2015-02-19 14:51:00

हमें पश्चाताप करने की आवश्यकता है क्योंकि हम पापी हैं


रोम, बृहस्पतिवार, 19 फरवरी 15 (सीएनएस)꞉ ″चालीसा काल शुद्धिकरण एवं पश्चताप का समय है, एक ऐसा अवसर जो व्यक्ति को आँसुओं के साथ करूणावान पिता की प्रेमी बांहों में वापस लाता है।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने 18 फरवरी को राखबुध के पावन अवसर पर रोम स्थित अवेनटीन हिल में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए कही।

बेनेडिक्टाइन धर्मसंघी मंठ के संत अंसेलेम गिरजाघर से पदयात्रा करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने संत सबीना गिरजाघर में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया। उन्होंने गिरजाघर के कार्डिनल जोसेफ टोम्को के हाथों से पवित्र राख ग्रहण किया तथा बेनेडिक्टाइन एवं दोमेनिकन धर्मसामाजियों और उपस्थित अन्य विश्वासियों के माथे पर राख लगाई।

परम्परा के अनुसार समारोह में पुरोहित, ″हे मनुष्य तू मिट्टी है और फिर मिट्टी में मिल जायेगा″ अथवा ″पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो″ के मंत्र का उच्चारण करते हुए विश्वासियों को राख प्रदान करते हैं।

संत पापा ने कहा कि ये दोनों ही सूत्र मानव के अस्तित्व की याद दिलाते हैं। हम सब सीमित प्राणी हैं, हम पापी हैं अतः निरंतर पश्चाताप करने और मन-परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने कहा कि इन दोनों बातों को सुनना और स्वीकार करना बहुत महत्वपूर्ण है।

राख का वितरण करने के पूर्व संत पापा ने विश्वासियों को प्रोत्साहन दिया कि वे ईश्वर से आँसू का वरदान माँगें ताकि मन-परिवर्तन हेतु हमारी यात्रा पाखंड रहित एवं अधिक प्रामाणिक हो।

नबी योएल के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि क्या धर्मगुरु सचमुच विलाप करते हैं?

संत मती रचित सुसमाचार पाठ पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि येसु अपने शिष्यों को भले कार्यों का प्रदर्शन नहीं करने की सलाह देते हुए तीन बार चेतावनी देते हैं।

उन्होंने कहा, ″जब हम कोई भला कार्य करते हैं तो स्वतः एक चाह उत्पन्न होती है कि हम उस कार्य के लिए सम्मानित एवं प्रशंसित किये जाए किन्तु येसु कहते हैं कि हम उन कार्यों के लिए किसी प्रकार की डींग न करें बल्कि ईश्वर के पुरस्कार की कामना करें।″

संत पापा ने कहा कि पाखंडी रोना नहीं जानते, वे रोना भूल चुके हैं और न ही आँसू के वरदान के लिए प्रार्थना करते हैं।

चालीसा काल मन परिवर्तन का आह्वान करता है जिसका अर्थ है कि हम कोमल एवं करूणावान पिता की प्रेमी बांहों में वापस लौटें, उनसे आलिंगन कर आँसू बहायें, उन पर भरोसा रखें और अपने आपको उनके चरणों में समर्पित कर दें। 40 दिनों की इस यात्रा में एक ख्रीस्तीय को ख्रीस्त के करीब आने का कड़ा प्रयास करना चाहिए जिसके लिए कलीसिया प्रार्थना, उपवास एवं दान रूपी माध्यम प्रदान करती है। संत पापा ने कहा कि मन-परिवर्तन सिर्फ मानवीय क्रिया नहीं है। दयालु पिता द्वारा ईश्वर और हमारे बीच मेल-मिलाप सम्भव है जिसके लिए उन्होंने अपने एकलौते पुत्र का बलिदान कर दिया।

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना की कि पाप के विरूद्ध आध्यात्मिक संघर्ष में माता मरियम सभी ख्रीस्तीयों की सहायता करें तथा चालीसा काल की यात्रा में हमारा साथ दे ताकि उनके साथ हम सभी पास्का का आनन्द मना सकें।

 

 








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