2015-03-09 19:48:00

इतालवी भाषा में मिस्सा चढ़ाये जाने की पचासवर्षीय जुबिली


वाटिकन सिटी, सोमवार 9 मार्च, 2015 (सेदोक,वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने इताली भाषा में यूखरिस्तीय बलिदान अर्पित करने की पचास वर्षीय जुबिली के अवसर पर रोम में अवस्थित ‘चर्च ऑफ़ ओनी सान्ति’ अर्थात् सब ‘संतों के गिरजाघर’ में यूख्रीस्तीय बलिदान चढ़ाया।

संत पापा ने यूखरिस्तीय बलिदान के समय दिये गये अपने प्रवचन में कहा कि  पचास वर्ष पहले यही पर सन् 1965 ईस्वी में चालीसा के पहले रविवार को संत पापा पौल षष्टम ने इतालवी भाषा में मिस्सा-बलिदान अर्पित किया था और तब ही से क्षेत्रीय भाषाओं में यूखरिस्तीय बलिदान चढ़ाने की परंपरा चली आयी।

तब संत पापा पौल षष्टम ने कहा, " आज का यह दिन ऐतिहासिक है क्यों कि अब से नये तरह से प्रार्थना करने और पवित्र मिस्सा चढ़ाये जाने का उद्घाटन किया जा चुका है।" 

संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 7 मार्च को यूखरिस्तीय बदलिदान चढ़ाते हुए कहा कि येसु की बातें, " मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ " सिर्फ़ मंदिर में कारोबार चलाने वालों के लिये नहीं कहा गया है। ऐसा कहा गया है ताकि एक प्रकार की धार्मिकता जो कलीसिया में जारी है उस पर लोग ध्यान दें।

उन्होंने कहा कि ईश्वर ऐसे उपहारों और वस्तुओं से प्रसन्न नहीं होते जिसपर व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत रुचि हो। येसु चाहते हैं कि हमारी आराधना सच्ची हो जो हमें अपने जीवन से जोड़े।

उन्होंने ने द्वितीय वाटिकन की पूजन पद्धति के संविधान संबंधी दस्तावेज़ " साकरोसान्कतुम कोनसिललियुम "  की चर्चा करते हुए कहा कि कलीसिया आज हमें आमंत्रित करती है कि हम सच्चे पूजन पद्धतीय जीवन को प्रोत्साहन दें ताकि पूजन पद्धति में जिसका समारोह मनाते हैं और जो जीवन हम जीते हैं उसमें सामंजस्य बना रहे।

संत पापा ने कहा कि पूजन समारोह एक ऐसा कृपा का समय होता है जब हम ईश्वर की आवाज़ को सुनते हैं जो हमें पवित्रता और ख्रीस्तीय पूर्णता की ओर बढ़ने में हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।

पूजन समारोह हमें इस बात के लिये भी आमंत्रित करता है कि हम प्रभु की ओर लौटें, विशेष करके चालीसा काल में। यह काल आध्यात्मिक नवीनीकरण का काल है जब हम पापों से मुक्त होते हैं। यह वही समय है जब हमें मेल-मिलाप संस्कार के मूल्य को पुनः पहचानते हैं और प्रकाश में चलने लगते हैं।

चालीसा काल एक ऐसा पवित्र समय है जब हमें पापस्वीकार संस्कार द्वारा ईश्वर के करीब आते हैं, उसमें एक होते हैं और खोयी हुई खुशी और सांत्वना को प्राप्त करते हैं।

संत पापा ने ओनी सान्ति प्रार्थनालय के निर्माता संत लुइजी ओरियोने को धन्यवाद दिया और कहा कि यह वही पावन स्थल है जहाँ धन्य पौल षष्टम ने पूजनपद्धति के नवनिर्माण की आधारशिला रखी और तब से विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में यूखरिस्तीय बलिदान अर्पित करने की परंपरा शुरु हुई।

 

 








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