वाटिकन सिटी, बुधवार, 29 अप्रैल 2015 (सेदोक): संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने कहा है कि धारणीय विकास को प्रोत्साहन देने एवं जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के लिये विश्वव्यापी नीतियाँ ही पर्याप्त नहीं हैं अपितु इनके लिये विश्व के धर्मों को एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठानी होगी।
वाटिकन में सामाजिक विज्ञान एवं विज्ञान सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमियों के तत्वाधान में आयोजित एक कार्यशिविर में भाग ले रहे विभिन्न धर्मों के नेताओं, वैज्ञानिकों एवं शिक्षा विदों को मंगलवार को सम्बोधित कर बान की मून ने कहा कि बिना विनाश के विकास को हासिल करने तथा हमारी अर्थव्यवस्थाओं को रचनात्मक रूप से रूपान्तरित करने के लिये हमें अपनी सोच, मानसिकता एवं मूल्यों को रूपान्तरित करना होगा। उन्होंने कहा कि इस दिशा में विश्व के विभिन्न धर्म महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
उन्होंने कहा, "सरकारों, निजी व्यावसायों, नागर समाजों एवं धार्मिक समूहों के बीच यदि किसी विषय पर एकजुटता की आवश्यकता है तो वह विषय है, जलवायु परिवर्तन।"
वाटिकन द्वारा आयोजित कार्यशिविर का विषय थाः "जलवायु परिवर्तन एवं धारणीय विकास के नैतिक आयाम"। इसमें विश्व के लगभग 100 वैज्ञानिकों, शिक्षा विदों, धार्मिक नेताओं तथा राजनीति, उद्योग एवं अकादमी विशेषज्ञों ने भाग लिया।
इस अवसर पर बान की मून ने कहा कि जलवायु परिवर्तन तथा लोगों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं खाद्य आपूर्ति पर इसके प्रभाव "एक नैतिक प्रश्न" है जिसपर विश्व के धार्मिक नेताओं का एकजुट होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि यह सामाजिक न्याय, मानवाधिकार एवं आधारभूत नीति शास्त्र से जुड़ा प्रश्न है।
उन्होंने कहा, "निपट निर्धनता का उन्मूलन, कमज़ोर लोगों के समाज से बहिष्कार की समाप्ति तथा पर्यावरण की सुरक्षा ऐसे मूल्य हैं जो सभी महान धर्मों की शिक्षाओं से मेल खाते हैं।
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