वाटिकन सिटी, शुक्रवार 3 अप्रैल 2015 (बाईबिल/ विभिन्न व्याख्याएँ)꞉ पुण्य शुक्रवार वह विशेष दिन है जब समस्त कलीसिया येसु ख्रीस्त के दुःखभोग एवं क्रूस मरण की यादगार मनाती है। इस दिन कलीसिया के शीर्ष संत पापा फ्राँसिस रोम स्थित प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक कोलोसेयुम में क्रूस रास्ता का संचालन करते हैं।
येसु ने इसी दिन ईश्वर की इच्छा पूरी करते हुए दुनिया को बचाने के लिए स्वेच्छा से अपना बलिदान कर दिया था। इस दिन सम्पूर्ण विश्व के ख्रीस्तानुयायी प्रभु येसु की प्राण पीड़ा, गिरफ्तारी, दुखभोग, मृत्यु और दफन का विशेष रुप से स्मरण करते हैं। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों में ख्रीस्तयाग अर्पित नहीं किया जाता है। इस दिन की पूजनपद्धति की विशेषताएँ हैः पवित्र धर्मग्रंथ बाइबिल से येसु ख्रीस्त के दुःखभोग वृतांत का पाठ, कलीसिया और विश्व के लिए विशेष प्रार्थनाएँ, पवित्र क्रूस की आराधना तथा अंत में पवित्र परमप्रसाद का वितरण।
इस दिन विश्वभर के ख्रीस्तीय धर्मानुयायी "क्रूस रास्ता" प्रार्थना के माध्यम से प्रभु येसु के दुखभोग पर मनन-चिंतन करते हुए आत्मिक रुप से उनकी पीड़ा में शामिल होते हैं। पाप और बुराई से मुक्त करनेवाले अनमोल वरदान के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिसे येसु ख्रीस्त ने कलवारी पर अपने शरीर और रक्त की क़ीमत देकर मानव जाति के लिए अर्जित किया है।
मानव को मुक्ति की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसके पीछे एक महान रहस्य है। ईश्वर ने विश्व की सृष्टि की जिसमें उन्होंने हर प्रकार के जीव जन्तुओं एवं वनस्पति को बनाया। यह उसे अच्छा लगा अतः उन्होंने एक ऐसे प्राणी की सृष्टि करना चाहा जो सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ हो꞉ मनुष्य जिसको उन्होंने अपने ही हाथों से गढ़ा तथा उसमें अपना जीवन डाल दिया वह सृष्टि की हर वस्तु से बढ़कर थी। ईश्वर ने अपनी इस रचना पर अत्यधिक प्रसन्न होकर उसे अनन्त काल तक अपने साथ रखना चाहा क्योंकि उन्होंने उसमें अपना जीवन डाल दिया था।
अफसोस, पिता ईश्वर की यह परम योजना कायम नहीं रह पायी क्योंकि मनुष्य ने ईश्वर की आज्ञा का पालन न कर उनसे अपना रिश्ता तोड़ दिया। मनुष्य के लिए अब स्वर्ग का द्वार बंद हो चुका था। उसके जीवन में कठिनाईयाँ बढ़ चुकीं थीं। मनुष्य की इस दुखद दशा देख पिता ईश्वर से नहीं रहा गया अतः उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेज कर उसे बचाना चाहा। पिता की इस योजना के तहत स्वर्ग का द्वार खोलने तथा पिता के साथ मानव जाति का संबंध पुनः कायम करने के लिए ही येसु को इस संसार में आना तथा क्रूस पर अपना प्राण अर्पित करना पड़ा। क्रूस पर येसु की मृत्यु ने सारा मानव इतिहास हमेशा के लिए बदल दिया।
पिलातुस द्वारा प्राण दण्ड की आज्ञा मिलने के बाद, कोड़े की मार तथा घोर कष्ट सहते हुए क्रूस का रास्ता तय कर येसु कलवारी पहाड़ पहुँचे जहाँ सिपाहियों ने उन्हें क्रूस पर चढ़ाया। उन्होंने उन्हें दो डाकूओं के बीच कीलों से क्रूस पर ठोंका। क्रूस पर येसु तीन घंटे तक असह्य पीड़ा सहते रहे।
क्रूर मानव अब तक वह सब कुछ पूरा कर चुका था जो वह ईश्वर के पुत्र के साथ करना चाहता था। उस समय पृथ्वी पर अँधेरा छा गया और क्रूस एक बलि वेदी बन गया जिसपर बलि मेमना बन, येसु ने अपने प्राणों की आहुति देकर, संसार का पाप हर लिया। ख्रीस्त की मृत्यु के समय पृथ्वी पर जो अप्राकृतिक अँधेरा हुआ वह मूसा के समय में इस्राएलियों द्वारा मिश्र देश छोड़ते समय घटित 9 वें चमत्कार की याद दिलाता है।
