2015-04-08 13:40:00

बच्चे बोझ नहीं वरदान


वाटिकन सिटी, बुधवार  8 अप्रैल,  2015 (सेदोक, वी.आर.) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में  विश्व के कोने-कोने से एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को सम्बोधित किया।

 

उन्होंने इतालवी भाषा में कहा, ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षामाला में अगले वर्ष परिवार की बुलाहट और मिशन विषय पर होने वाली सिनॉद को ध्यान में रखते हुए हम परिवार पर चिन्तन करना जारी रखें।  आज हम बच्चों के जीवन में चिन्तन करे जो ईश्वर के वरदान हैं।

 

आज मैं उन बच्चों की ओर अपना ध्यान खींचना चाहता हूँ जो दुःख झेल रहे हैं। कुछ बच्चे ऐसे हैं जो जन्म से ही दुःख झेलते हैं, कुछ जो तिरस्कृत हैं, परित्यक्त हैं और इस तरह से कई तो अपना बचपन और भविष्य गवाँ देते हैं।

 

कई माता - पिता तो ऐसे हैं जो सोचते हैं कि बच्चों को दुनिया में लाना ही ग़लती है क्योंकि दुनिया में भुखमरी और ग़रीबी है तथा वे नाजुक होते है और इसलिये उन्हें दुःख झेलना पड़ता है।

 

प्यारे भाइयो एवं बहनों, हम इस बात को जानें कि बच्चों को दुनिया में होने में कोई ग़लती नहीं है। उनका दुःख – तकलीफ़  उठाना हमारे लिये और ही सटीक कारण हैं कि हम उन्हें प्यार करें। जब एक बच्चा सड़क में भीख माँगता, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधा से वंचित हो जाता तो ईश्वर को अति दुःख होता है।

 

ऐसे ही बच्चे विभिन्न अपराधों के शिकार हो जाते हैं जिन्हें कुछ लोग व्यवसाय या हिंसा के लिये प्रयोग करने लगते हैं। यहाँ तक कि धनी देशों में भी बच्चे पारिवारिक संकटों के कारण कष्ट झेलते हैं जो कई बार अमानुषिक होते हैं। ऐसी परिस्थितियों में उनका शरीर और उनकी आत्मा दोनों ही हिंसा के शिकार हो जाते हैं। 

 

हम याद करें किस तरह से येसु ने बच्चों के साथ कैसा बर्ताव किया था जब उनके माता-पिताओं ने उन्हें उसके पास लाया था। उन्होंने कितने स्नेह से कहा था, " बच्चों को मेरे पास आने दो क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है " ।  

 

माता - पिता पर इन बच्चों की आस्था कितनी मजबूत थी और कितना प्यारा था प्रभु येसु का का स्नेह। आज भी कई माता-पिता है जो अपने बच्चों के लिये कितने बलिदान करते हैं। कलीसिया बच्चों और उनके माता-पिताओं को आवश्यक मदद करती और इस तरह से उनको ईश्वरीय कृपा के योग्य बनाती है।

 

प्रार्थना करें कि हम भी खुले दिल से बच्चों को अपना स्नेह दिखलायें ताकि उन्हें इस बात का आभास न हो कि दुनिया के लिये वे बोझ हैं पर लगे कि वे दुनिया के लिये वरदान हैं।

 

 

इतना कहकर संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की।

 

उन्होंने भारत, इंगलैंड, चीन, मलेशिया, इंडोनेशिया,  वियेतनाम, डेनमार्क, नीदरलैंड, जिम्बाब्ने, दक्षिण कोरिया  फिनलैंड,  ताइवान, नाइजीरिया, आयरलैंड, फिलीपीन्स, नोर्व, स्कॉटलैंड. फिनलैंड, जापान, उगान्डा, मॉल्टा, डेनमार्क, कतार, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और देश-विदेश के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों को विश्वास में बढ़ने तथा प्रभु के प्रेम और दया का साक्ष्य देने की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 

 

 

 








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