2015-05-07 16:19:00

सच्चा प्रेम मात्र शब्दों से नहीं कार्यों में प्रकट होता है


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 7 मई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ ″सच्चा प्रेम वास्तविक है यह कार्य द्वारा प्रकट होता है तथा ठोस है।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 7 मई को वाटिकन स्थित संत मर्था प्रार्थनालय में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

उन्होंने प्रवचन में सच्चे प्रेम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उसे ठोस होना चाहिए। संत पापा ने प्रवचन में संत योहन रचित सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु हमें अपने प्रेम में दृढ़ रहने की मांग करते हैं। उन्होंने कहा, ″सच्चा प्यार वास्तविक एवं अनवरत होता है।″

सच्चे प्यार की परख हेतु दो उपाय बतलाते हुए उन्होंने कहा कि पहले प्रकार के प्रेम में, बात से ज्यादा काम का महत्व होता है। यद्यपि वचन अत्यन्त हृदय स्पर्शी तथापि ठोस कार्य के अभाव में उसका कोई फायदा नहीं। संत पापा ने कहा कि येसु चेतावनी देते हैं, ″हे प्रभु, हे प्रभु कहने वाले सब के सब स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे किन्तु जो पिता की इच्छा पूरी करते और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं वे ही स्वर्ग राज्य में प्रवेश कर पायेंगे।″

सच्चा प्यार कामों से प्रकट होता है यह मात्र उत्साह नहीं है। कई बार यह पीड़ादायी भी होता है जिसका जीवन्त उदाहरण है येसु जिन्होंने प्रेम के खातिर क्रूस का बोझ उठाया। प्रेम को ठोस रूप देने वालों से येसु कहते हैं, जैसा कि संत मती रचित सुसमाचार के अध्याय 25 में लिखा है, ″क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया।″ येसु का पर्वत प्रवचन भी ठोस है। संत पापा ने कहा कि पिता का प्रेम भी ठोस था क्योंकि उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा जिन्होंने मानव का रूप धारण किया। 

दूसरे प्रकार के प्रेम पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि यह प्रकट किया जाता है। प्यार अपने को देता तथा दूसरों को स्वीकार करता है। ऐसा कोई प्रेम नहीं है जिसे व्यक्त न किया जाता हो। प्रेम अकेला सम्भव नहीं है। एकांत मठवासी भी अकेले नहीं होते वे प्रभु को अपना प्रेम प्रकट करते हैं। अतः अपने लाभ के लिए खुद में बंद रहना स्वार्थ है।

संत पापा ने कहा कि यद्यपि प्रेम करना सहज प्रतीत होता है तथापि ऐसा नहीं है क्योंकि हम अहम के प्रलोभन में पड़ जाते हैं अतः येसु का ये कहना, ‘मेरे प्रेम में दृढ़ बने रहो’ का अर्थ है प्रभु एवं अपने भाई-बहनों के बीच अपने प्रेम को प्रकट कर पाना, उनसे बात-चीत करना। संत पापा ने सच्चे प्रेम हेतु स्वार्थ और अपनी रुचि पर अधिक ध्यान देने से बचने की सलाह दी जिससे कि हमारा आनन्द परिपूर्ण हो जाए।








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