2015-03-28 15:40:00

कदम उठाने में देर अधिक लोगों के विस्थापन का कारण


न्यूयॉर्क, शनिवार, 28 मार्च 2015 (वीआर सेदोक)꞉ संयुक्त राष्ट्र संघ में परमधर्मपीठ के प्रेरितिक राजदूत बेर्नारदितो ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा शुक्रवार 27 मार्च को आयोजित ″मध्यपूर्व में धर्म और जाति के आधार पर हिंसक आक्रमण तथा शोषण के शिकार″ विषय पर वाद-विवाद में सदस्य राष्ट्रों को सम्बोधित किया।

परमधर्मपीठ के प्रेरितिक राजदूत बेर्नारदितो औज़ा ने कहा, ″यह बहस न केवल समय की मांग है किन्तु यह अत्यन्त आवश्यक भी है, विशेषकर, जब हम उन लोगों की याद करते हैं जिन्होंने अपना जीवन गवाँ दिया है उनके लिए यह बहस बहुत देर हो चुकी है। उनका दुर्भाग्य धर्म और जाति के नाम पर आक्रमण एवं शोषण को रोकने की अपील करती है। मध्यपूर्वी देशों के ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों एवं अन्य अल्पसंख्यकों की आवाज इस समिति एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा कोई निराधार मंच पर नहीं किन्तु उस रीति से सुनी जाए जो वास्तव में उनकी पीड़ा, कठिनाई एवं मध्यपूर्व में उनके अस्तित्व के भय से अवगत हो।″ 

उन्होंने कहा कि हमें यह स्वीकार करना आवश्यक है कि यह एक समस्या है तथा हम एक गंभीर परिस्थिति से गुजर रहे हैं।

परमधर्मपीठीय राजदूत ने उन राष्ट्रों के उन नेताओं एवं अधिकारियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जिन्होंने ईसाईयों को धर्म, इतिहास तथा संस्कृति का अभिन्न अंग मानकर उनके बचाव हेतु खुलकर साथ दिया।

उन्होंने विश्व के सभी नेताओं एवं सद् इच्छा रखने वाले सभी लोगों से अपील की कि वे शांति और सद्भावना को बढ़ावा देने की पहल के लिए आगे आयें। वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र के विश्व शिखर सम्मेलन में, समस्त विश्व समुदाय इस बात पर सहमति जताई थी कि प्रत्येक राज्य को अपने लोगों पर हो रहे नरसंहार, युद्ध तथा मानवता के विरूद्ध अपराध से लोगों की रक्षा करना उनकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति सजग रहते हुए राज्यों को उनकी प्रमुख जिम्मेदारी के निर्वाह में मदद करती है पर यदि कोई राज्य स्वेच्छा से इस जिम्मेदारी को निभाने हेतु तैयार नहीं है तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र अनुसार लोगों की रक्षा हेतु आवश्यक कदम उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से अपील की कि इस शुभ कार्य में देर न की जाए क्योंकि कदम उठाने में अधिक देर होने पर अधिक लोगों को विस्थापन एवं अत्याचार का शिकार होना पड़ेगा।

 








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