जिनिवा, बुधवार, 18 मार्च 2015 (सेदोक): जिनिवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघीय कार्यालय में परमधर्मपीठ के पर्यवेक्षक वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष सिलवानो थॉमासी ने सचेत किया है कि सिरियाई बच्चे "खोई हुई पीढ़ी" बन सकते हैं।
मंगलवार 17 मार्च को संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार समिति के एक सत्र में सदस्य राष्ट्रों को सम्बोधित करते हुए महाधर्माध्यक्ष ने युद्धग्रस्त सिरिया के बच्चों का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा, "परिवार, वैध पहचान एवं उपयुक्त शिक्षा रहित, सिरिया एवं मध्यपूर्व में नित्य जारी संघर्ष के बीच जीवन यापन करनेवाले बच्चों पर एक खोई हुई पीढ़ी बनने का ख़तरा बना हुआ है।"
महाधर्माध्यक्ष थॉमासी ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि युद्ध के क्रूर दुष्परिणाम बच्चों को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। उन्होंने संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में "बच्चों की सुरक्षा हेतु व्यापक निकाय" का आह्वान किया।
उन्होंने स्मरण दिलाया कि मध्यपूर्व में स्थापित समस्त शरणार्थी शिविरों में पचास प्रतिशत बच्चे हैं और वे जनसंख्या का सबसे कमज़ोर वर्ग हैं। इनमें से कई अपने परिवारों से बिछुड़ गये हैं तथा आधारभूत ज़रूरतों की कमी के कारण निर्धनता में जीवन यापन को बाध्य हैं।
महाधर्माध्यक्ष ने सिरिया का उदाहरण देते हुए कहा कि सुरक्षाविहीन सिरियाई बच्चों को प्रायः सैन्य प्रशिक्षण के लिये भर्ती कर लिया जाता है अथवा उनका उपयोग मानव कवच के समान किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस्लामिक स्टेक आईएस के आतंकवादियों के आगमन के बाद से स्थिति और अधिक गम्भीर हो गई है।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि प्रायः युद्धग्रस्त क्षेत्रों के बच्चे राज्य विहीन हो जाते हैं तथा कई बार अकेले ही अन्तरराष्टीय सीमाएँ पार करते हैं जिसके दौरान उन्हें अनेक व्यथाओं का सामना करना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार इस समय लेबनान में लगभग 30,000 राज्यविहीन बच्चे जीवन यापन कर रहे हैं जिनके पास कोई पहचान पत्र आदि नहीं है। प्रायः ये बच्चे यौन शोषण, दास प्रथा, वेश्यावृत्ति तथा मानव तस्करी के शिकार बनते हैं।
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