2015-05-14 12:55:00

प्रेरक मोतीः सन्त मथियस (पहली शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 14 मई सन् 2014:

सन्त मथियस प्रभु येसु मसीह के प्रथम 120 शिष्यों में से एक थे जिनके विषय में प्रेरित चरित ग्रन्थ के पहले अध्याय के 12 से लेकर 24 तक के पदों में हम पढ़ते हैं:

"प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरुसालेम लौटे। यह पहाड़ येरुसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है। वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस। ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।

उन दिनों पेत्रुस भाइयों के बीच खड़े हो गये। वहाँ लगभग एक सौ बीस व्यक्ति एकत्र थे। पेत्रुस ने कहा, ''भाइयो! यह अनिवार्य था कि धर्मग्रन्थ की वह भविष्यवाणी पूरी हो जाये, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यूदस के विषय में की थी। यूदस ईसा को गिरफ्तार करने वालों का अगुआ बन गया था। वह हम लोगों में एक और धर्मसेवा में हमारा साथी था। उसने अपने अधर्म की कमाई से एक खेत ख़रीदा। वह उस में मुँह के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सारी आँतें बाहर निकल आयीं। यह बात येरुसालेम के सब निवासियों को मालूम हो गयी और वह खेत उनकी भाषा में 'हकेलदमा' अर्थात् 'रक्त का खेत', कहलाता है।

स्त्रोत-संहिता में यह लिखा है - उसकी जमीन उजड़ जाये;  उस पर कोई भी निवास नहीं करे और-कोई दूसरा उसका पद ग्रहण करे। इसलिए उचित है कि जितने समय तक प्रभु ईसा हमारे बीच रहे, अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बनें''। इस पर इन्होंने दो व्यक्तियों को प्रस्तुत किया-यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता था और जिसका दूसरा नाम युस्तुस था, और मथियस को। तब उन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की, ''प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि तूने इन दोनों में से किस को चुना है,  ताकि वह धर्मसेवा तथा प्रेरितत्व में वह पद ग्रहण करे, जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्थान गया। उन्होंने चिट्ठी डाली। चिट्ठी मथियस के नाम निकली और उसकी गिनती ग्यारह प्रेरितों में हो गयी।"  

चिन्तनः "धन्य है वह मनुष्य, जो दुष्टों की सलाह नहीं मानता, पापियों के मार्ग पर नहीं चलता और अधर्मियों के साथ नहीं बैठता, जो प्रभु का नियम-हृदय से चाहता और दिन-रात उसका मनन करता है! वह उस वृक्ष के सदृश है, जो जलस्रोत के पास लगाया गया, जो समय पर फल देता है, जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। वह मनुष्य जो भी करता है, सफल होता है" (स्तोत्र ग्रन्थ 1:1-3)।   








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