2015-05-13 15:29:00

‘क्या मैं?’ ‘शुक्रिया’, ‘क्षमा करें’


वाटिकन सिटी, बुधवार   13 मई,  2015 (सेदोक, वी.आर.) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में  विश्व के कोने-कोने से एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को सम्बोधित किया।

उन्होंने इतालवी भाषा में कहा, ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षामाला में ‘परिवार की बुलाहट और मिशन’ विषय पर होने वाली सिनॉद को ध्यान में रखते हुए हम परिवार पर चिन्तन करना जारी रखें।

आज हम तीन महत्वपूर्ण वाक्यांशों पर चिन्तन करें, " क्या मैं ?"  "शुक्रिया " और " क्षमा करें "।

ये तीन वाक्यांश बिल्कुल छोटे और साधारण है पर इसे अपने जीवन में स्थान दे पाना उतना आसान नहीं होता। यह भी सत्य है कि जब इसकी महत्ता को नज़रअंदाज़ कर दिया जाये तब उसकी अनुपस्थिति में परिवार की नींव हिल जाती है और ऐसा होने से यह ध्वस्त भी हो सकता है।

अगर ये वाक्यांश हमारे जीवन में मात्र औपचारिकता नहीं पर दैनिक जीवन के अहम हिस्से बन जायें तो इससे पारिवारिक जीवन सुखमय हो जाता है। अगर ये शब्द हमारे जीवन में गहरे प्रेम के चिह्न बन जाते हैं तो इससे हमारा पारिवारिक जीवन अच्छा हो जाता है।

" क्या मैं ? " छोटी – सी अभिव्यक्ति है फिर भी यदि हम परिवार में इसका उपयोग करते हैं तो इससे एक ऐसा वातावरण बना पाते हैं जो वैवाहिक और पारिवारिक जीवन को मजबूत करता है। ऐसा करने से हम दूसरों के प्रति अपने प्यार और सम्मान का नवीनीकरण करते हैं। हम दूसरों को अपने ह्रदय में स्थान देते हैँ और हम उनके लिये अपने दिल का दरवाज़ा खुला कर देते हैँ।  

  

शुक्रिया या धन्यवाद एक ऐसा वाक्यांश है जो हमारे समुदाय के लिये बहुत ज़रूरी है। कृतज्ञता का भाव हमें मानव मर्यादा के प्रति संवेदनशील बनाता और हमें सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर कराता है।

 " क्षमा करें "  एक ऐसा वाक्यांश है जिसके बिना हमारे दिल आहत होते हैं और पारिवारिक संबंध कमजोर हाता है। जब हम क्षमा की याचना करते हैं तो हम इस बात को प्रकट करते हैं कि हम उस अच्छे रिश्ते को फिर से बनाना चाहते हैं जिसे हमने खो दिया है। हम चाहते हैं कि सम्मान, आदर और स्नेह का संबंध बना रहे और परिवार में सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहे।

आइये हम प्रार्थना करें ताकि  ‘क्या मैं’, ‘शुक्रिया’ और ‘क्षमा करें’ जैसे शब्दों को अपने दिल,परिवार और समुदायों में जगह दे सकें और अपने पारिवारिक जीवन को आनन्द से पूर्ण कर सकें।    

 

इतना कहकर संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की।

उन्होंने भारत, इंगलैंड, चीन, मलेशिया, इंडोनेशिया,  वियेतनाम, डेनमार्क, नीदरलैंड, जिम्बाब्ने, दक्षिण कोरिया  फिनलैंड,  ताइवान, नाइजीरिया, आयरलैंड, फिलीपीन्स, नोर्व, स्कॉटलैंड. फिनलैंड, जापान, उगान्डा, मॉल्टा, डेनमार्क, कतार, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और देश-विदेश के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों को विश्वास में बढ़ने तथा प्रभु के प्रेम और दया का साक्ष्य देने की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 

 

 

 








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