प्रभु ने मूसा से कहा, ''आकाश की ओर अपना हाथ फैलाओ जिससे मिस्र देश पर अंधकार छा जाये-इतना घना अन्धकार कि इस में लोग टटोलते-टटोलते चले। मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर फैलाया और सारे मिस्र देश में तीन दिन तक घोर अन्धकार छाया रहा। तीन दिन तक कोई एक दूसरे को नहीं देख पाता था, कोई अपने स्थान से टल नहीं सकता था, लेकिन इस्राएलियों के सब स्थानों में प्रकाश था।″ (निर्गमण ग्रंथ 10꞉21-22) ईश्वर ने मूसा के समय अँधेरा भेजा था तथा वही अँधेरा अपने पुत्र येसु की क्रूस मृत्यु के समय भी भेजा जिसने समस्त संसार को ढक लिया।
यहूदी पराम्परा में किसी को क्रूस पर चढ़ाया जाना किसी अपराधी को सज़ा देने का सबसे क्रूरतम साधन था अतः क्रूस की सज़ा देकर व्यक्ति को मार डालना, यह दिखलाता है कि मानव कितना कठोर हो सकता है। मानव ईश्वर के विरूद्ध विद्रोह में किस सीमा तक जा सकता है। इस प्रकार क्रूस में मानव के पतन की पराकाष्ठा दिखाई पड़ती है, पाप की परिसीमा प्रकट होती है।
क्रूस जहाँ एक ओर मानव की कठोरता का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर येसु ने इसे मानव के प्रति ईश्वर के प्रेम का चिन्ह बना दिया है। क्रूस पर प्रभु येसु की मृत्यु हमें स्मरण दिलाती है कि प्रभु येसु ने दुनिया से अपार प्रेम किया। यह एक ऐसी भाषा थी जिसके द्वारा मानों ईश्वर जगत से आँखों में आँखें डालकर कह रहे हों तुम जो हो जैसे भी हो मैं तुम से प्रेम करता हूँ।
क्रूस ईश्वर के उस पैतृक पहलू को प्रकाशित करता है जिससे हम अनभिज्ञ थे। ईश्वर प्रशासक नहीं पिता हैं, उन्हें अपने पुत्रों की चिंता है, पुत्र मांगे तो वे देते हैं, ढूंढे तो वे उपलब्ध कराते हैं, खटखटाए तो वे खोलते हैं। उनकी करूणा की दृष्टि सारी सृष्टि पर बनी रहती है घास के फूल को वे अद्भुत वैभव के वस्त्रों से सजाते और एक गौरैया के भोजन की व्यवस्था करते, जब एक गौरैया की मृत्यु होती तो वे प्रेम और करूणा से उस पर दृष्टि डालते, वे विधवा के छोटे से दान को देखते और उसकी प्रशंसा करते हैं और जो भेड़ खो जाती है उसे ढूंढने निकलते हैं। भटके हुए पापी पुत्र के वापस आने की वे राह देखते हैं और पापिनी पुत्री के अपराध क्षमा करते हैं, जिसकी संसार आलोचना करता है वे उसके साथ संगति करते हैं, जहां संसार पत्थरवाह करता वे क्षमा करते हैं। वे कठोर न्याय करने वाले परमेश्वर नहीं, अपार प्रेम और दया तथा करूणा के स्रोत है। येसु ने पिता के इस पहलू को प्रकाशित करने के लिए अपने को समर्पित किया। येसु द्वारा पिता के असीम प्रेम को हम इस घटना के माध्यम से भी समझ सकते हैं।
घटना 15 मार्च 2015 की है जब पाकिस्तान के लाहौर स्थित गिरजाघर में काथलिक विश्वासी प्रार्थना कर रह थे। गिरजाघर के प्रवेश द्वार पर सुरक्षाबल तैनात था ताकि कोई हमलावर उस में प्रवेश न कर सके।
