2015-03-12 09:56:00

प्रेरक मोतीः इटली की सन्त फीना (1238-1253)


वाटिकन सिटी, 12 मार्च सन् 2015:

फीना या सेराफीना, इटली की एक ख्रीस्तीय किशोरी थी। आज भी इटली के तोस्काना प्रान्त के सान जिमिन्यानो में उनकी भक्ति की जाती है। भले ही फीना को सन्त फीना या सन्त सेराफीना कहा जाता है काथलिक कलीसिया द्वारा वे "सन्त" घोषित नहीं की गई हैं।

फीना देई चारदी का जन्म इटली के सान जिमिन्यानो नगर में सन् 1238 ई. को हुआ था। सामंत परिवार में जन्मी फीना के जीवन के प्रथम दस वर्षों पर बहुत कम जानकारी है तथा उनके विषय में जो कुछ भी लिखा गया है वह उनकी मृत्यु के बाद हुए चमत्कारों के बारे में है। कुछ दस्तावेज़ों से पता चला है कि फीना एक धर्मपरायण एवं आज्ञाकारी किशोरी थी जो प्रतिदिन ख्रीस्तयाग में शरीक होती तथा नियमित रूप से पवित्र रोज़री विनती का पाठ किया करती थीं। उनके विषय में यह भी लिखा गया है कि वे बहुत ही नेक एवं उदारमना व्यक्ति थीं।

दस वर्ष की आयु में फीना एक गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हो गईं जिसने उनके जीवन को पूर्णतः बदल कर रख दिया। वे तपेदिक से ग्रस्त हो गई जो बाद में अंगाघात में परिणत हो गया। ईश्वर में पूर्ण विश्वास से उन्होंने अपनी अकथनीय पीड़ा को आसानी से सह लिया। किंवदन्ती है कि रोग से पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने बिस्तर पर सोने से मना कर दिया तथा काठ के तख्त पर ही रोगावस्था में पड़ी रहीं। यह भी कहा जाता है कि अपनी बीमारी के कारण वे तख्त से उठ नहीं सकती थीं तथा कीड़े मकोड़े, चूहे आदि उनके शरीर को सताया करते थे। इतना अधिक दुख झेलने के बावजूद फीना ने प्रभु ईश्वर में अपने विश्वास का परित्याग कभी नहीं किया बल्कि अपनी पीड़ा एवं परित्यक्त अवस्था के लिये प्रभु ईश्वर को धन्यवाद देती रहीं।

पाँच वर्षों तक गम्भीर रूप से रोगग्रस्त रहने के बाद, 04 मार्च, सन् 1253 ई. को, सन्त ग्रेगोरी महान फीना के कमरे में प्रकट हुए तथा उन्होंने भविष्यवाणी की फीना 12 मार्च को अपने प्राण त्याग देंगी। भविष्यवाणी के अनुकूल ही 12 मार्च सन् 1253 ई. को 15 वर्षीया फीना का निधन हो गया। उनका पर्व दिवस 12 मार्च को मनाया जाता है।    

चिन्तनः प्रभु ईश्वर में विश्वास सबकुछ को सहने की शक्ति प्रदान करता है।

 

 








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