2015-03-03 10:10:00

दैनिक मिस्सा पाठ


सोमवार- 1.3.15

दैनिक मिस्सा पाठ

पहला पाठ- स्तोत्र 116꞉ 10,15-19

यद्यपि मैंने कहा था, ''मैं अत्यन्त दुःखी हूँ'', तब भी मैंने भरोसा नहीं छोड़ा। अपने भक्तों की मृत्यु से प्रभु को भी दुःख होता है। प्रभु! तूने मेरे बन्धन खोल दिये; क्योंकि मैं तेरा सेवक हूँ, तेरा सेवक, तेरी सेविका का पुत्र। मैं प्रभु का नाम लेते हुए धन्यवाद का बलिदान चढ़ाऊँगा।  (१८-१९) येरुसालेम! मैं तेरे मध्य में ईश्वर के मन्दिर के प्रांगण में, प्रभु की सारी प्रजा के सामने प्रभु के लिए अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। अल्लेलूया!

सुसमाचार पाठ-मार. 9꞉ 2-10

 छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया। उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता। शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे। उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, ''गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।''  उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे। तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, ''यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।''  इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।   ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे। उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि 'मृतकों में से जी उठने' का अर्थ क्या हो सकता है। 

 








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