आकाश बशीर संत जोन्स गिरजाघर के मुख्य प्रवेश द्वारा पर तैनात था। वह अन्य सुरक्षा बलों के साथ गिरजाघर में प्रवेश करनेवाले लोगों की निगरानी कर रहा था। उसी समय आत्मघाती बम का एक हमलावर वहाँ पहुँचा। वह जबरदस्त गिरजाघर में दाखिल होना चाहता था किन्तु 19 वर्षीय आकाश बशीर ने उसे रोक लिया। उस व्यक्ति की जाँच करते हुए उसे मालूम हो गया कि उस व्यक्ति ने अपने कोर्ट में विस्फोटक छिपाया है। हमलावर अंदर जाने की कोशिश करता रहा किन्तु आकाश बशीर ने यह जानते हुए भी उसे पकड़ कर रोक रखा कि उसके अन्दर खतरनाक बम है। अन्दर जाने में असमर्थ आत्मघाती बम ने तत्काल विस्फोट कर दिया जिसके कारण आकाश बशीर का शरीर छत-विक्षत हो गया। उसने अपने प्राणों की आहूति देकर गिरजाघर के अंतर सभी लोगों की जान बचायी। गिरजाघर के अंदर प्रार्थना कर रहे अपने भाई बहनों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम के कारण आकाश बशीर ने अपनी जान की कोई परवाह नहीं की। बम द्वारा उसका नश्वर शरीर नष्ट हो गया किन्तु वह अमर शहीद बन गये।
क्रूस मसीहियों के लिए मुक्ति का प्रतीक है। वह जो भयावाह और अपमानजनक मृत्यु का प्रतीक था प्रभु येसु के आत्म बलिदान द्वारा पाप और बुराई की दासता से मुक्त होने का विजय प्रतीक बन गया है।
क्रूस पर दुःख सहकर, प्रभु दुःख तकलीफ सहने का ख्रीस्तीय अर्थ हमें समझाते हैं। नबी इसायस ने ईश्वर के सेवक संबंधी गीत में, ईश्वर के सेवक येसु की भविष्यवाणी की थी जिसमें वे लिखते हैं, ″ वह हमारे सामने एक छोटे-से पौधे की तरह, सूखी भूमि की जड़ की तरह बढ़ा। हमने उसे देखा था; उसमें न तो सुन्दरता थी, न तेज और न कोई आकर्षण ही। वह मनुष्यों द्वारा निन्दित और तिरस्कृत था, शोक का मारा और अत्यन्त दुःखी। लोग जिन्हें देख कर मुँह फेर लेते हैं, उनकी तरह ही वह तिरस्कृत और तुच्छ समझा जाता था। परन्तु वह हमारे ही रोगों को अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था और हम उसे दण्डित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे। हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कुकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दण्ड वह भोगता था, उसके द्वारा हमें शान्ति मिली है और उसके घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं। हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सब के पापों का भार डाला है। वह अपने पर किया हुआ अत्याचार धैर्य से सहता गया और चुप रहा। वध के लिए ले जाये जाने वाले मेमने की तरह और ऊन कतरने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुँह नहीं खोला। वे उसे बन्दीगृह और अदालत ले गये; कोई उसकी परवाह नहीं करता था। वह जीवितों के बीच में से उठा लिया गया है और वह अपने लोगों के पापों के कारण मारा गया है। यद्यपि उसने कोई अन्याय नहीं किया था और उसके मुँह से कभी छल-कपट की बात नहीं निकली थी, फिर भी उसकी कब्र विधर्मियों के बीच बनायी गयी और वह धनियों के साथ दफ़नाया गया है। प्रभु ने चाहा कि वह दुःख से रौंदा जाये। उसने प्रायश्चित के रूप में अपना जीवन अर्पित किया; इसलिए उसका वंश बहुत दिनों तक बना रहेगा और उसके द्वारा प्रभु की इच्छा पूरी होगी। उसे दुःखभोग के कारण ज्योति और पूर्ण ज्ञान प्राप्त होगा। उसने दुःख सह कर जिन लोगों का अधर्म अपने ऊपर लिया था, वह उन्हें उनके पापों से मुक्त करेगा। उसने बहुतों के अपराध अपने ऊपर लेते हुए और पापियों के लिए प्रार्थना करते हुए अपने को बलि चढ़ा दिया और उसकी गिनती कुकर्मियों में हुई। (इसा. 53꞉2- 12)
ख्रीस्तीय दृष्टि से, कष्ट प्रभु के दुःखभोग के सहभागी बनने का साधन है। इसी कारण अच्छाई, सच्चाई और भलाई के लिए कष्ट सहना पुण्यप्रद माना जाता है। प्रभु ने हमारी मुक्ति के लिए कष्ट उठाया ताकि हमें मुक्ति मिले।
