वाटिकन सिटी, शनिवार, 11 अप्रैल 2015 (सेदोक): आरमेनियाई काथलिक कलीसिया के धर्माधिकारियों से गुरुवार को मुलाकात कर सन्त पापा ने फ्राँसिस ने पुनर्मिलन का आह्वान किया।
ग़ौरतलब है कि इस वर्ष 24 अप्रैल को आरमेनिया के लोग तुर्की ऑटोमन साम्राज्य द्वारा लगभग 15 लाख आरमेनियाई नागरिकों के नरसंहार की एक सौवीं पुण्य तिथि मना रहे हैं।
सन् 1915 से 1918 ई. तक तुर्की ऑटोमन साम्राज्य ने आरमेनिया के लोगों को उनके घरों से निकालने का अभियान चलाया था जिसमें 15 लाख आरमेनियाई मारे गये थे। तुर्की इसे नरसंहार मानने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि महामारियों एवं अकाल पड़ने से लोगों की मृत्यु हुई थी। इस बीच, विश्वव्यापी स्तर पर भी आरमेनियाई लोगों के मारे जाने को नरसंहार रूप में मान्यता नहीं मिली है।
गुरुवार को आरमेनियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के धर्माध्यक्षों से मुलाकात के अवसर पर सन्त पापा फ्राँसिस ने ईश्वर से दया की याचना की कि प्रेम, सत्य एवं न्याय की भावना में सभी घावों का उपचार हो सकेगा तथा सभी राष्ट्रों के बीच शांति एवं पुनर्मिलन की स्थापना हो सकेगी।
आरमेनिया के धर्माध्यक्षों से मुलाकात के अवसर पर "नरसंहार" शब्द का प्रयोग किये बिना सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "मानव हृदय कभी-कभी इतना कठोर हो जाता है कि वह क्रमबद्ध ढंग से अपने ही भाई की हत्या करता, उसे शत्रु समझता तथा उससे उसकी मानव मर्यादा तक छीन लेता है।" तथापि, उन्होंने कहा, "विश्वासियों के लिये मानव जाति द्वारा ढाये गये अत्याचार ख्रीस्त के मुक्तिदायी दुखभोग तक जाने तथा उसमें भागीदार बनने का मार्ग है और इसीलिये आरमेनिया के लोगों ने, उनके निष्कासन से उत्पन्न क्षुधा, रक्तपात और मृत्यु तक ख्रीस्त में अपने विश्वास का परित्याग नहीं किया।"
सन्त पापा फ्राँसिस ने स्मरण दिलाया कि सन्त पापा बेनेडिक्ट 15 वें ने सुल्तान मेहमत पंचम को लिखकर आरमेनियाई लोगों के नरसंहार को रोकने की अपील की थी।
आरमेनियाई धर्माध्यक्षों को सन्त पापा ने परामर्श दिया कि वे काथलिकों में आशा और विश्वास को जगायें। उन्होंने कहा, "वास्तविकता को नयी दृष्टि से देखा जाना अनिवार्य है ताकि केवल अतीत की दुखद घड़ियों को ही याद न किया जाये बल्कि, सुसमाचार के प्रकाश में, वर्तमान को उदारतापूर्वक जिये जाने के लिये नई ऊर्जा की खोज की जाये।"
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