2015-02-14 10:54:00

प्रेरक मोतीः सन्त वालफ्रिड (निधन 765)


वाटिकन सिटी, 15 फरवरी सन् 2015

15 फरवरी को कलीसिया सन्त वालफ्रिड का स्मृति दिवस मनाती है। घेरारदेस्का के वालफ्रिड अथवा गालफ्रिदो का जन्म इटली के पीसा नगर में हुआ था जहाँ के वे एक समृद्ध, प्रतिभाशाली एवं सम्माजनक नागरिक थे। थोसिया नामक धार्मिक महिला से वालफ्रिड का विवाह हुआ था। उनके पाँच बेटे तथा एक बेटी थी। कुछ समय बाद वालफ्रिड एवं उनकी धर्मपत्नी थेसिया ने प्रभु की बुलाहट सुनी तथा अपने दो मित्रों – गुनदुआल्द तथा फोरतिस के साथ मिलकर मठवासी जीवन यापन का प्रण कर लिया। वोलतेर्रा तथा पियोमबीनो के बीच उन्होंने एक भूक्षेत्र ख़रीदा ताकि भावी मठ की स्थापना की जा सके। उन्होंने मोन्ते कासिनो के बेनेडिक्टीन मठवासियों के अनुशासन एवं नियमों के आधार पर अपने मठ के नियम बनाये तथा पुरुषों एवं स्त्रियों के लिये अलग अलग मठों का निर्माण करवाया। इस नये उद्यम से कई युवा भी जुड़ गये। मठवासी जीवन यापन का चयन करनेवालों में वालफ्रिड के बेटे गिमफ्रिड, बेटी रत्रुदा तथा उनके मित्र गुनदुआल्द के बेटे एन्ड्रू भी शामिल थे। एन्ड्रू ने ही बाद में सन्त वालफ्रिड का जीवन चरित लिखा था। एन्ड्रू के अनुसार वालफ्रिड के बेटे गिमफ्रिड का पुरोहिताभिषेक हुआ था किन्तु इसके एक वर्ष बाद ही वे मठ के कागज़ातों, घोड़ों एवं कुछ आदमियों सहित भाग गये थे। वालफ्रिड ने बेटे को वापस लाने के लिये दिन रात विनती की और तीसरे दिन बेटा लौट आया, उसने पश्चाताप किया तथा बाद में एक बेहतर पुरोहित बना।

दस वर्षों तक मठाध्यक्ष पद पर रहने के उपरान्त विवेकी एवं धर्मी पुरुष वालफ्रिड का निधन हो गया जिनके बाद उनके पुत्र, पुरोहित गिमफ्रिड, मठाध्यक्ष नियुक्त किये गये। वालफ्रिड की आध्यात्मिकता एवं उदारता इतनी विख्यात हो गई थी कि सन् 765 ई. में उनके निधन के बाद  सम्पूर्ण इटली से लोग पालात्सुओलो के मठ स्थित उनकी समाधि पर श्रद्धार्पण हेतु आने लगे। शनैः शनैः उनकी भक्ति इतनी बढ़ गई कि सन् 1861 ई. में कलीसिया ने भक्ति को मान्यता दे दी। सन्त वालफ्रिड का पर्व 15 फरवरी को मनाया जाता है।

चिन्तनः " धर्मियों का मार्ग प्रभात के प्रकाश जैसा है, जो दोपहर तक क्रमशः बढ़ता जाता है; किन्तु विधर्मियों का मार्ग अन्धकारमय है। उन्हें पता नहीं कि वे किस चीज से ठोकर खायेंगे (सूक्ति ग्रन्थ 4, 18-19)। 

 








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