इस दुनिया के प्यार में स्वार्थ की मात्रा अधिक होती है कई लोग दूसरों को प्यार करने का दावा करते हैं किन्तु वह प्यार बहुधा स्वार्थ पूर्ण होता है। माँ की ममता सच्चे और गहरे प्यार का उत्तम नमूना माना जाता है फिर भी, समाचार पत्रों अथवा टेलीविज़न में हम कई चौकानें वाली घटनाओं के बारे में पढ़ते या सुनते हैं जहाँ एक माँ ही अपने बच्चे की हत्या करती है, बच्चे को बेच देती या उसे कूड़ेदान में फेंक देती है। अपने को देश प्रेमी मानने वाले अपने ही देश के दूसरे नागरिक के साथ अन्याय पूर्ण वर्ताव करते, धर्म के नाम पर हिंसक आक्रमण करते या अपनी वासना तृप्ति के लिए उनका बलात्कार कर उनकी निर्माम हत्यायें कर देते हैं।
सच्चा प्रेम मात्र वचन से नहीं, निष्ठा तथा त्याग की भावना से प्रमाणित होता है। हम जिनसे प्रेम करते हैं उसके लिए समय निकालते, अपना हिस्सा बांटते और तकलीफ उठाने से नहीं हिचकते हैं। हम उनकी हर संभव मदद करते और हमेशा उनकी अच्छाई की कामना करते हैं। जब हमें मुसीबतों का सामना करना पड़ता है तो प्रेम के खातिर हम सहर्ष उन्हें स्वीकार करते हैं। सच्चे प्यार की परख निःस्वार्थ भावना में होती है इसी कारण नये विधान में प्रभु हमें बताते हैं, ’’इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे।″ (योहन 15:13) प्रभु की यह शिक्षा शब्द मात्र तक सीमित न रहकर प्रभु के जीवन और मरण में हमें देखने को मिलती है। प्रभु येसु ने अपने जीवन दान द्वारा हर मनुष्य के प्रति अपना प्रेम दिखाया। प्रेम से प्रेरित होकर ही उन्होंने कोढ़ी को चंगा किया, मुरदों को जिलाया और भूखों को खिलाया। कोढ़ी को जिसे लोग अछूत मानते थे प्रभु ने प्यार से उनका स्पर्श कर शुद्ध किया। मृत बालिका को प्रभु ने हाथ पकड़कर जीवनदान दिया। भूखे लोगों को देखकर उनपर तरस खायी और उन्हें भोजन खिलाया। प्रेम के कारण ही प्रभु ने पापियों का आतिथ्य स्वीकार किया तथा नाकेदारों के साथ दोस्ती का हाथ बँटाया। उन्होंने अपने शिष्यों को मित्र कहकर संबोधित किया। अंत में पापी मानवजाति के प्रति प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने अपने प्राण की आहुति दी।
मित्रों के लिए तकलीफ उठाना स्वाभाविक माना जा सकता है लेकिन प्रेम की महानता तब सामने आती है जब उसकी कोई सीमा नहीं होती। वही प्रेम महान है जो मित्रों और शत्रुओं को बराबरी की नजर से देखे। इसी कारण संत पौलुस रोमियों को लिखते हैं, ’’हम निस्सहाय ही थे जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये। धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये, किन्तु हम पापी ही थे जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इससे ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।″ (रोमियों 5:6-8)
येसु ने हमें अपने असीम प्यार का प्रमाण दिया है अतः हम क्रूस की उपासना करते हैं।
आज हमारे लिए यही चुनौती है कि हम ख्रीस्त के शिष्य होने के नाते येसु एवं उनके क्रूस के सच्चे प्यार से सबक सीखें क्योंकि प्रभु स्वयं कहते हैं, ’’यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो।″ (योहन 13:35)
साथियो, हम अपने माता पिता, भाई बहनों, मित्रो, पड़ोसियों तथा हमारे देश के सभी लोगों के प्रति प्रेम करना सीखें, उनकी भलाई हेतु कष्ट उठाने से पीछे न हटें। तब हमारा प्रेम दूसरों से बढ़कर होगा, हमें सभी प्यार करेंगे तथा हम सच्चे और सफल इंसान बनेंगे।
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