से कहा कि हमारी आशा येसु ख्रीस्त में है जो हमें कभी निराश नहीं हो वाली आशा प्रदान करते हैं, इसके विपरीत जब हम अहम की भावना से प्रेरित होकर अपने स्वार्थ पर केंद्रित हो जाते हैं तथा अन्यों की सेवा नहीं करते हैं तो हमारी आशा नष्ट हो जाती है।

 








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